

रम्भा अप्सरा और उसकी उपासना
चिर यौवन और निरोगी काया देती है ये उपासना
पुराणोंमें रंभा काचित्रण एक प्रसिद्ध अप्सरा के रूपमें हुआ है।उसकी उत्पत्ति देवताओंऔर असुरों द्वाराकिए गए विख्यात सागर मंथन सेमानी जाती है।वह पुराण और साहित्य में सौंदर्यकी एक प्रतीक बन चुकीहै। इंद्र ने इसेअपनी राजसभा केलिए प्राप्त कियाथा। उसने एकबार रंभा कोऋषि विश्वामित्र की तपस्याभंग करने केलिए भेजा था।महर्षि ने उसेएक सहस्त्र वर्षतक पाषाण केरूप में रहनेका श्राप दिया।कहा जाता हैकि एक बारजब वह कुबेर–पुत्र के यहाँजा रही थीतो कैलाश की ओरजाते हुए रावण ने मार्गमें रोककर उनकेसाथ बलात् संभोगकिया था।
प्रत्येक धर्म का यहविश्वास है किस्वर्ग में पुण्यवान्लोगों को दिव्यसुख, समृद्धि तथाभोगविलास प्राप्त होते हैंऔर इनके साधनमें अन्यतम हैअप्सरा जो काल्पनिक, परंतु नितांत रूपवतीस्त्री के रूपमें चित्रित कीगई हैं। यूनानीग्रंथों में अप्सराओंको सामान्यत: ‘निफ‘ नाम दिय गयाहै। ये तरुण, सुंदर, अविवाहित, कमर तकवस्त्र से आच्छादितऔर हाथ मेंपानी से भरेहुआ पात्र लिएस्त्री के रूपमें चित्रित कीगई हैं जिनकानग्न रूप देखनेवालेको पागल बनाडालता है औरइसलिए नितांत अनिष्टकारकमाना जाता है।जल तथा स्थलपर निवास केकारण इनके दोवर्ग होते हैं।भारतवर्ष में अप्सराऔर गंधर्व का सहचर्यनितांत घनिष्ठ है। अपनीव्युत्पति के अनुसारही अप्सरा जल मेंरहनेवाली मानी जातीहै। अथर्व तथा यजुर्वेद के अनुसारये पानी मेंरहती हैं इसलिएकहीं–कहीं मनुष्योंको छोड़कर नदियोंऔर जल–तटोंपर जाने केलिए उनसे कहागया है। यहइनके बुरे प्रभावकी ओर संकेतहै। शतपथ ब्राह्मण में येतालाबों में पक्षियोंके रूप मेंतैरनेवाली चित्रित की गईहैं और पिछलेसाहित्य में येनिश्चित रूप सेजंगली जलाशयों में, नदियों में, समुद्रके भीतर वरुणके महलों मेंभी रहनेवाली मानीगई हैं। जलके अतिरिक्त इनकासंबंध वृक्षों सेभी हैैं अथर्ववेदके अनुसार ये अश्वत्थ
तथा न्यग्रोध वृक्षोंपर रहती हैंजहाँ ये झूले में झूलाकरती हैं औरइनके मधुर वाद्योंकीमीठी ध्वनि सुनीजाती है। येनाच–गान तथाखेलकूद में निरतहोकर अपना मनोविनोदकरती हैं। ऋग्वेदमें उर्वशी प्रसिद्धअप्सरा मानी गईहै।पुराणों के अनुसारतपस्या में लगेहुए तापस मुनियोंको समाधि सेहटाने के लिए इंद्र अप्सरा को अपनासुकुमार, परंतु मोहक प्रहरणबनाते हैं। इंद्रकी सभा मेंअप्सराओं का नृत्यऔर गायन सततआह्लाद का साधनहै। घृताची, रंभा, उर्वशी, तिलोत्तमा, मेनका, कुंडा आदि अप्सराएँअपने सौंदर्य औरप्रभाव के लिएपुराणों में काफीप्रसिद्ध हैं।
इस्लाम में भीस्वर्ग में इनकीस्थिति मानी जातीहै। फारसी का ‘हूरी‘ शब्द अरबी ‘हवरा‘ के साथ संबद्धबतलाया जाता है। आकर्षक सुन्दरतम वस्त्र, अलंकार और सौंदर्य प्रसाधनों से युक्त–सुसज्जित, चिरयौवना रंभा के बारे में कहा जाता है कि उनकी साधना करने से साधक के शरीर के रोग, जर्जरता एवं बुढ़ापा समाप्त हो जाते हैं।
साधना विधि
रम्भा अप्सरा साधना सामग्री
रम्भा यन्त्र, अप्सरा माला, गुलाब के फुल व अगरबत्ती, गुलाबी रंग का कपडा, दीपक, आसन, जिस पर पीला वस्त्र बिछा हो, लकड़ी की चौकी, अक्षत ( बिना टूटे चावल ), सौंदर्य गुटिका, साफल्य, इत्र,स्टील की प्लेट, मुद्रिका, 2 फूलों की माला
दिन : पूर्णिमा की रात्री या शुक्रवार का दिन।
साधना समय : इस साधना को २७ दिनों तक रात्री में ही करना है।
जितनी ये खुबसूरत होती है उतनी ही अधिक ये अपने साधक के प्रति समर्पित भी होती है. 16 – 17 साल की दिखने वाली ये युवतियाँ वैसे बहुत सरल और सीधी भी होती है और कभी भी अपने साधक के साथ धोखा नहीं करती. किन्तु ऐसे अनेक साधक भी होते है जिनके मन में इन अप्सराओं को देखकर अपवित्रता जन्म ले लेती है और वे उनके साथ शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश करते है, जोकि सरासर गलत है. इसका परिणाम भी बुरा हो सकता है क्योकि इनके पास असीम शक्तियाँ भी होती है. इसलिए आप किसी भी अप्सरा को देखकर मन को विचलित ना होने दें और अपनी काम भावना को नियंत्रित रखें. आज हम आपको एक ऐसी ही अप्सरा की साधना के बारे में बताने जा रहे है जो बहुत ही आकर्षक और कामुक है।
रम्भा अप्सरा साधना विधि
साधना आरम्भ करनेसे पहले आपनहा धोकर अच्छेकपडे पहन खुदको शुद्ध औरपवित्र कर लें. उसके बाद आपपीले रंग केआसन पर बैठजाएँ और पूर्वदिशा की तरफमुंह करें. ध्यानरहें कि आपअपने पास फूलोंकी 2 मालायें अवश्यरखें और जबअप्सरा आयें तोएक उसे पहनादें, दूसरी कोवो आपको पहनाएगी. आप अगरबत्तियां और1 घी के दीपकजलाएं. अपने सामनेखाली स्टील कीप्लेट को रखनाबिलकुल ना भूलें. अब आप गुलाबकी पंखुडियां लेतेहुए अपने दोनोंहाथों को जोड़ेंऔर “ ओ राम्भेआगच्छ पूर्ण यौवनसंस्तुते ” मंत्र का जपकरें. हर मंत्रके बाद आपकुछ पंखुड़ियों कोस्टील की प्लेटमें डालें. आपकोकम से कम108 बार इस मंत्रका जाप करनाहै. स्टील कीथाली कुछ देरबाद पंखुड़ियों सेभर जायेगी. आपउसपर अप्सरा मालारख दें.
ॐ दिव्यायै नमः | ॐवागीश्चरायै नमः | ॐ सौंदर्याप्रियायै नमः |
ॐ योवन प्रियायैनमः | ॐ सौभाग्दायैनमः | ॐ आरोग्यप्रदायैनमः |
ॐ प्राणप्रियायै नमः | ॐ उर्जश्चलायैनमः | ॐ देवाप्रियायैनमः |
ॐ ऐश्वर्याप्रदायै नमः | ॐ धनदायैधनदा रम्भायै नमः|
आप हर मंत्रके जाप केबाद कुछ चावलोंको यन्त्र परअवश्य डालते जाएँ. इसके बाद आपको15 अप्सरा माला तकइस मंत्र कोजपना है.
“ ॐ ह्रीं रं रम्भेआगच्छ आज्ञां पालयमनोवांधितं देहि एंॐ स्वाहा “
इस तरह आपकीअप्सरा साधना पूर्ण होतीहै.
रम्भा अप्सरा साधना लाभ
जो व्यक्ति रम्भा अप्सरासाधना करता हैउसे बहुत सौभाग्यशालीमाना जाता हैक्योकि इसको करनेवाले को हरतरह का सुखशांति और मिलतीहै।उसे हर क्षेत्रमें सफलता मिलतीहै और वोशारीरिक व मानसिकरूप से मजबूतहो जाता है। इस साधनाको पूर्ण करलेने वाले व्यक्तिके साथ रम्भापूरी जिंदगी उसव्यक्ति के साथरहती है औरहर कदम परउसका साथ देतीहै।जिस तरह रम्भासबको अपनी तरफआकर्षित करने कीशक्ति रखती हैठीक उसी तरहसाधक में भीआकर्षक और सम्मोहनशक्ति आ जातीहै।साधक में कभीभी बुढापा नहींआता और बीमारियाँतो कोशों दूरचली जाती है. इस तरह साधकके जीवन मेंप्यार और खुशियाँभर जाती है।
सावधानियाँ
वैसे अप्सरायेंशीघ्रता से अपनीसाधना कोपूरा भी नहींहोने देती औरआपके ध्यान कोभंग करने कीकोशिश करती रहतीहै। कई बारतो आपको आपकीसाधना पूर्ण होनेसे पहले हीअप्सरा दिखने लगती हैकिन्तु उस स्थितिमें आप अपनीसाधना को बिलकुलभी ना रोकेऔर मन्त्रों औरजप के पूर्णहोने के बादही उनके पासजाएँ। साधना के दौरानऔर अप्सरा कोदेखने के बादअपनी काम इच्छाओंपर काबू रखेंऔर उसके प्रतिसमर्पित रहें। साधना के दौरानजो भी घटितहोता है उसेआप अपने तकही सिमित रखें।जब साधना खत्म होजाएँ तो आपएक मुद्रिका कोअपनी अनामिका वालीउंगली में धारणकरें। साथ हीबाकी के सामानको आप किसीबहते पानी अर्थातनदी में प्रवाहितकर दें।
सुहाग की रक्षा तथा बुद्धिमान संतान के लिए करें रम्भा तीज व्रत
हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसाररम्भा तृतीया व्रत(रंभा तीज व्रत) शीघ्र फलदायी मानाजाता है। यहव्रत ज्येष्ठ शुक्लतृतीया को कियाजाता है। इसदिन विवाहित महिलाएंअपने सुहाग कीलंबी उम्र, बुद्धिमानसंतान पाने केलिए यह व्रतरखती है। कुंआरीकन्याएं यह व्रतअच्छे वर कीकामना से करतीहैं। वर्ष 2017 मेंयह व्रत रविवार, 28 मई को मनायाजाएगा। रम्भा तृतीया व्रतके लिए ज्येष्ठशुक्ल तृतीया केदिन प्रात:कालदैनिक कार्यों सेनिवृत्त होकर स्वच्छवस्त्र धारण करकेपूर्व दिशा कीओर मुख करकेबैठें। भगवान सूर्यदेव केलिए दीपक प्रज्वलितकरें। इस दिनविवाहित स्त्रियां पूजन मेंगेहूं, अनाज औरफूल से लक्ष्मीजीकी पूजा करतीहैं।
इस दिन लक्ष्मीजीतथा माता सतीको प्रसन्न करनेके लिए पूरेविधि–विधान सेपूजन किया जाताहै। इस दिनअप्सरा रम्भा की पूजाकी जाती है।हिन्दू मान्यता के अनुसारसागर मंथन सेउत्पन्न हुए 14 रत्नों मेंसे एक रम्भाभी थीं। रम्भाबेहद सुंदर थी।कई स्थानों परविवाहित स्त्रियां चूड़ियों केजोड़े की पूजाकरती हैं, जिसेरम्भा (अप्सरा) और देवीलक्ष्मी का प्रतीकमाना जाता है।
पूजन के समयॐ महाकाल्यै नम:, ॐ महालक्ष्म्यै नम:, ॐ महासरस्वत्यै नम:आदि मंत्रों काकिया जाता है।
रम्भा तृतीया व्रत विशेषत: महिलाओं के लिएहै। रम्भा तृतीयाको यह नामइसलिए मिला, क्योंकिरम्भा ने इसेसौभाग्य के लिएकिया था। रम्भातृतीया का व्रतशिव–पार्वतीजी कीकृपा पाने, गणेशजीजैसी बुद्धिमान संतानतथा अपने सुहागकी रक्षा केलिए किया जाताहै।
रम्भा एकादशी व्रत
रमा एकादशी या रम्भा एकादशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी है. यह चातुर्मास की अंतिम एकादशी होती है इसलिए इस एकादशी का महत्व और भी बढ़ जाता है. इस एकादशी का व्रत रखने और कथा सुनने से पापों का नाश तो होता ही है, साथ में महिलाओं को सुखद वैवाहिक जीवन का वरदान भी मिलता है.
रम्भा एकादशी व्रत कथा
एक नगर में मुचुकुंद नाम के प्रतापी राजा थे। उनकी चंद्रभागा नाम की एक पुत्री थी. राजा ने बेटी का विवाह राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन के साथ कर दिया।शोभन थोड़ा दुर्बल था। वह एक समय भी बिना खाएं नहीं रह सकता था। शोभन एक बार कार्तिक के महीने में अपनी पत्नी के साथ अपने ससुराल आया था। तभी रंभा एकादशी आ गई। चंद्रभागा के गृह राज्य में सभी इस व्रत को रखते थे। शोभन को भी यह व्रत रखने के लिए कहा गया। किन्तु शोभन इस बात को लेकर चिंतित हो गया कि वह तो एक पल को भी भूखा नहीं रह सकता। फिर वह रंभा एकादशी का व्रत कैसे करेगा।
यह चिंता लेकर वह अपनी पत्नी के पास गया और कुछ उपाय निकालने को कहा, इस पर चंद्रभागा ने कहा कि अगर ऐसा है तो आपको राज्य से बाहर जाना होगा, क्योंकि राज्य में कोई भी ऐसा नहीं है, जो इस व्रत को ना करता हो, यहां तक कि जानवर भी अन्न ग्रहण नहीं करते। लेकिन शोभन ने यह उपाय मानने से इंकार कर दिया और उसने व्रत करने की ठान ली, अगले दिन सभी के साथ शोभन ने भी एकादशी का व्रत किया, लेकिन वह भूख और प्यास बर्ताश्त नहीं कर सका और प्राण त्याग दिया। चंद्रभागा सती होना चाहती थी, मगर उसके पिता ने यह आदेश दिया कि वह ऐसा ना करे और भगवान विष्णु की कृपा पर भरोसा रखे, चंद्रभागा अपने पिता की आज्ञानुसार सती नहीं हुई, वह अपने पिता के घर रहकर एकादशी के व्रत करने लगी। उधर रंभा एकादशी के प्रभाव से शोभन को जल से निकाल लिया गया और भगवान विष्णु की कृपा से उसे मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से परिपूर्ण तथा शत्रु रहित देवपुर नाम का एक उत्तम नगर प्राप्त हुआ, उसे वहां का राजा बना दिया गया, उसके महल में रत्न तथा स्वर्ण के खंभे लगे हुए थे, राजा शोभन स्वर्ण तथा मणियों के सिंहासन पर सुंदर वस्त्र तथा आभूषण धारण किए बैठा था, गंधर्व तथा अप्सराएं नृत्य कर उसकी स्तुति कर रहे थे. उस समय राजा सोभन मानो दूसरा इंद्र प्रतीत हो रहा था. उन्हीं दिनों मुचुकुंद नगर में रहने वाला सोमशर्मा नाम का एक ब्राह्मण तीर्थयात्रा के लिए निकला हुआ था. घूमते-घूमते वह सोभन के राज्य में जा पहुंचा, उसको देखा, वह ब्राह्मण उसको राजा का जमाई जानकर उसके निकट गया,राजा सोभन ब्राह्मण को देख आसन से उठ खड़ा हुआ और अपने ससुर तथा पत्नी चंद्रभागा की कुशल क्षेम पूछने लगा, सोभन की बात सुन सोमशर्मा ने कहा हे राजन हमारे राजा कुशल से हैं तथा आपकी पत्नी चंद्रभागा भी कुशल है, अब आप अपना वृत्तांत बतलाइए, आपने तो रंभा एकादशी के दिन अन्न-जल ग्रहण न करने के कारण प्राण त्याग दिए थे, मुझे बड़ा विस्मय हो रहा है कि ऐसा विचित्र और सुंदर नगर जिसको न तो मैंने कभी सुना और न कभी देखा है, आपको किस प्रकार प्राप्त हुआ, इस पर सोभन ने कहा हे देव यह सब कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की रंभा (रमा) एकादशी के व्रत का फल है, इसी से मुझे यह अनुपम नगर प्राप्त हुआ है किंतु यह अस्थिर है, सोभन की बात सुन ब्राह्मण बोला हे राजन यह अस्थिर क्यों है और स्थिर किस प्रकार हो सकता है, सों आप मुझे समझाइए, यदि इसे स्थिर करने के लिए मैं कुछ कर सका तो वह उपाय मैं अवश्य ही करूंगा. राजा सोभन ने कहा हे ब्राह्मण देव मैंने वह व्रत विवश होकर तथा श्रद्धारहित किया था,उसके प्रभाव से मुझे यह अस्थिर नगर प्राप्त हुआ परंतु यदि तुम इस वृत्तांत को राजा मुचुकुंद की पुत्री चंद्रभागा से कहोगे तो वह इसको स्थिर बना सकती है,राजा सोभन की बात सुन ब्राह्मण अपने नगर को लौट आया और उसने चंद्रभागा से सारी कहानी कह सुनाई, इस पर राजकन्या चंद्रभागा बोली हे ब्राह्मण देव आप क्या वह सब दृश्य प्रत्यक्ष देखकर आए हैं या अपना स्वप्न कह रहे हैं, चंद्रभागा की बात सुन ब्राह्मण बोला हे राजकन्या मैंने तेरे पति सोभन तथा उसके नगर को प्रत्यक्ष देखा है किंतु वह नगर अस्थिर है, तू कोई ऐसा उपाय कर जिससे कि वह स्थिर हो जाए, ब्राह्मण की बात सुन चंद्रभागा बोली हे ब्राह्मण देव आप मुझे उस नगर में ले चलिए मैं अपने पति को देखना चाहती हूं, मैं अपने व्रत के प्रभाव से उस नगर को स्थिर बना दूंगी, चंद्रभागा के वचनों को सुनकर वह ब्राह्मण उसे मंदराचल पर्वत के पास वामदेव के आश्रम में ले गया, वामदेव ने उसकी कथा को सुनकर चंद्रभागा का मंत्रों से अभिषेक किया, चंद्रभागा मंत्रों तथा व्रत के प्रभाव से दिव्य देह धारण करके पति के पास चली गई, सोभन ने अपनी पत्नी चंद्रभागा को देखकर उसे प्रसन्नतापूर्वक आसन पर अपने पास बैठा लिया चंद्रभागा ने कहा हे स्वामी अब आप मेरे पुण्य को सुनिए जब मैं अपने पिता के घर में आठ वर्ष की थी तब ही से मैं सविधि एकादशी का व्रत कर रही हूं, उन्हीं व्रतों के प्रभाव से आपका यह नगर स्थिर हो जाएगा और सभी कर्मों से परिपूर्ण होकर प्रलय के अंत तक स्थिर रहेगा, चंद्रभागा दिव्य स्वरूप धारण करके तथा दिव्य वस्त्रालंकारो से सजकर अपने पति के साथ सुखपूर्वक रहने लगी।
इति
प्रिय पाठको इस साधना से चिर यौवन और आरोग्य काया प्राप्त होती है इसमें १०० प्रितशत सत्यता है आप पूर्ण सार्धः से इस उपाय को करिये और लाभ लीजिये।
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