
कथा–१ भाग –२
ग्वाले की भक्ति पार्ट –२
अब आगे
अब गोसाईं जी समझ चुके थे कि ये तो कोई परम भक्त हैं और इनको इस कार्य में लगाना ठीक नहीं है, अतः गोसाईं जी ने ग्वाले को मंदिर की पहरेदारी पर लगा दिया ग्वाला अपने राजा का भजन करता और पूरी सावधानी से रात्रि में मंदिर की रखवाली करता धीरे–धीरे पूर्णिमा की रात आ गई ग्वाला बड़ी ही सावधानी से अपनी चाकरी कर रहा था, रात के करीब १२ बजे होंगे, मंदिर का दरवाजा स्वतः खुल गया अंदर से वही बालक जो उस दिन उसको भूखे होने पर खाना लेकर आया था वह खड़ा था,
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ग्वाला झट से अपनी लाठी संभालता हुआ खड़ा हुआ और उस बालक से बोला “कहाँ जा रहे हो इतनी रात को“ बालक ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया “ग्वाले मुझे निधिबन जाना है वहां मेरी सखियाँ मेरी राह देख रहीं हैं “ ग्वाला बोला “ऐसे नहीं जा सकते मुझे गोसाईं जी को जबाब देना पड़ेगा मेरी नौकरी चली जाएगी अतः आप अंदर जाइये“ ग्वाले की बात सुन कर बालक थोड़ा सा विचलित स्वर में बोला “भाई मेरा जाना बहुत ही आवश्यक है“ यह सुनकर ग्वाला क्रोधित स्वर में बोला “ऐ बालक चुपचाप अंदर जाओ नहीं तो ये लाठी देखी है“ यह सुनकर बालक बोला “भैया जाना तो आवश्यक है अब कोई और रास्ता नहीं है क्या ? “ बालक की मधुर वाणी और वो भी प्रार्थना रूप में बोली गई थी उसको सुन कर ग्वाले ने कहा “देखो बालक एक तो रात आधी हो चुकी है और तुम इतने वस्त्र आभूषण पहने हो अगर किसी ने रात के समय अकेला बालक जान कर लूट पाट कर दी तो मेरी तो नौकरी सुबह ही चली जाएगी गोसाईं जी किसी भी सूरत में मुझे नहीं रखेंगें और राजा भी रुष्ट हो जायेंगे इसलिए एक युक्ति मेरे दिमाग में आई है कहो तो बताऊँ“ बालक बोला “अवश्य बताइये” ग्वाला बोला “ऐसा करता हूँ मैं खुद आपके साथ चलता हूँ आप तब तक अपने सखाओं के साथ खेलना मैं वहीँ रुक कर आपकी प्रतीक्षा करूंगा और जैसे ही आपका खेल बंद हो जायेगा मैं आपको लेकर बापस आ जाऊँगा“ दोनों इस बात पर सहमत हो गए और अब ग्वाला और बालक निधि बन की ओर चल दिए बालक की धीमी चाल की बजह चलते–चलते जब देर हो गई तो ग्वाला बोला “बालक आप थक गए होगे ऐसा करिये आप मेरे कंधे पर बैठ जाइये“ बालक ने मना किया लेकिन ग्वाले के आगे बालक की कहाँ चलने वाली थी उसने बालक को उठाया और आपने कंधे पर बिठा कर तेज–तेज चलने लगा कुछ देर चलने के उपरांत वो दोनों निधिबन के दरबाजे पर पहुँच गए ग्वाले ने बालक को कन्धे पर से उतार दिया बालक ने ग्वाले से कहा “आप यहीं मेरी प्रतीक्षा करना मैं अंदर जा रहा हूँ और अंदर न आना“ ये सुन कर ग्वाला बोला “रे बालक आप क्या मुझे पागल समझते हो सुबह ४ बजे मंदिर के द्वार खुलते हैं और गोसाईं जी आते है मैं अगर वहां नहीं मिला तो नौकरी जाना निश्चित है इसलिए मैं यहाँ आपकी प्रतीक्षा तो करूंगा किन्तु अगर आप बिलम्ब करोगे तो मुझे अंदर आने पर विवश होना पड़ेगा“ बालक बोला “ठीक है भाई ग्वाले मैं समय का ध्यान रखूंगा और आप चिंता न करो आपकी नौकरी नहीं जाएगी गोसाईं जी के आने से पहले ही मैं और आप मंदिर पहुँच जायेंगे“ यह कह कर बालक निधि बन में प्रवेश कर गया और ग्वाला निधिबन के द्वार पर दरवान बन कर पहरेदारी करने लगा अंदर से तरह तरह के वाद्य यंत्रों की और गायन की आवाजें आरही थी धीरे धीरे समय बीतता गया मंदिर के खुलने का समय निकट आता गया किन्तु बालक निधि बन से बहार नहीं आया बिलम्ब होता देखकर ग्वाले की बेचैनी बढ़ने लगी उसको लगा की आने में जितना समय लगा जाने मे भी तो उतना ही लगेगा और बालक के साथ तेज चलना भी मुश्किल है और बालक है की बहार ही नहीं आ रहा तो अब और बिलम्ब किया तो हम पट खुलने से पहले मंदिर नहीं पहुँच पाएंगे ये सोचकर उसने निधिबन के अंदर जाने का निश्चय किया और बिलम्ब को देखते हुए वह निधि बन के अंदर प्रवेश कर गया।
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