शुक्र गृह व उसकी उपासना

शुक्र गृह व उसकी उपासना 



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शुक्र देव  


शुक्र जिसका संस्कृत भाषा में एक अर्थ है शुद्धस्वच्छभृगु ऋषि के पुत्र एवं दैत्यगुरु शुक्राचार्य का प्रतीक शुक्र ग्रह है। भारतीय ज्योतिष में इसकी नवग्रह में भी गिनती होती है। यह सप्तवारों में शुक्रवार का स्वामी होता है। यह श्वेत वर्णीमध्यवयःसहमति वाली मुखाकृति के होते हैं। इनको ऊंटघोड़े या मगरमच्छ पर सवार दिखाया जाता है। ये हाथों में दण्डकमलमाला और कभीकभार धनुष बाण भी लिये रहते हैं.उषानस एक वैदिक ऋषि हुए हैं जिनका पारिवारिक उपनाम था काव्य (कवि के वंशजअथर्व वेद अनुसार जिन्हें बाद में उषानस शुक्र कहा गया)शुक्र नाम उच्चारण में शुक्ल से मिलता हुआ है जिसका अर्थ है श्वेत या उजला यह ग्रह भी श्वेत वर्ण का उज्ज्वल प्रकृति का ही है,यह नाम तृतीय मनु के सप्तऋषियों में से एक वशिष्ठ के पुत्र मरुत्वत का है।हविर्धन के एक पुत्र भव के अन्तर्गत्त यही मनु भौत्य आते हैं।उषानस नाम धर्मशास्त्र के रचयिता का भी है।

दैत्यगुरु शुक्राचार्य


शुक्र कवि ऋषि के वंशजों की अथर्वन शाखा के भार्गव ऋषि थे,श्रीमद्देवी भागवत के अनुसार इनकी माँ काव्यमाता थीं,शुक्र कुछकुछ स्त्रीत्व स्वभाव वाला ब्राह्मण ग्रह है,इनका जन्म पार्थिव नामक वर्ष (सालमें श्रावण शुद्ध अष्टमी को स्वाति नक्षत्र के उदय के समय हुआ था,कई भारतीय भाषाओं जैसे संस्कृततेलुगुहिन्दीमराठीगुजरातीओडियाबांग्लाअसमिया एवं कन्नड़ में सप्ताह के छठे दिवस को शुक्रवार कहा जाता है,शुक्र ऋषि अंगिरस के अधीन शिक्षा एवं वेदाध्ययन हेतु गयेकिन्तु अंगिरस द्वारा अपने पुत्र बृहस्पति का पक्षपात करने से वे व्याकुल हो उठे,तदोपरांत वे ऋषि गौतम के पास गये और शिक्षा ग्रहण की,बाद में इन्होंने भगवान शिव की कड़ी तपस्या की और उनसे संजीवनी मंत्र की शिक्षा ली। यह विद्या मृत को भी जीवित कर सकती है। इनका विवाह प्रियव्रत की पुत्री ऊर्जस्वती से हुआ और चार पुत्र हुएचंडअमर्कत्वस्त्रधारात्र एवं एक पुत्री देवयानी,इस समय तक बृहस्पति देवताओं के गुरु बन चुके थे,शुक्र की माता का वध कर दिया गय आथाक्योंकि उन्होंने कुछ असुरों को शरण दी थी जिन्हें विष्णु ढूंढ रहे थे। इस कारण से इन्हें विष्णु से घृणा थी, शुक्राचार्य ने असुरों और दैत्यों का गुरु बनना निश्चित किया और बने तब इन्होंने दैत्यों को देवताओं पर विजय दिलायी और इन युद्धों में शुक्र ने मृतसंजीवनी से मृत एवं घायल दैत्यों को पुनर्जीवित कर दिया था,एक अन्य कथा के अनुसा भगवान विष्णु ने जब वामन अवतार लिया थातब वे त्रैलोक्य को दानस्वरूप ग्रहण करने राजा बलि के पास पहुंचे,विष्णु ने प्रह्लाद के पौत्र महाबलि से वामन के छद्म रूप में दान स्वरूप त्रैलोक्य ले लेने का प्रयास किया किन्तु शुक्राचार्य ने उन्हें पहचान लिया और राजा को आगाह कियाहालांकि राजा बलि अपने वचन का पक्का था और वामन देवता को मुंहमांगा दान दिया शुक्राचार्य ने बलि के इस कृत्य पर अप्रसन्न होकर स्वयं को अत्यंत छोटा बना लिया और राजा बलि के कमण्डल की चोंच में जाकर छिप गये इसी कमण्डलु से जल लेकर बलि को दान का संकल्प पूर्ण करना था तब विष्णु जी ने उन्हें पहचान कर भूमि से कुशा का एक तिनका उठाया और उसकी नोक से कमण्डलु की चोंच को खोल दिया इस नोक से शुक्राचार्य की बायीं आंख फ़ूट गयी तब से शुक्राचार्य काने ही कहलाते हैं,शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी को विवाह प्रस्ताव हेतु बृहस्पति के पुत्र कच ऋषि ने ठुकरा दिया था कालांतर में उसका विवाह ययाति से हुआ और उसी से कुरु वंश की उत्पत्ति हुई,महाभारत के अनुसार शुक्राचार्य भीष्म के गुरुओं में से एक थे इन्होंने भीष्म को राजनीति का ज्ञानकराया था।

ज्योतिष में शुक्र 


भारतीय ज्योतिष के अनुसार शुक्र लाभदाता ग्रह माना गया है यह वृषभ एवं तुला राशियों का स्वामी है शुक्र मीन राशि में उच्च भाव में रहता है और कन्या राशि में नीच भाव में रहता है बुध और शनि शुक्र के सखा ग्रह हैं जबकि सूर्य और चंद्र शत्रु ग्रह हैं तथा बृहस्पति तटस्थ ग्रह माना जाता है ज्योतिष के अनुसार शुक्र रोमांसकामुकताकलात्मक प्रतिभाशरीर और भौतिक जीवन की गुणवत्ताधनविपरीत लिंगखुशी और प्रजननस्त्रैण गुण और ललित कलासंगीतनृत्यचित्रकला और मूर्तिकला का प्रतीक है जिनकी कुण्डली में शुक्र उच्च भाव में रहता है उन लोगों के लिए प्रकृति की सराहना करना एवं सौहार्दपूर्ण संबंधों का आनंद लेने की संभावना रहती है। हालांकि शुक्र का अत्यधिक प्रभाव उन्हें वास्तविक मूल्यों के बजाय सुख में बहुत ज्यादा लिप्त होने की संभावना रहती है शुक्र तीन नक्षत्रों का स्वामी हैभरणीपूर्वा फाल्गुनी और पूर्वाषाढ़ा,
कुण्डली में शक्ति वाले भाव : द्वितीयतृतीयसप्तम एवं द्वादश
कुण्डली में अशक्त भाव : छठा एवं अष्टम

कुण्डली में मध्यम शक्ति भाव : प्रथमचतुर्थपंचमनवमदशम एवं एकादश


शुक्र का महत्त्व

शुक्र जीवनसंगीप्रेमविवाहविलासितासमृद्धिसुखसभी वाहनोंकलानृत्यसंगीतअभिनयजुनून और काम का प्रतीक है शुक्र के संयोग से ही लोगों को इंद्रियों पर संयम मिलता है और नाम  ख्याति पाने के योग्य बनते हैं,शुक्र के दुष्प्रभाव से त्वचा पर नेत्र रोगोंयौन समस्याएंअपचकील,मुहासेनपुंसकताक्षुधा की हानि और त्वचा पर चकत्ते हो सकते है,वैदिक ज्योतिष के अनुसार ग्रहीय स्थिति दशा होती हैजिसे शुक्र दशा कहा जाता है यह जातक पर २० वर्षों के लिये सक्रिय होती है यह किसी भी ग्रह दशा में सबसे लंबी होती है, इस दशा में जातक की जन्मकुण्डली में शुक्र सही स्थान पर होने से उसे कहीं अधिक धनसौभाग्य और विलासिता सुलभ हो जाती है इसके अलावा कुण्डली में शुक्र अधिकतर लाभदायी ग्रह माना जाता है। शुक्र हिन्दू कैलेण्डर के माह ज्येष्ठ का स्वामी भी माना गया है। यह कुबेर के खजाने का रक्षक माना गया है। शुक्र के प्रिय वस्तुओं में श्वेत वर्णधातुओं में रजत एवं रत्नों में हीरा है इसकी प्रिय दशा दक्षिणपूर्व हैऋतुओं में वसंत ऋतु तथा तत्त्व जल है,चंद्र मंडल से  लाख योजन ऊपर कुछ तारे हैं इन तारों के ऊपर ही शुक्र मंडल स्थित हैजहां शुक्र का निवास है इनका प्रभाव पूरे ब्रह्मांड के निवासियों के लिये शुभदायी होता है तारों के समूह के १६ लाख मील ऊपर शुक्र रहते हैं यहां शुक्र लगभग सूर्य के समान गति से ही चलते हैं कभी शुक्र सूर्य के पीछे रहते हैंकभी साथ में तो कभी सूर्य के आगे रहते हैं शुक्र वर्षाविरोधी ग्रहों के प्रभाव को समाप्त करता है परिणामस्वरूप इसकी उपस्थिति वर्षाकारक होती है अतः ब्रह्माण्ड के सभी निवासियों के लिये शुभदायी कहलाता है। यह प्रकाण्ड विद्वानों द्वारा मान्य तथ्य है शिशुमार के ऊपरी चिबुक पर अगस्ति और निचले चिबुक पर यमराज रहते हैंमुख पर मंगल एवं जननांग पर शनिगर्दन के पीछे बृहस्पति एवं छाती पर सूर्य तथा हृदय की पर्तों के भीतर स्वयं नारायण निवास करते हैं इनके मस्तिष्क में चंद्रमा तथा नाभि में शुक्र तथा स्तनों पर अश्विनी कुमार रहते हैं इनके जीवन में वायु जिसे प्राणपन कहते हैं बुध हैगले में राहु का निवास है पूरे शरीर भर में पुच्छल तारे तथा रोमछिद्रों में अनेक तारों का निवास है। शुक्र का रत्न हीरा है उपरत्न में जरकन है। 

ख़राब शुक्र के उपाय 


इस ग्रह के पीड़ित होने पर ग्रह शांति के लिए व्यक्ति को को सफ़ेद रंग का घोड़ा दान करना चाहिए। इसके अलावा रंगीन वस्त्र, रेशमी कपडें, घी, सुंगंध, चीनी, खाने वाला तेल, चन्दन, कपूर आदि का दान करना शुक्र को शांत करने में मदद करता है। शुक्र ग्रह से संबंधित रत्न का दान करने से भी लाभ मिलता है। ऊपर बताई गयी सभी वस्तुओं का दान शुक्रवार के दिन संध्या काल के समय किसी युवती को देना अच्छा होता है। अगर आपको काफी लंबे से शुक्र गर्भ की परेशानी रही है तो इसके लिए शुक्रवार का व्रत करना आरंभ कर दें। शुक्र ग्रह की शांति के लिए शुक्रवार के दिन सुंगंध, घी और सुगन्धित तेल का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इसके अलावा कुछ अन्य छोटे उपाय है जिनकी मदद से आप शुक्र ग्रह को शांत कर सकते है।
1.   नियमित रूप से काली चींटियों को चीनी खिलाएं।
2.   शुक्रवार के दिन सफ़ेद गाय को स्वच्छ आटा खिलाएं।
3.   किसी काणे() व्यक्ति को सफ़ेद वस्त्र और सफ़ेद मिष्ठान दान करें।
4.   किसी जरुरी कार्य को करने जाने से पहले 10 वर्ष से छोटी आयु की कन्या के चरण स्पर्श करके आशीर्वाद ले लें।
5.   अपने घर में सफ़ेद पत्थर लगवाएं।
6.   किसी गरीब कन्या के विवाह में कन्यादान करें।
7.   यदि संभव हो तो शुक्रवार के दिन गाय के दूध से नहायें।
8.   कौवों को मिठाइयां और खीर आदि खिलाएं।
9.   ब्राह्मणों और गरीबों को घी चावल खिलाएं।
10.अपने भोजन से एक हिस्सा निकालकर गाय को खिलाएं।
11. मंदिर में गाय का शुद्ध देशी घी का दीपक दान दें। 
12. इत्र का प्रयोग अपने शरीर पर करें, और जितना हो शरीर को स्वक्छ रखें। 
13. चांदी , दही , कपूर , मोती , हीरा का दान दें। माता लक्ष्मी की पूजा करें। 

शुक्र देव के मंत्र 


१. ॐ नमो अर्हते भगवते श्रीमते पुष्पदंत तीर्थंकराय। अजितयक्ष महाकालियक्षी सहिताय आं क्रों ह्रीं ह्र:।। 
   शुक्र महाग्रह मम दुष्टग्रह। रोग कष् निवारणं सर्व शान्तिं कुरू कुरू हूं फट्।।
२.   ह्रीं श्रीं क्लीं शुक्रग्रह अरिष् निवारक श्री पुष्पदंत जिनेन्द्राय नम: शान्तिं कुरू कुरू स्वाहा  . 
३.   ह्रीं णमो अरिहंताणं 
तांत्रिक मंत्र
४. ॐ द्रां द्रीं द्रौं : शुक्राय नम: 
शुक्र गायत्री मंत्र 
५. ॐ  भृगुवंशजाताय विद्यमहे। श्वेतवाहनाय धीमहि।तन्नो : कवि: प्रचोदयात॥ 
नवग्रह शांति मंत्र 
६. ॐ ब्रह्मामुरारि त्रिपुरान्तकारी भानु: राशि भूमि सुतो बुध च।
   गुरू शुक्र: शनि राहु केतव: सर्वेग्रहा: शान्ति करा: भवन्तु।।

शुक्रदेव व्रत बिधि


शुक्र का व्रत 31 या 21 शुक्रवारों तक करना चाहिए। 
श्वेत वस्त्र धारण करके ‘ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:’ इस मंत्र का 21, 11 या 5 माला जप करें। भोजन में चावल, चीनी, दूध, दही और घी से बने पदार्थ सेवन करें। इस व्रत के करने से सुख-सौभाग्य और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है। 

शुक्रदेव की व्रतकथा


माणिकपुर नगर में कायस्थ, ब्राह्मण और वैश्य पुत्रों में गहरी मित्रता थी। वे अधिकतर साथ रहते थे। साथ ही भोजन करते थे और घंटो बैठकर बातें करते थे। तीनों को विवाह हो चुका था। ब्राह्मण और कायस्थ के लड़कों का गौनाहो चुका था, लेकिन वैश्यपुत्र का गौना अभी नहीं हुआ था। उसके दोस्तों ने एक दिन वैश्यपुत्र से कहा, अरे यार! तुम्हारे घर में नौकरचाकर हैं। धन के भण्डार हैं, लेकिन तुम्हारी पत्नी के बिना घर सूनासूनासा लगता है। तुम अपनी ससुराल जाकर अपनी पत्नीको ले क्यों नहीं आते? दोनों मित्रों के कहने पर वैश्यपुत्र धनराज ने अपनीपत्नी कुसुम को लाने का निश्चय कर लिया।

अगले दिन धनराज ने अपने मातापिता से कहा कि वह कुसुम को लेने ससुराल जा रहा है। उसकी बात सुनकर मातापिता हैरान होते हुए बोले, बेटे! अभी शुक्रअस्त हो रहा है। इसलिए अभी कुसुम को लाना उचित नहीं है। कुछ दिन ठहर जा। लेकिन धनराज अपनी जिद पर अड़ा हुआ था। वह नहीं माना। धनराज ससुराल पहुंचा तो उसके सासससुर ने बहुत जोरशोर से उसका स्वागत किया। धनराज की खूब आवभगत की गई। धनराज ने कुसुम को विदा करने के लिए कहा तो उसके सासससुर ने कहा, बेटे! अभी शुक्र अस्त हो रहा है। ऐसे समय लड़की को विदा नहीं करते। कुछ दिन ठहर जाओ। फिर हम खुशीखुशी विदा कर देंगे। धनराज ने उसी दिन विदा करने की जिद की तो सबने धनराज को समझाया, लेकिन उसने किसी की बात नहीं मानी। आखिर हारकर सासससुर को कुसुम को विदा करना पड़ा।

अपनी पत्नी कुसुम को विदा कराकर धनराज अपने घर के लिए चल पड़ा। रथ में लौटते हुए अचानक बैलों को जाने क्या हुआ कि वे आगे की ओर तेजी से दौड़ पड़े। रास्ते में पड़े पत्थर से टकरानेके कारण रथ का पहिया टूट गया। नीचे गिरने से कुसुम को चोट लगी। दोनों को आगे की यात्रा पैदल ही करनी पड़ी। सुनसान रास्ते से गुजरते हुए डाकुओं ने उन्हें लूट लिया। उनका सारा धन, आभूषण और वस्त्र तक छीन लिए। किसी तरह मरतेगिरते दोनों घर पहुंचे। घर में आराम करते हुए धनराज के बिस्तर पर एक सांप चढ़ गया और उसने धनराज को काट लिया। सेठजी ने बड़ेबड़े चिकित्सकबुलाकर सांप का विष नष्ट करने को कहा,लेकिन कोई चिकित्सक सफल नहीं हुआ। दूरदूर से संपेरे बुलाए गए, लेकिन कोई भी धनराज को नहीं बचा सका। धनराज की मृत्यु हो गई। तब पण्डितों ने सेठ से कहा, सेठजी! आपके बेटे ने शुक्र अस्त होने पर बहू को विदा करा लाने कीभूल की है। यदि आप शुक्रवार की पूजाअर्चना करें और बेटे की बहू शुक्रवार का व्रत करे तथा कथा सुनकर प्रसाद ग्रहण करे तो शुक्रदेवता की अनुकम्पा से धनराज पुनः जीवित हो सकता है।

सेठजी ने पण्डितों की बात मानकर अपनेमृत बेटे और बहू को वापस भेज दिया। कुसुम ने अपने घर पहुंचकर शुक्रवार का व्रत और पूजापाठ किया। उसने अपने पति की गलती के लिए शुक्र देवता से क्षमा मांगी। तभी धनराज उठ बैठा। धनराज के जीवित हो जाने से घर भर में खुशियां भर गईं। उधर धनराज के मातापिता ने बेटे के जीवित होने का समाचार सुना तो शुक्रवार का व्रत किया और गरीबों को अन्न, वस्त्र और धनका दान दिया। शुक्र के उदय हो जाने परधनराज अपनी पत्नी कुसुम के साथ घर लौट आया। दोनों पतिपत्नी शुक्रवार का विधिवत व्रत करते हुए शुक्र की पूजा करने लगे। उन के घर में धनधान्यकी वर्षा होने लगी। उनके सभी कष्ट दूर होते चले गए। परिवार में सभी आनन्दपूर्वक रहने लगे।


माँ वैभव लक्ष्मी


माँ वैभव लक्ष्मीका व्रत शीघ्र फलदायी है। अगर फल शीघ्र ना मिलें तो एक महीने के बाद फिर से इसे शुरु करना चाहिए और जब तक इच्छानुसार फल ना मिले तब तक व्रत तीनतीन महीने पर करते रहना चाहिए।

इस व्रत को परिवार का कोई भी सदस्य कर सकता है। यदि घर की स्त्रियाँ इस व्रत को करें तो अति उत्तम माना जाता है।लेकिन यदि परिवार में कोई विवाहित स्त्री ना हो तो कुँवारी कन्या भी इस व्रत को कर सकती है। यदि घर के पुरुष इस व्रत को करें तो अति उत्तम फल देनेवाला कहा जाता है।यह व्रत प्रत्येक शुक्रवार को किया जाता है। इस व्रत को शुरु करने से पहले यह तय कर लें की आप कितने शुक्रवार तक यह व्रत करेंगे। ( जैसे -11,21, इत्यादि) जब आप व्रत आरम्भ करें तभी यह संकल्प करें कि आप इस व्रत को 11 या 21 या और अधिक शुक्रवार तक करेंगे तथा व्रत समाप्त होने पर यथापूर्वक उद्यापन करेंगे।व्रत के शुक्रवार को स्त्री रजस्वला हो या सूतकी हो अथवा यदि आप घर से बाहर हों तो उस शुक्रवार को व्रत ना करें। हमेशा व्रत अपने घर पर ही करें।यह व्रत पूरी श्रद्धा और पवित्र भाव से करना चाहिए। बिनाभाव से या अप्रसन्न होकर यह व्रत नहीं करना चाहिए।एक बार व्रत पूरा होने के बाद दोबारा से फिर मन्नत मान कर व्रत कर सकते हैं। माता लक्ष्मी देवी के अनेक स्वरूप हैं। उनमें उनकाधनलक्ष्मीस्वरूप हीवैभवलक्ष्मीहै और माता लक्ष्मी को श्रीयंत्र अति प्रिय है। व्रत करते समय माता लक्ष्मी के विविध स्वरूप यथा श्रीगजलक्ष्मी, श्री अधिलक्ष्मी, श्री विजयलक्ष्मी, श्री ऐश्वर्यलक्ष्मी, श्री वीरलक्ष्मी, श्री धान्यलक्ष्मी एवं श्री संतानलक्ष्मी तथा श्रीयंत्र को प्रणाम करना चाहिए।व्रत के दिन सुबह से हीजय माँ लक्ष्मी’, ‘जय माँ लक्ष्मीका स्मरण मन ही मन करना चाहिए और माँ का पूरे भाव से ध्यान करना चाहिए। शुक्रवार के दिन यदि आप घर से बाहर या यात्रा पर गये हों तो वह शुक्रवार छोड़कर उनके बाद के शुक्रवार को व्रत करना चाहिए अर्थात् व्रत अपने ही घर में करना चाहिए। कुल मिलाकर जितने शुक्रवार की मन्नत ली हो, उतने शुक्रवार पूरे करने चाहिए। घर में सोना हो तो चाँदी की चीज पूजा में रखनी चाहिए। अगर वह भी हो तो सिक्का या रुपया रखना चाहिए।व्रत पूरा होने पर कम से कम सात स्त्रियों को या अपनी सामर्थ्य अनुसार जैसे 11, 21, 51 या 101 स्त्रियों को वैभवलक्ष्मी व्रत की पुस्तक कुमकुम का तिलक करके भेंट के रूप में देनी चाहिए। जितनी ज्यादा पुस्तक आप देंगे उतनी माँ लक्ष्मी की ज्यादा कृपा होगी और माँ लक्ष्मी जी के इस अद्भुत व्रत का ज्यादा प्रचार होगा।व्रत की विधि शुरु करते वक्तलक्ष्मी स्तवनका एक बार पाठ करना चाहिए।व्रत के दिन हो सके तो उपवास करना चाहिए और शाम को व्रत की विधि करके माँ का प्रसाद लेकर व्रत करना चाहिए। अगर हो सके तो फलाहार या एक बार भोजन कर के शुक्रवार का व्रत रखना चाहिए। अगर व्रतधारी का शरीर बहुत कमजोर हो तो ही दो बार भोजन ले सकते हैं। सबसे महत्व की बात यही है कि व्रतधारी माँ लक्ष्मी जी पर पूरीपूरी श्रद्धा और भावना रखे औरमेरी मनोकामना माँ पूरी करेंगी ही’, ऐसा दृढ़ विश्वास रखकर व्रत करे।


व्रत के लिएआवश्यक सामग्री


श्री यंत्र का चित्र, माँ वैभव लक्ष्मीका चित्र, श्रीधान्य लक्ष्मी काचित्र , श्री गजलक्ष्मी का चित्र, श्री अधिलक्ष्मी का चित्र, श्री विजयलक्ष्मी का चित्र, श्री ऐशवर्यलक्ष्मी काचित्र, श्री वीरलक्ष्मी का चित्र, श्री धन लक्ष्मीका चित्र, श्रीसंतान लक्ष्मी काचित्र इनमें से कोई एक हो। 
आसन ( बैठने के लिये), चावल, सोना, चाँदी या रुपया, धूप, दीप, लालफूल, चौकी या पाटा, लालकपड़ा, कलश (ताम्बे का), घी, कटोरी (कलश कोढ़कने के लिये), नैवेद्य, फल(केला), हल्दी, कुमकुम। 

पूजन विधि


शुक्रवारके दिन सुबहस्नान करके पवित्रहो जायें औरसारे दिन माँके स्वरूप कास्मरण करें ।दियेगये सारी सामग्रीएकत्रित कर लें।शामको स्वच्छ वस्त्रपहन कर, पूजनकरने वाले स्त्रीया पुरुष ,पूर्वदिशा की ओरमुख करके आसनपर बैठ जाएँ।अब चौकी परलाल वस्त्र बिछाएँ उस परवैभव लक्ष्मी जीके सभी आठचित्र तथा बीचमें श्री यंत्ररखें ।चौकी परचावल का ढ़ेररखें, उसपर जलसे भरा हुआताम्बे का कलशरखें। कलश केउपर कटोरी मेंसोने या चाँदीका गहना अथवासिक्का या रूपयारखकर कलश कोढ़क दें।
अब सर्वप्रथमश्री यंत्रका ध्यान करेंउसके बादमाँवैभव लक्ष्मीजीके सभी आठस्वरूपों का ध्यानकर दोनों हाथजोड़कर दिये हुएप्रार्थना को उच्चारितकरते हुए नमस्कारकरें। बाद मेंग्यारह या इक्कीसशुक्रवार यह व्रतकरने का दृढसंकल्प माँ केसामने करें औरआपकी जो मनोकामनाहो वह पूरीकरने को माँलक्ष्मीजी से विनतीकरें।

श्लोक


या रक्ताम्बुजवासिनी विलसिनी चण्डांशु तेजस्विनी।

या रक्त रूधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी।।

या रत्नाकरमन्थनात्प्रगंटिता विष्णोस्वया गेहिनी।

सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती।।

लक्ष्मी स्तवन का हिन्दी में भावार्थ


जो लाल कमलमें रहती है, जो अपूर्व कंातिवालीहै, जो असहृयतेजवाली है, जोपूर्ण रूप सेलाल है, जिसनेरक्तरूप वस्त्र पहने हैं, जो भगवान विष्णुको अतिप्रिय है, जो लक्ष्मी मनके आनन्द देतीहै, जो समुद्रमंथसे प्रकट हुईहै, जो विष्णुभगवान की पत्नीहै, जो कमलसे जन्मी हैंऔर जो अतिशयशून्य है, वैसीहे लक्ष्मी देवी! आप मेरी रक्षाकरें।

वैभव लक्ष्मी व्रत की कथा


किसी शहर मेंअनेक लोग रहतेथे. सभी अपनेअपने कामोंमें लगे रहतेथे. किसी कोकिसी की परवाहनहीं थी. भजनकीर्तन, भक्तिभाव, दयामाया, परोपकारजैसे संस्कार कमहो गए. शहरमें बुराइयां बढ़गई थीं. शराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरीडकैती वगैरहबहुत से गुनाहशहर में होतेथे. इनके बावजूदशहर में कुछअच्छे लोग भीरहते थे.

ऐसे ही लोगोंमें शीला औरउनके पति कीगृहस्थी मानी जातीथी. शीला धार्मिकप्रकृति की औरसंतोषी स्वभाव वाली थी. उनका पति भीविवेकी और सुशीलथा. शीला औरउसका पति कभीकिसी की बुराईनहीं करते थेऔर प्रभु भजनमें अच्छी तरहसमय व्यतीत कररहे थे. शहरके लोग उनकीगृहस्थी की सराहनाकरते थे.
देखते ही देखतेसमय बदल गया. शीला का पतिबुरे लोगों सेदोस्ती कर बैठा. अब वह जल्दसे जल्द करोड़पतिबनने के ख्वाबदेखने लगा. इसलिएवह गलत रास्तेपर चल पड़ाफलस्वरूप वह रोडपतिबन गया. यानीरास्ते पर भटकतेभिखारी जैसी उसकीहालत हो गईथी. शराब, जुआ, रेस, चरसगांजावगैरह बुरी आदतोंमें शीला कापति भी फंसगया. दोस्तों केसाथ उसे भीशराब की आदतहो गई. इसप्रकार उसने अपनासब कुछ रेसजुए मेंगंवा दिया.
शीला को पतिके बर्ताव सेबहुत दुःख हुआ, किन्तु वह भगवानपर भरोसा करसबकुछ सहने लगी. वह अपना अधिकांशसमय प्रभु भक्तिमें बिताने लगी. अचानक एक दिनदोपहर को उनकेद्वार पर किसीने दस्तक दी. शीला ने द्वारखोला तो देखाकि एक माँजीखड़ी थी. उसकेचेहरे पर अलौकिकतेज निखर रहाथा. उनकी आँखोंमें से मानोअमृत बह रहाथा. उसका भव्यचेहरा करुणा औरप्यार से छलकरहा था. उसकोदेखते ही शीलाके मन मेंअपार शांति छागई. शीला केरोमरोम मेंआनंद छा गया. शीला उस माँजीको आदर केसाथ घर मेंले आई. घरमें बिठाने केलिए कुछ भीनहीं था. अतःशीला ने सकुचाकरएक फटी हुईचद्दर पर उसकोबिठाया.
मांजी बोलींक्यों शीला! मुझे पहचाना नहीं? हर शुक्रवार कोलक्ष्मीजी के मंदिरमें भजनकीर्तनके समय मैंभी वहां आतीहूं.’ इसके बावजूदशीला कुछ समझनहीं पा रहीथी. फिर मांजीबोलीं– ‘तुम बहुतदिनों से मंदिरनहीं आईं अतःमैं तुम्हें देखनेचली आई.’
मांजी के अतिप्रेमभरे शब्दों से शीलाका हृदय पिघलगया. उसकी आंखोंमें आंसू गए और वहबिलखबिलखकर रोनेलगी. मांजी नेकहा– ‘बेटी! सुखऔर दुःख तोधूप और छाँवजैसे होते हैं. धैर्य रखो बेटी! मुझे तेरी सारीपरेशानी बता.’
मांजी के व्यवहारसे शीला कोकाफी संबल मिलाऔर सुख कीआस में उसनेमांजी को अपनीसारी कहानी कहसुनाई.
कहानी सुनकर माँजी नेकहा– ‘कर्म कीगति न्यारी होतीहै. हर इंसानको अपने कर्मभुगतने ही पड़तेहैं. इसलिए तूचिंता मत कर. अब तू कर्मभुगत चुकी है. अब तुम्हारे सुखके दिन अवश्यआएँगे. तू तोमाँ लक्ष्मीजी कीभक्त है. माँलक्ष्मीजी तो प्रेमऔर करुणा कीअवतार हैं. वेअपने भक्तों परहमेशा ममता रखतीहैं. इसलिए तूधैर्य रखकर माँलक्ष्मीजी का व्रतकर. इससे सबकुछ ठीक होजाएगा.’
शीला के पूछनेपर मांजी नेउसे व्रत कीसारी विधि भीबताई. मांजी नेकहा– ‘बेटी! मांलक्ष्मीजी का व्रतबहुत सरल है. उसेवरदलक्ष्मी व्रतयावैभव लक्ष्मीव्रतकहा जाताहै. यह व्रतकरने वाले कीसब मनोकामना पूर्णहोती है. वहसुखसंपत्ति औरयश प्राप्त करताहै.’
शीला यह सुनकरआनंदित हो गई. शीला ने संकल्पकरके आँखें खोलीतो सामने कोई था. वहविस्मित हो गईकि मांजी कहांगईं? शीला कोतत्काल यह समझतेदेर लगीकि मांजी औरकोई नहीं साक्षात्लक्ष्मीजी ही थीं.
दूसरे दिन शुक्रवारथा. सबेरे स्नानकरके स्वच्छ कपड़ेपहनकर शीला नेमांजी द्वारा बताईविधि से पूरेमन से व्रतकिया. आखिरी मेंप्रसाद वितरण हुआ. यहप्रसाद पहले पतिको खिलाया. प्रसादखाते ही पतिके स्वभाव मेंफर्क पड़ गया. उस दिन उसनेशीला को मारानहीं, सताया भीनहीं. शीला कोबहुत आनंद हुआ. उनके मन मेंवैभवलक्ष्मी व्रतके लिएश्रद्धा बढ़ गई.
शीला ने पूर्णश्रद्धाभक्ति से इक्कीसशुक्रवार तकवैभवलक्ष्मीव्रतकिया. इक्कीसवेंशुक्रवार को माँजीके कहे मुताबिकउद्यापन विधि करके सात स्त्रियोंकोवैभवलक्ष्मी व्रतकी सात पुस्तकेंउपहार में दीं. फिर माताजी केधनलक्ष्मी स्वरूपकी छबिको वंदन करकेभाव से मनही मन प्रार्थनाकरने लगीं– ‘हेमां धनलक्ष्मी! मैंनेआपकावैभवलक्ष्मी व्रतकरने की मन्नतमानी थी, वहव्रत आज पूर्णकिया है. हेमां! मेरी हरविपत्ति दूर करो. हमारा सबका कल्याणकरो. जिसे संतान हो, उसेसंतान देना. सौभाग्यवतीस्त्री का सौभाग्यअखंड रखना. कुंआरीलड़की को मनभावनपति देना. जोआपका यह चमत्कारीवैभवलक्ष्मी व्रत करे, उनकी सब विपत्तिदूर करना. सभीको सुखी करना. हे माँ! आपकीमहिमा अपार है.’ ऐसा बोलकर लक्ष्मीजीकेधनलक्ष्मी स्वरूपकी छबि कोप्रणाम किया.
व्रत के प्रभावसे शीला कापति अच्छा आदमीबन गया औरकड़ी मेहनत करकेव्यवसाय करने लगा. उसने तुरंत शीलाके गिरवी रखेगहने छुड़ा लिए. घर में धनकी बाढ़ सी गई. घरमें पहले जैसीसुखशांति छागई. ‘वैभवलक्ष्मी व्रतका प्रभाव देखकरमोहल्ले की दूसरीस्त्रियां भी विधिपूर्वकवैभवलक्ष्मी व्रतकरने लगीं। 

वैभव लक्ष्मी व्रत उद्यापन विधि


सात, ग्यारह या इक्कीस, जितने भी शुक्रवारोंकी मन्नत माँगीहो, उतने शुक्रवारतक यह व्रतपूरी श्रद्धा तथाभावना के साथकरना चाहिए. आखिरीशुक्रवार को इसकाशास्त्रीय विधि केअनुसार उद्यापन करना चाहिए.
आखिरी शुक्रवार को प्रसादके लिए खी बनानीचाहिए. जिस प्रकारहर शुक्रवार कोहम पूजन करतेहैं, वैसे हीकरना चाहिए. पूजनके बाद माँके सामने एकश्रीफल फोड़ें फिर कमसे कम सातकुंआरी कन्याओं या सौभाग्यशालीस्त्रियों को कुमकुमका तिलक लगाकरमां वैभवलक्ष्मी व्रतकथा की पुस्तककी एकएकप्रति उपहार मेंदेनी चाहिए औरसबको खीर काप्रसाद देना चाहिए. इसके बाद माँलक्ष्मीजी को श्रद्धासहित प्रणाम करनाचाहिए.
फिर माताजी केधनलक्ष्मीस्वरूपकी छबिको वंदन करकेभाव से मनही मन प्रार्थनाकरें– ‘हे मांधनलक्ष्मी! मैंने आपकावैभवलक्ष्मीव्रतकरने कीमन्नत मानी थी, वह व्रत आजपूर्ण किया है. हे माँ! हमारी(जो मनोकामना होवह बोले) मनोकामनापूर्ण करें. हमारीहर विपत्ति दूरकरो. हमारा सबकाकल्याण करो. जिसेसंतान हो, उसे संतान देना. सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्यअखंड रखना. कुँआरीलड़की को मनभावनपति देना. जोआपका यह चमत्कारीवैभवलक्ष्मी व्रत करे, उनकी सब विपत्तिदूर करना. सभीको सुखी करना. हे माँ! आपकीमहिमा अपार है.’ आपकी जय हो! ऐसा बोलकर लक्ष्मीजीकेधनलक्ष्मी स्वरूपकी छवि कोप्रणाम करें।

श्री शुक्रदेव की आरती 

 

आरती लक्ष्मण बालजती की, असुर संहारन प्राणपतिकी। टेक।
जगमग ज्योत अवधपुरी राजे, शेषाचल पे आपबिराजै।
घंटा ताल पखावजबाजै, कोटि देवमुनि आरती साजै।
क्रीट मुकुट कर धनुषविराजै, तीन लोकजाकी शोभा राजै।
कंचन थार कपूरसुहाई, आरती करतसुमित्रा माई।
आरती कीजै हरिकी तैसी, ध्रुवप्रह्लाद विभीषणजैसी।
प्रेम मगन होयआरती गावैं, बसिबैकुंठ बहुरि नहिं आवै।
भक्ति हेतु लाड़लड़वै, जब घनश्यामपरम पद पावै।।

प्रिय पाठको जिन लोगों की कुण्डली में शुक्रदेव कमजोर हैं, या ६. ८. भाव में बैठे हैं या अकारक गृह हैं अथवा अस्त या मृत अवस्था में हैं वो लोग शुक्रदेव की पूजा करें, जप करें लाभ होगा।


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