सुतभाव का विचार: कुण्डली का 5 वां भाव

सुतभाव का विचार

सुतभाव का विचार: कुण्डली का 5 वां भाव


नमस्कार मित्रों! जय सियाराम, मेरा नाम राशि है। आप देख रहे हैं, एस्ट्रोलॉजी ए डिस्कवरी चैनल। आज के कार्यक्रम का शीर्षक है ” सुतभाव का विचार”।

इस कार्यक्रम सुतभाव का विचार में, मैं आपकी होस्ट हूं। मैं ज्योतिष संजीव कुमार चतुर्वेदी की ओर से, इस कार्यक्रम में, आपके साथ रहूंगी। आज हम इस कार्यक्रम में, कुण्डली के सुत भाव, जो कि पंचम भाव होता है। उससे संतान का विचार करेंगे।

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प्रिय दर्शकों, ये चित्र जो आपके सामने बना हुआ है, इसमें जहाँ लाल निशान आ और जा रहा है, यही कुण्डली का पंचम भाव होता है। ध्यान रहे, इस पंचम भाव में, 1 से लेकर 12 तक, कोई भी गिनती लिखी हो सकती है, लेकिन जन्म कुण्डली का यह स्थान, सदैव पंचम भाव ही गिना जाएगा।

सुतभाव का विचार, सुतभाव जन्य पदार्थ का परिज्ञानः-

आइए, बिना बिलम्ब किये बताते हैं कि, कुण्डली के पंचम भाव से, क्या विचार करें?

सुतभाव का विचार : पुत्र, गर्भ स्थिति, नीति स्थिति, बुद्धि, विद्या, उदर, देव सेवा, प्रबन्ध, यंत्र, मंत्र, पितृ स्वभाव, विवेक, महल, मंत्री, शक्ति और पुण्य इन सब वस्तुओं का पञ्चम भाव में विचार करे ।

मित्रो संतान विचार ( सुतभाव का विचार ) कहाँ से करना चाहिए? इस प्रश्न का उत्तर है।
1- चंद्र,से पंचम भाव। यानी कुण्डली के जिस भाव में, चन्द्रमा विराजमान हों, उससे जो पंचम भाव हो, उससे संतान का विचार करें।
2- लग्न से पंचम भाव। यानी लग्न भाव से, जो पंचम भाव हो, उससे संतान का विचार करें।
3- गुरु से पंचम भाव। यानी कुण्डली के जिस भाव में, गुरु विराजमान हों, उससे जो पंचम भाव हो, उससे संतान का विचार करें।

सुतभाव का विचार
इस कुण्डली में जहाँ पुत्र लिखा है वही से सुतभाव का विचार करते हैं।

तथा

सप्तम भाव से, जो पंचम स्थान हो, उससे संतान का विचार करें। इसके अलावा नवमेश, पचमेश, सप्तमेश तथा गुरु से सन्तान का विचार करे ।

सन्तान प्राप्ति की संभावना का परिज्ञान:-

लग्न तथा चन्द्र, इन दोनों में से, जो अधिक बली हो, उससे जो पञ्चम स्थान है। वह पुत्र स्थान होता है सुतभाव का विचार।

उक्त स्थान में यदि शुभ की राशि हो, अपने स्वामी अथवा सुस्थान ( १, २, ३, ४, ५, ७, ९, १०, ११, के स्वामी शुभ ग्रह से युक्त, तथा दृष्ट हों, एवं शुभ ग्रहों के मध्य में हो, पापग्रहों से, वा अस्तगत, नीचगत वा, शत्रु राशिगत ग्रहों से, युक्त तथा दृष्ट न हो, एवं गुरु तथा पञ्चमेश दोनों बली हों और सुस्थान में हो, अथवा पञ्चन तथा पञ्चमेश वे दोनों शुभ युक्त और शुभ दृष्ट हो, तो सन्तान की प्राप्ति कही है।

हमने जो आपको ऊपर बताया यदि उक्त प्रकार से ग्रह स्थितियां विपरीत हों तो सन्तान की प्राप्ति नहीं होती है। ऐसा समझना चाहिए।

सन्तान कारक ग्रह कथन:-

केन्द्रे, कोणे,शौर्ययुक्ति, संतानाप्तिः सम्भावना, सौम्यादृष्टे, कोणस्ताङ्गागाकाव्ययेज्य, कोणचन्द्राकारः, कारकः, सन्ततेः स्युः।

केंद्र वा त्रिकोण में बली पंचमेश हो, और वह शुभ ग्रह से युक्त और दृष्टांत हो, तो संतान की प्राप्ति संभव है। पंचम, नवम, सप्तम तथा दशम इन चार भावों के स्वामी एवं शुक्र, गुरु, शनि, चन्द्र तथा रवि मंगल ये दस ग्रह सन्तानकारक होते है।

आज के कार्यक्रम को, आगे जारी रखेंगे, आज हमने अपने पाठकों को जो जानकारी दी है यह जानकारी आगे के लेखों में भी आपको प्राप्त होती रहेगी आप साथ बने रहें इसी आशा के साथ इस लेख के साथ आपको छोड़ कर जा रहा हूँ, आपके कोई प्रश्न हों तो आप कमेंट बॉक्स में लिख भेजें जल्दी से जल्दी आपके प्रश्नो के जबाब दिए जायेंगे। तब तक के लिए, मुझे आज्ञा दें आपका आने वाला दिन शुभ हो नमस्कार जयसियाराम।

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