

भक्ति भोले ग्वाले की भाग १
प्रिय पाठको आज हम भक्ति के ऊपर एक कथा लिखने जा रहे हैं जिसका नाम है भक्ति भोले ग्वाले की भाग १ यह कथा थोड़ी लम्बी है अतः इसके अन्य भाग भी जल्दी ही आपके पढ़ने हेतु इस ब्लॉगपोस्ट पर पोस्ट करदिये जायेंगे।
भक्ति भोले ग्वाले की भाग १-कथा प्रारम्भ
एक समय की बात है भारत वर्ष के सुदूर प्रान्त मध्य प्रदेश के एक गांव में शास्त्री जी श्रीमद्भागवत का पाठ कर रहे थे. गांव में शांत वातावरण के कारण कथा वाचक की मधुर आवाज बहुत दूर तक जा रही थी.
गांव का ही एक भोला भाला ग्वाला गांव के पशुओं को जंगल में चराने के लिए आया हुआ था, कथा वाचक के मुख से निकल कर कथा जंगल तक पहुँच रही थी और ग्वाला पूरी भक्ति के साथ उस कथा का श्रवण कर रहा था.
कथा इस प्रकार थी
कथा वाचक श्री कृष्ण जी के बचपन के वृत्तांत को सुना रहे थे। जिसमें शास्त्री जी श्री कृष्ण भगवान को जो सम्बोधन कर रहे थे, उसमे वो श्री कृष्ण भगवान जी को ग्वालों का राजा बोल रहे थे।
और भगवान श्री कृष्ण जी ने जो लीलाये की उनका बखान कर रहे थे। कथावाचक शास्त्रीजी बोल रहे थे, कि श्रीकृष्ण भगवान जी के पास दस लाख गउएं हैं।
शास्त्री जी को ऐसा बोलते सुनकर, ग्वाले के मन में विचार आया, कि मैं पूरे गांव के पशुओं को पूरे दिन चराता हूँ और बदले में मेरी आजीविका भी ठीक से नहीं चल पाती। आज में शास्त्री जी से इन ग्वालों के राजा का पता पूंछकर उनके पास जाऊंगा और उनकी ही गउओं को चराऊँगा, जिससे वो आराम करेंगे और मेरी आजीविका भी सुचारु रूप से चलती रहेगी।
संध्या समय हुआ गांव के सारे पशुओं को वापस गांव में लाकर ग्वाला सीधा उसी स्थान पर गया जहाँ कथावाचक शास्त्री जी ठहरे हुए थे।
गांव के ही कुछ लोग जो शास्त्री जी की सेवा में लगे थे वो उस ग्वाले के भोले पन को जानते थे। ग्वाले को देख उन लोगों ने ग्वाले से उपहास करते हुए पूंछा ग्वाले कैसे आना हुआ ?
ग्वाले ने अपने मन की बात उनको बताई और बोला मुझे ग्वालों के राजा के पास जाना है मुझे शास्त्रीजी से मिलवा दो। ग्वाले की बात को सुन सभी उसका उपहास करने लगे, किन्तु ग्वाला तो कुछ और ही सोच कर आया था, उसने शास्त्री जी से मिलने की जिद नहीं छोड़ी।
ग्वाले और गांव वालों के बीच जो बातचीत हो रही थी उसको सुनकर शास्त्री जी भी उठ कर अपने डेरे से बाहर आ गए। उन्होंने ग्वाले को समझाया कि वो तो कथा की बात थी, अतः आप इसी गांव में रहिये और अपनी आजीविका चलाइये। किन्तु ग्वाले ने अपनी जिद नहीं छोड़ी, ग्वाले का भोलापन देख शास्त्री जी भी उपहास की स्थिति में आ गए, और बोले जाओ उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में एक स्थान है वृन्दाबन ये वहीँ के राजा हैं और वहीं पर मिलेंगे।
ग्वाले का वृन्दावन प्रस्थान
बस फिर क्या था ग्वाला सब कुछ वहीँ छोड़ चल दिया ग्वालों के राजा के पास। हाथ में एक लाठी लिए कई दिन की अनवरत यात्रा और यात्रा की असहनीय पीड़ा भूख प्यास से त्रस्त होने के बाद भी रास्ता पूंछता हुआ वह किसी तरह वृन्दाबन आ पहुंचा।
अब उसको कोई भी मिलता उससे वो ये ही पूंछता कि “ग्वालों के राजा कहाँ रहते हैं ?” कुछ लोग उसके ऊपर हँसते, तो कुछ लोगों ने उसको बिहारी जी के मंदिर का पता बता दिया।
दोपहर में वो मंदिर पहुंचा मंदिर के पट बंद थे पट बंद देख वो दरबाजे पर ही बैठ गया। मंदिर खुलने का जब समय हुआ और मंदिर खोलने के लिए जब गोसाईं जी आये तो उन्होंने ग्वाले को दरबाजे पर बैठा देख वहां से हट कर कहीं और बैठजाने के लिए बोला।
लेकिन गोसाईं जी की बात सुनने की जगह ग्वाला बोला मुझे ग्वालों के राजा से मिलना है क्या आप मेरी मुलाकात ग्वालों के राजा से करवा सकते हैं ? ये सुनकर गोसाईं जी समझ गए ये तो कोई बड़ा भोला व्यक्ति है, गोसाईं जी ने ग्वाले से पूंछा “तुम कहाँ से आये हो और राजा से क्या कार्य है ?” राजा ऐसे नहीं मिलते मुझे बताओ मैं तुम्हारी बात उन तक पहुंचा दूँगा।
ग्वाले ने गोसाईं जी के हाथ जोड़े और कहा कि हे भैया ! आप राजा से बोल दो कि आज से वो कोई गाय नहीं चरायें, आज से उनका ये सेवक ही गाय चराया करेगा।
ग्वाले की बात सुनकर गोसाईं जी मुस्कुराये और ग्वाले पूंछा आप इसके लिए पगार क्या लोगे ? सारी बात बताओ तो में राजा से पूरी बात कर लूँ, ग्वाला बोला पगार क्या ? मेरे खाने का और रहने का प्रबंध राजा को देखना होगा। ये सुनकर गोसाईं हँसते हुए मंदिर के अंदर चले गए और वह ग्वाला फिर से वहीँ बैठ गया।
उस ग्वाले को तो सबसे अधिक चिंता यह थी कि कहीं राजा ने नौकरी देने से मना कर दिया तो उसका इतनी दूर आना व्यर्थ हो जायेगा। यही सोचते सोचते समय कब बीत गया पता ही नहीं चला, समय आया और मंदिर बंद होने लगा गोसाईं जी को बहार की तरफ आता देख ग्वाला हाथ जोड़कर दौड़ता हुआ गोसाईं जी के पास पहुंचा और बोला, महोदय ! राजा ने क्या उत्तर दिया ? उसकी बात सुन गोसाईं जी कुछ सोच में पड़ गए, ग्वाले ने बड़े ही उम्मीद भरे स्वर में गोसाईं जी से फिर पूंछा “क्या हुआ महोदय बताते क्यों नहीं ?”
श्रीकृष्ण का सेवक बनना
गोसाईं जी ग्वाले को धीरज बाधन्ते हुए बोले, भैया आप प्रसन्न हो जाइये राजा ने आपकी बात मान ली है और बोला है कि आपकी नौकरी पक्की है, उनकी आज्ञा है कि आपकी रहने की व्यवस्था गौशाला में कर दी जाय तो मैंने आपके रहने का प्रबंध इस महल (मंदिर) की गोशाला में कर दिया है जाओ गौशाला में रुको सुबह सारी गऊओं को चराने ले जाना है। आपका भोजन जंगल में ही पहुँच जाया करेगा और इतना कह कर गोसाईं जी ने उसको मंदिर की गौशाला में भेज दिया और घर चले गए।
अब रोज सुबह ग्वाला गायों को लेकर जंगल में चराने जाने लगा और अपने कार्य को पूरी ईमानदारी से करने लगा। धीरे धीरे समय गुजरने लगा गोसाईं जी भी उसके खाने का पूरा ध्यान रखते थे, जो मंदिर पे पकवान होते वो उस ग्वाले के लिए पहुँच जाते ग्वाला भी अपने राजा का स्मरण करता रहता और प्रसन्नता पूर्वक अपना कार्य करता।
खाना खिलने आये श्रीकृष्ण
सब कुछ ठीक थक चल रहा था कि एक दिन गोसाईं जी की तबियत थोड़ी ख़राब हो गई, और वो उस रोज मंदिर नहीं आये, ग्वाला रोज की भाँति अपने कार्य पर चला गया।
अब चूँकि गोसाईं जी थे नहीं अतः उसका ग्वाले का भोजन भेजने की किसी को भी सुध नहीं रही। धीरे धीरे भोजन का समय बीतने लगा, पहले तो ग्वाला ये समझा की किसी कारन बिलम्ब हो रहा होगा। लेकिन जब समय ज्यादा हो गया तो भूख से उसकी हालत ख़राब होने लगी, वो मन ही मन राजा को कोसने लगा, और आंखे बंद करके एक पेड़ की नीचे लेट गया।
लेटे लेटे उसको जाने कब नींद आ गई उसको पता ही नहीं चला उसकी नींद को एक आवज ने तोडा जो उसी ग्वाले को पुकार रही थी, उसने आंखे खोली तो सामने एक पोटली पकडे एक लड़का कह रहा है “लो भोजन करो”.
भोजन की पोटली देख ग्वाला प्रसन्न होकर बोला-“आज बड़ी देर कर दी”- लड़के ने उत्तर दिया “हाँ आज थोड़ा बिलम्ब हो गया दरअसल आज गोसाईं जी का स्वस्थ थोड़ा गड़बड़ है, वो नहीं आये तो किसी को आपका खाना भेजने की सुध नहीं रही अतः बिलम्ब हो गया राजा ने आपके लिए भोजन भेजा है” ग्वाले को पोटली देकर लड़का अपनी बांसुरी बजाने लगा.
सारी गउएं उस लड़के की तरफ आने लगी। ग्वाले ने लड़के ओर पीठ की और भोजन करने लगा जब भोजन कर लिया तो उसने लड़के को पुकारा लेकिन तब तक वह लड़का वहां से जा चुका था।
लड़का वहाँ नहीं था तो ग्वाले ने उस पोटली का कपडा जिसमे वो लड़का भोजन लेकर आय था उसको झाड़ा, उस कपड़े जो भोजन के कण बचे थे।
जैसे ही वो कण जमीन पर गिरे तो आस पास जो गउएं चर रही थीं उन्होंने पोटली से गिरे भोजन के कणों को खाया और सारी गउएं चरना बंद कर पेड़ के नीचे बैठ गईं।
जब ग्वाले ने देखा कि गउएं अब चारा नहीं खा रही इनका पेट भर गया है तो ग्वाला सारी गायों को लेकर वापस गौशाला को चलदिया ।
इधर घर पर अस्वस्थ पड़े गोसाईं जी को अचानक ग्वाले के भोजन के प्रबंध का ध्यान आया। वो उठकर मंदिर की तरफ भागे और आनन फानन में उन्होंने एक व्यक्ति को ग्वाले का भोजन तैयार करने को कहा, वो भोजन तैयार कर ही रहा था कि तब तक ग्वाला आते हुआ दिखाई दिया.
गोसाईं उससे कुछ कह पाते उससे पहले ही ग्वाला बोला गोसाईं जी आपका स्वास्थ्य अब कैसा है ? उसकी ये बात सुन गोसाईं जी आश्चर्य में पड़ सोचने लगे, कि इस ग्वाले से तो मेरी कोई भेंट होती नहीं इसको मेरे स्वास्थ्य के बारे में कैसे पता, सोचते हुए गोसाईं ने ग्वाले से ही पूंछना उचित समझा कि तभी ग्वाला फिर से बोला “गोसाईं जी आज का भोजन करके आनंद आ गया अपने जीवन में ऐसे स्वादिष्ट और नाना प्रकार के पकवान मैंने कभी नहीं खाये.
ग्वाले का इतना बोलना था यह सुनकर गोसाईं जी हतप्रभ रह गए, और ग्वाले से बोले “ग्वाले तुम किस भोजन की बात कर रहे हो भोजन तो मैंने भेजा ही नहीं, और जब मैंने तुम्हारे लिए भोजन भेजा ही नहीं तो तुमको कहाँ से मिल गया”।
ग्वाला बोला मुझे पता है गोसाईं जी आज आपका स्वास्थ्य ख़राब था इसके चलते आप यहाँ पर नहीं आये और मेरे भोजन का किसी को भी स्मरण नहीं रहा। गोसाईं ने पूँछ “तब तुमको भोजन कहाँ से मिला ?”
ग्वाला बोला एक लड़का लेकर मेरे पास आया था और बोल रहा था आज गोसाईं जी का स्वास्थ्य ख़राब है इसलिए आपके भोजन में बिलम्ब हो गया . वो बोल रहा था खाना आपने नहीं राजा ने भेजा है। यह सुनकर वहां जितने लोग थे सब हंसने लगे.
ग्वाले को बड़ा क्रोध आया वो बोला मैं कभी भी झूँठ नहीं बोलता, जिस पोटली में बो भोजन लेकर आया था उसका कपडा वो मेरे पास ही भूल आया था, मैंने सोचा में राजा को उस लड़के का कपडा वापस कर दूँ वह कपडा अभी भी मेरे पास है.
यह कह कर उसने वो कपड़ा सभी के सामने रख दिया, जैसे ही सबकी निगाह उस कपडे पर पड़ी हंसने वालों के चेहरे ऐसे उतर गए मानो किसी ने उनका खून निकाल लिया हो।
वो कपडा नहीं था वह तो श्रीविग्रह पर पड़ी पीताम्बरी थी जिसको मंदिर में रहने वाले सभी सेवादार पहचानते थे। गोसाईं दौड़कर मंदिर के अंदर गया और देखा विग्रह से पीताम्बरी गायब है, वो समझ गया कि भक्त और भगवान की लीला चालू हो चुकी है बहार आया और उसने ग्वाले के चरण पकड़ लिए।
भक्ति भोले ग्वाले की भाग १ कथा का पहला भाग है पड़ने के लिए
इसके अन्य भाग भक्ति भोले ग्वाले की भाग २, भक्ति भोले ग्वाले की भाग ३ के रूप में लिखी हुई है आप इसको भी पढ़ सकते हैं।
जय श्रीकृष्ण