भक्ति में धैर्य

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भक्ति में धैर्य

एक समय की बात है एक गांव में एक किसान रहता था उसके घर में माता-पिता, पत्नी,एवं दो बच्चे थे किसान बहुत ही भोला-भाला था पूरी महनत करता और जो खेती से मिलता उसी से परिवार का लालन पालन करता था। एक दिन वो अपने खेत को जोतकर वापस आ रहा था रास्ते में उसेे पता चला कि गांव में एक बहुत पहुंचे हुए संत आये हुए हैं गांव के सारे लोग उनसे अपने सुख के साधनों के बारे में पूँछ रहे हैं और वो संत सभी को इक्षा अनुसार दे भी रहे हैं, वो जल्दी जल्दी घर की तरफ बढ़ दिया दरवाजे पर अपने बैलों को बांध कर दौड़ा दौड़ा अपने माता पिता व पत्नी के पास गया और उन को संत के बारे मैं बताया और बोला “क्यों न हम भी अपनी सुख सुविधा का कोई उपाय संत जी से पूँछ लें जिससे हमारा भी कल्याण हो जाये” उसकी बात सुनकर उसकी पतिव्रता पत्नी भी उन संत से मिलने को उत्सुक होगई दोनों ने वृद्ध माता-पिता से आज्ञा ली और चल दिए संत के दर्शन को संत गांव के बाहर एक वृक्ष के नीचे बैठे थे और लोग उनकी आव भगत में लगे हुए थे जो जैसा पूंछता संत उसकी समस्या का उपाय बताते और ग्रामीण खुश होकर अपने घर चले जाते किसान अपनी बारी की प्रतीक्षा करता रहा धीरे-धीरे उसकी भी बारी आ गई उसने सपत्नीक संत के चरण स्पर्श किये और हाथ जोड़ कर बड़े ही बिनम्र भाव से संत जी से बोला “हे भगवन! कोई ऐसा उपाय बताइये जिससे मेरे पूरे परिवार का उद्धार हो जाये” उसकी विनम्र वाणी सुन कर संतजी ने पूंछा “क्या सच में सभी का उद्धार चाहते हो ?” किसान बोला “जी हाँ “ उसकी बात सुनकर संत जी ने उससे कहा की “आप मेरे पास आओ” और जैसे ही किसान उनके निकट आया संतजी ने झट उसका कान पकड़ लिया और अपनी तरफ खीँचते हुए उसके कान में बोले “बेटा में तुमको एक मंत्र बता रहा हूँ ये सिद्ध मंत्र है सब कुछ छोड़ कर इस मंत्र का जप करना तुम्हारे पूरे परिवार का उद्धार हो जायेगा” और उन्होंने उसके कान में मंत्र बताया जो इस प्रकार था “बिहारी जी के चरण मंगल करन” और बोले “जाओ जैसा मैंने कहा है वैसा ही करो तुम्हरे पूरे परिवार का उद्धार होगा” बस फिर क्या था भोला किसान अपनी पत्नी को छोड़, अपने परिवार को छोड़, चल दिया जंगल की तरफ, उसको विश्वास था कि अब उसका उद्धार अवश्य हो जायेगा और जंगल में जाकर उसने एक पेड़ के नीचे अपनी समाधी लगा ली और संतजी के दिए हुए मन्त्र का जप वो मन ही मन करने लगा “बिहारी जी के चरण मंगल करन” “बिहारी जी के चरण मंगल करन” “बिहारी जी के चरण मंगल करन” “बिहारी जी के चरण मंगल करन” गांव के लोग कुछ दिन बाद उसके समीप आये और बोले “हे भाई बहुत हो चुका मंत्र का जप गांव चल और अपनी खेती कर अपने बृद्ध माता-पिता, पत्नी एवं बच्चों की परवाह कर, देख तेरी खेती सूख रही है अगर खेत में कुछ नहीं हुआ तो उनको क्या खिलायेगा” किन्तु उसको तो अपने परिवार के सदस्यों का उद्धार जो करना था वह टस से मस नहीं हुआ और जप करता रहा “बिहारी जी के चरण मंगल करन” “बिहारी जी के चरण मंगल करन” “बिहारी जी के चरण मंगल करन” गांव वाले थक हार कर वापस गांव में आ गए और गांव में आकर सारी कथा से उसके परिवार को अवगत करा दिया। उधर किसान अपनी ही धुन में लगा जप करता रहा “बिहारी जी के चरण मंगल करन” “बिहारी जी के चरण मंगल करन” “बिहारी जी के चरण मंगल करन” कुछ दिन और जप करने पर गांव वाले फिर उसके पास आये और बोले “भाई तेरे परिवार का बड़ा बुरा हाल है तेरी सारी खेती सूख गई सब भूख से व्याकुल हैं चल भाई चल” किन्तु किसान अपने जप में ही लगा रहा “बिहारी जी के चरण मंगल करन” “बिहारी जी के चरण मंगल करन” “बिहारी जी के चरण मंगल करन” गांव वाले फिर वापस चले गए कुछ दिन उपरांत गांव वाले फिर आये और बोले “तेरे बैल मर गए अब तो चल” किन्तु किसान उनकी कहाँ सुनने वाला था वह अपने जप में लगा रहा “बिहारी जी के चरण मंगल करन” “बिहारी जी के चरण मंगल करन” “बिहारी जी के चरण मंगल करन” गांव वाले फिर चले गए, गांव वाले कुछ दिन उपरांत फिर आये और बोले “भाई तेरे माता-पिता का स्वर्गवास हो गया” किन्तु किसान फिर भी जप करता रहा “बिहारी जी के चरण मंगल करन” “बिहारी जी के चरण मंगल करन” “बिहारी जी के चरण मंगल करन” कुछ दिन बाद उपरांत गांव वालों ने उसे समाचार दिया कि “उसके बच्चों ने भी भूख की वजह से दम तोड़ दिया” यह सुन कर किसान को बड़ा क्रोध आया और सोचने लगा कि “बिहारी जी के चरण ये कैसा मंगल कर रहे हैं” किन्तु फिर उसको संत की बात याद आई और वो सीने पर पत्थर रख कर फिर जप में लग गया “बिहारी जी के चरण मंगल करन” “बिहारी जी के चरण मंगल करन” “बिहारी जी के चरण मंगल करन” कुछ दिन बाद गांव के लोगों ने बताया कि “आज तेरी अर्धांगिनी ने भी भूख की वजह से प्राण त्याग दिए अब तेरे घर में कोई नहीं बचा तेरे पागलपन ने तेरा सब कुछ लूट लिया हँसता खेलता परिवार तूने अपने कर्मों से मार दिया” इतना सुनते ही किसान का धैर्य जबाब दे गया और वह क्रोध में आकर उठ खड़ा हुआ और जो जप वो मन मन में कर रहा था वह चिल्ला कर बोला “बिहारी जी ने क्या खाक मंगल किया ?” और क्रोध में उठकर चल दिया और पागलों की तरह सबको सुना कर जप करने लगा “बिहारी जी के चरण चौपट करन” “बिहारी जी के चरण चौपट करन” “बिहारी जी के चरण चौपट करन” “बिहारी जी के चरण चौपट करन” किसान जब तक जिया पागलों की स्थिति में जिया और उसने अपने जीवन पर्यन्त यही जप किया “बिहारी जी के चरण चौपट करन” “बिहारी जी के चरण चौपट करन” “बिहारी जी के चरण चौपट करन” “बिहारी जी के चरण चौपट करन” सब उसको समझते किन्तु वो नहीं समझा जब उसकी मृत्यु का समय निकट आया तो यम देव खुद एक विमान के साथ आये और उसको लेकर चल दिए जब वो रास्ते से निकल रहे थे तो उसको एक दरवाजे पर अपने बैल खड़े दिखे उसके पीछे माता, पिता,पत्नी और बच्चे खड़े उसको निहार रहे थे उसने यमदेव से कहा आप मुझे कहाँ ले जा रहे हैं मेरा सारा परिवार तो यहाँ खड़ा है” तो यमदेव ने कहा “ये बैकुण्ठ जाने का द्वार है आप यहाँ नहीं जा सकते” किसान बोला “क्यों ? यमदेव! जब ये सब जा सकते हैं तो मैं क्यों नहीं जा सकता ?” यमदेव बोले “देखो आपने अपनी सच्ची श्रद्धा से, अपने परिवार का कल्याण मन में रख कर जो जप किया था “बिहारी जी के चरण मंगल करन” उससे प्रसन्न होकर बिहारी जी ने एक एक कर इनको बैकुण्ठ भेजना प्रारम्भ कर दिया था किन्तु जैसे ही तुम्हारी पत्नी को प्रभु ने बैकुंठ भेजा तुमने जप को ही उल्टा कर दिया अतः जब तुम्हारे उद्धार का समय आया तो उलटे जप की वजह से तुम्हारा मार्ग नरक की तरफ चला गया अतः अपने हिस्से के भोग , भोग कर आपको दोबारा मृत्युलोक जाना पड़ेगा। 
भक्ति में धैर्य आवश्यक है 
bhaktikathain@gmail.com

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