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Aries मेषलग्न: ज्योतिष की १ (प्रथम) राशि का सशक्त वर्णन
प्रिय पाठकों, आज हम यहाँ पर Aries मेषलग्न के बारे में चर्चा करेंगे, इस चर्चा में हम Aries मेषलग्न का पूरी तरह खुलासा करेंगे जिससे पाठकों को मेष लग्न के बारे में छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी जानकारी प्राप्त हो सके।

मेषलग्न में मंगल की स्थिति
मेष राशि का स्वामी मंगल होता है इस प्रकार मेषलग्न की कुण्डली में मंगल लग्नेश और अष्टमेश दो स्थानों के स्वामी होते हैं, इसका कारण- मंगल 12 राशियों में 2 राशि पहली राशि जो राशि चक्र की पहली राशि मेष के स्वामी हैं और दूसरी राशि जो राशि चक्र की 8वीं राशि वृश्चिक राशि के स्वामी होते हैं। Aries मेषलग्न किसी व्यक्ति के भाग्य को आकार देने में अद्वितीय महत्व रखती है। Aries मेषलग्न एक उग्र और मुखर लग्न के रूप में जानी जाती है, Aries मेषलग्न नई शुरुआत, नेतृत्व और गतिशीलता का प्रतीक भी है।
लग्नेश को अष्टमेश होने का दोष नहीं लगेगा
ज्योतिष शास्त्र के मतानुसार जब कोई ग्रह लग्न भाव के स्वामी के साथ साथ अष्टम भाव का भी स्वामी हो तो उस ग्रह को लग्नेश होने के कारण अष्टमेश होने का दोष नहीं लगता। यहां पर मंगल लग्न और अष्टम भाव के स्वामी होने पर भी अष्टमेश के दोश से दूर रहेंगे। यानी मेष लग्न में मंगल पूर्ण योग कारक माने जाएंगे मंगल के सानिध्य में आने से बुरे ग्रह भी ज्यादा बुरा नहीं कर सकेंगे।

Aries मेषलग्न में धनेश और सप्तमेष शुक्र
सौरमंडल में मेष राशि का स्थान 12 राशियों में सबसे पहले है कुंडली में जो दूसरा भाव होता है उसको मारकेश माना जाता है इस हिसाब से Aries मेषलग्न के द्वितीय भाव में शुक्र की जो पहली राशि और भचक्र की दूसरी राशि वृषभ आती है, इस कारण से मेषलग्न में शुक्र को मारकेश माना जाता है। पाठको आपको यहां पर ये बताना भी आवश्यक है कि कुण्डली के दूसरे भाव से धन का विचार करते हैं।
वहीं शुक्र की दूसरी राशि और भचक्र की सातवीं राशि तुला Aries मेषलग्न वालों के सप्तम भाव मे आती है। इसके कारण शुक्र Aries मेषलग्न में दो स्थान पहला धनेश (मारकेश) और दूसरा सप्तमेश स्थान का स्वामी होकर इस कुण्डली में योगकारक ग्रहों की गिनती से बाहर हो जाता है।

Aries मेषलग्न में पराक्रमेश और षष्ठेश बुध
Aries मेषलग्न की कुण्डली में तीसरे स्थान में बुध के स्वामित्व वाली भचक्र की तीसरी राशि, मिथुन राशि आती है। कुण्डली के तीसरे भाव को पराक्रम भाव बोला जाता है, जिसके कारण बुध को मेष लग्न में पराक्रम स्थान का स्वामी होने के कारण पराक्रमेश बोलते हैं।
बुध को भचक्र की दो राशियों का स्वामित्व प्राप्त है, जिसमें से पहले राशि मिथुन और दूसरी राशि कन्या है, कन्या भचक्र की छठवीं राशि है, जिसकी वजह से मेषलग्न की कुंडली में, कन्या राशि के छठवें स्थान में आने से बुध को षष्ठेश भी बोला जाता है। जन्म कुंडली में पराक्रम स्थान और छठवें स्थान का स्वामी होने के कारण बुध को भी, मेष लग्न की कुंडली में, योग कारक ग्रहों में नहीं गिना जाता।

मेषलग्न की कुंडली में सुखेश होते हैं चंद्रमा
ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को कर्क राशि का स्वामी माना जाता है कर्क राशि भाचक्र की चौथी राशि है इस हिसाब से मेष लग्न के कुंडली में चतुर्थ भाव मैं कर्क राशि आती है इस कर्क राशि का स्वामी चंद्रमा है इस चतुर्थ भाव को कुंडली में सुख भाव के नाम से जानते हैं अतः सुख भाव का स्वामी होने के कारण मेष लग्न में चंद्रमा को सुखेश माना जाता है मेष लग्न की कुंडली में चंद्रमा केंद्र स्थान के स्वामी होने के कारण योग कारक ग्रहों में आते हैं। मेष लग्न की कुंडली में चंद्रमा सुख देने वाला होता है.

मेषलग्न की कुंडली में पंचमेश होते हैं सूर्य
मेष लग्न भाचक्र की पहली राशि है इसके पंचम भाव में भाचक्र की पंचम राशि सिंह आती है सिंह राशि के स्वामी सूर्य है पंचम भाव में सूर्य अधिष्ठित सिंह राशि के होने से सूर्य को पंचमेश माना जाता है कुंडली में त्रिकोण स्थान के स्वामी होने के कारण मेष लग्न की कुंडली में सूर्य अत्यंत योग कारक ग्रहों में आते हैं। मेष लग्न वालों के लिए सूर्य अच्छे फल जैसे संतान विद्या जनता का पैसा आज देने वाला होता है।

मेषलग्न की कुंडली में भाग्येश और व्ययेश होते हैं बृहस्पति
प्रिया पाठको हमने आपको छठवें भाव, सातवें भाव और आठवें भाव के बारे में, ऊपर बता दिया हैं। अब आगे इस क्रम में आगे बढ़ते हैं, और बात करते हैं भाग्य स्थान की, मेषलग्न की कुंडली में भाग्य स्थान में जो राशि आती है, उसका नाम है धुन, इस राशि के स्वामी बृहस्पति हैं, जिसके कारण बृहस्पति को भाग्येश माना जाता है। बृहस्पति भचक्र की नवमी राशि धनु के साथ-साथ, 12वीं राशि मीन के भी स्वामी हैं।
मेषलग्न की कुंडली में, मीन राशि व्यय स्थान में आती है, जिसके कारण गुरुदेव बृहस्पति को मेषलग्न की कुंडली में भाग्य स्थान के साथ-साथ व्ययेश भी बोला जाता है। एक त्रिकोण के साथ में व्यय स्थान के स्वामी होने के उपरांत भी बृहस्पति को मेषलग्न की कुंडली में अत्यंत योग कारक ग्रहों में गिना जाता है।

मेषलग्न की कुण्डली में राज्येश और लाभेश होते हैं शनि
मेषलग्न की कुण्डली में अब जो भाव बचे हैं उनका वर्णन करता हूँ। 12 भावों में अब केवल 2 भाव ऐसे हैं जिनकी बात अभी नहीं कि गई है वो भाव हैं 10वां और 11वां यहाँ पर हम अपने पाठकों को बता दें कि 10वें भाव को जन्मकुंडली के अंदर राज्येश और 11वें भाव को लाभेश बोलते हैं.
मेषलग्न की कुण्डली में इन दोनों ही भाव यानी 10वें भाव मे मकर राशि आने से शनि को राज्येश का स्थान प्राप्त है, तथा 11वें भाव में शनि की ही राशि कुम्भ के आने से शनि को लाभेश का भी स्थान प्राप्त है, प्रिय पाठकों यहां पर इन दोनों राज्य स्थान और लाभ स्थान का स्वामी होने पर भी मेषलग्न की कुण्डली में शनि पापफल देने वाला होता है और इसकी गिनती मारक ग्रहों में होती है।
मेषलग्न में राहु और केतु
मेषलग्न में अगर राहु केतु की बात करें तो राहु केतु को कोई भी स्वतंत्र राशियां प्राप्त नहीं हैं, जिसकी वजह से इनका कोई स्वतंत्र अधिपत्य किसी राशि पर नहीं है इसलिए ये अपने स्वाभाविक फल ही प्रदाता है, इनके फल जिस राशि मे ये बैठते हैं उसी अनुसार होते हैं। आगे जैसे जैसे फल कथन बतलाएँगे राहु केतु स्पष्ट होते जाएंगे।