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प्रभु को पहचानो
एक नदी के किनारे एक गांव बसा हुआ था, उसी गांव में प्रभु श्रीरामजी का बहुत ही रमणीक मंदिर था, उस मंदिर में जो पुजारी जी थे वह प्रभु श्री राम में अथाह श्रद्धा रखते थे, उनकी यह ख्याति बहुत दूर दूर तक थी कि राम मंदिर के पुजारी बहुत ही महान हैं और प्रभु पर उनका अटूट विश्वास है। वो रोज प्रभु का सुमरिन करते और पूजा पाठ करते, वर्षा ऋतु का समय चल रहा था अच्छी बारिश के कारण नदी उफान पर थी पानी धीरे-धीरे ऊपर चढ़ रहा था बढ़ की स्थिति को भांप कर शासन की और से भी चेतावनी जारी कर दी गई थी कि नदी का जलस्तर बढ़ रहा है अतः आस-पास के लोग सुरक्षित स्थान पर चले जाएँ, गांव वालों ने शासन की और से जो चेतावनी दी गई थी उसका अनुशरण किया और अपने-अपने सामान और रोजमर्रा की छज्जों लेकर सुरक्षित स्थान की और जाने में ही भलाई समझी, और सब एक-एक कर गांव छोड़ कर सुरक्षित स्थान के लिए चल दिए, किन्तु मंदिर के पुजारी जी पर कोई भी प्रभाव नहीं हुआ, गांव के लोग ने पुजारी जी को भी चलने के लिए बोला किन्तु पुजारी जी के उत्तर को सुन कर सभी चुप हो जाते पुजारी जी कहते कि “मुझे तो श्री राम बचाएंगे” जो भी गांव छोड़ कर जाता, वो पुजारी जी को साथ चलने की बोलता, किन्तु पुजारी जी टस से मस नहीं हुए और सभी को उन्होंने अपना एक ही जबाब दिया “मुझे तो श्री राम बचाएंगे” पुजारी जी जैसे-जैसे विलम्ब करते गए नदी का पानी बढ़ता रहा अब नदी के पानी ने विकराल रूप ले लिया था, गांव समूचा पानी में डूब चुका था, मंदिर के प्रांगण में भी पानी भरने लगा, किन्तु पुजारी जी ने अपना हठ नहीं छोड़ा बाढ़ की स्थिति को शासन ने समझा और सेना को बुला कर बचाव कार्य में लगा दिया सेना के जवानो को गांव वालों ने सूचना दी कि “मंदिर के पुजारी जी मंदिर में ही थे वो नहीं आये” तो जवानों ने पुजारी जी को बचने के लिए हेलीकाप्टर की मदद ली, एक तो मौसम ख़राब, और ऊपर से नदी का विकराल रूप, मनुष्य की रूह कांप जाय ऐसा मंजर था खेर हेलीकाप्टर से सेना के जवान ने देखा की बाढ़ का पानी मंदिर के गुम्बद पर लगे त्रिशूल तक पहुँच गया है और एक मनुष्य अपने आप को बचाने के लिए उस त्रिशूल को पकडे हुए है सेना के जवान ने एक रस्सी की सहायता से उतर कर पुजारी जी से कहा “पुजारी जी हाथ दीजिये” किन्तु पुजारी जी अपनी जिद पर डटे हुए बोले “मुझे तो श्री राम बचाएंगे” हेलीकाप्टर उधर से चला गया और फिर से चक्कर लगा के आया और जवान फिर बोला “पुजारी जी हाथ दीजिये पानी वेग बहुत तेज है हाथ से अगर त्रिशूल छूटा तो आपका अंत निश्चित है” किन्तु पुजारी कहाँ सुनने वाले थे वो वही बात बोले “मुझे तो श्री राम बचाएंगे” हेलीकाप्टर फिर चला गया जब हेलीकाप्टर फिर चक्कर लगा के लौटा तो पुजारी जी नहीं थे वो नदी के जल की प्रवल धार में बह चुके थे।
पुजारी की आत्मा जैसे ही मृत्यलोक को छोड़कर चली वैसे ही श्री राम हाथ में धनुष बाण लिए पुजारी जी को लेने के लिए आ गए, पुजारी जी ने बड़ी ही नाराजगी से अपने प्रभु से पूंछा कि “आप मेरे मरने के बाद तो तुरत आ गए किन्तु मुझे बचने क्यों नहीं आये” पुजारी जी की बात सुन कर प्रभु श्रीराम मुस्कुराये और बोले “पहले बैकुंठ चलो समय आने पर आपके सभी प्रश्नो का उत्तर आपको मिल जायेगा” पुजारी जी प्रभु के साथ बैकुन्ठ पहुँच गए और वहां पर प्रभु भजन करके रहने लगे किन्तु उनके प्रश्न का जबाब उन्हें अनहि तक नहीं मिला था बहुत दिनों बाद पुजारी जी ने प्रभु से मिलने की इच्छा द्वारपाल को जताई तो द्वारपाल ने जाकर प्रभु को बोला कि पुजारी जी आपसे मिलना चाहते हैं प्रभु माता सीता के साथ पुजारी जी के पास आये और बोले “बताओ पुजारी जी कैसे याद किया” पुजारी जी ने कहा “भगवन आज एक बार बुलाने पर आ गए किन्तु उसदिन जब मैं मर रहा था तो आप उसदिन मेरे पास मुझे बचने क्यों नहीं आये” प्रभु मुस्कुराये और माता सीता से बोले “सीते पुजारी जी के प्रश्न का उत्तर आप दो” माता सीता मुस्कुराईं और बोली “हे पुजारी जी आप ये बताओ कि प्रभु कहाँ नहीं हैं ? संसार मैं ऐसी एक वस्तु बताओ जहाँ प्रभु विध्यमान नहीं हों ? जब गांव के लोग आपको मंदिर छोड़ने की कह रहे थे तो उनमें आपने प्रभु को क्यों नहीं देखा, और फिर उस सैनिक के रूप में भी तो यही थे जो आपको बचाने की कोशिश कर रहे थे, किन्तु अफ़सोस आपने अपनी आँखों पर हठधर्मिता का पर्दा डाल रखा था उसकी बजह से आपको प्रभु के दर्शन ही नहीं हुए और आप समझते रहे कि प्रभु आपको बचाने नहीं आये किन्तु ये सर्वथा गलत है प्रभु हर बार आपके साथ थे आपको बचने की कोशिश भी की किन्तु आपने उन्हें देखा ही कब, अरे भाई आप तो पूजा-पाठ में इतने रमे हुए थे कि आप को तो सब कुछ दिखना चाहिए था किन्तु मन की आँखों को खोलकर नहीं रख सके इसीलिए प्रभु के दर्शन नहीं कर पाए”।
इतना सुन कर पुजारी जी निशब्द हो गए और बोले प्रभु मैं ही अज्ञानी था जो आपको पहचान न सका मुझे क्षमा करे।
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