
27 नक्षत्र और उनके स्वामी
नमस्कार जय सियाराम
प्रिय पाठकगण ! पिछले लेख में हमने अपने पाठकों को ये बताया था कि ज्योतिष में कुल 27 नक्षत्र और एक अभिजीत नक्षत्र होता है, ज्योतिष में जो 27 नक्षत्र होते हैं उनका स्वामित्व 9 ग्रहों के पास होता है जिनका नाम क्रमशः सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, और केतु है, भचक्र में 0 से लेकर 360 डिग्री तक इन 27 नक्षत्रों को स्थान दिया गया है अगर सरल भाषा में बोला जाये तो 360/27=13.33 तक एक नक्षत्र का फैलाव भचक्र पर रहता है, और 2.25 नक्षत्र के युग्म (मिलने) से एक राशि का गठन होता है सौर मण्डल में १२ राशियां हैं और प्रत्येक राशि नक्षत्र के ९ चरणों को मिलाने से बनती है ये कैसे होता है इसके लिए आगे के लेखों में आपको बताया जायेगा साथ बने रहें, फ़िलहाल पाठकों की सुगमता हेतु हमने चित्र में सम्पूर्ण सारणी बना दी है जिससे आपको ये समझ आ सके कि किस नक्षत्र का स्वामी कौन सा ग्रह है –
ग्रह |
केतु |
शुक्र |
सूर्य |
चंद्र |
मंगल |
राहु |
गुरु |
शनि |
बुध |
नक्षत्र |
अश्विनी |
भरणी |
कृत्तिका |
रोहिणी |
मृगशिरा |
आर्द्रा |
पुनर्वसु |
पुष्य |
आश्लेषा |
नक्षत्र के नामाक्षर |
चू, चे, चो ,ला |
ली, लू, ले, लो |
अ, इ, ऊ. ऐ |
ओ, व, वि, वू |
वे, वो, का,की |
कू, घ,ड, छ |
के, को, ह, हि |
हु, हे, हो, डा |
डी, डु, डे, ड़ो |
नक्षत्र |
मघा |
पूर्वाफाल्गुनी |
उत्तराफाल्गुनी |
हस्त |
चित्रा |
स्वाती |
विशाखा |
अनुराधा |
ज्येष्ठा |
नक्षत्र के नामाक्षर |
म़ा, मी, मू, मे |
मो, टा, टी, टू |
टे, ढो, पा, पी |
पू, ष, ण, ठ |
पे, पो, रा, री |
रू, रे, रो, ता |
ती, तू, ते, तो |
ना, नी, नू, ने |
नो, या, यी, यू |
नक्षत्र |
मूल |
पूर्वाषाढ़ा |
उत्तराषाढ़ा |
श्रवण |
धनिष्ठा |
शतभिषा |
पूर्वाभाद्रपद |
उत्तराभाद्रपद |
रेवती |
नक्षत्र के नामाक्षर |
ये, यो, भा, भी |
भू, ध, फ, ढ |
भे, भो, जा, जी |
खी, खू, खे, खो |
ग, गी, गू, गे |
गो, सा, सी, सू |
से, सो, दा, दी |
दू,थ, झ, |
दे, दो, चा, ची |
इस सारणी में केतु गृह के नीचे अश्विनी,मघा,मूल तीन नक्षत्र लिखे हैं इन तीनों नक्षत्र का स्वामी केतु है इसी प्रकार अन्य को भी समझें।
हमारे प्रिय पाठक इसके ऊपर लिखी सारणी से सुगमता पूर्वक ये जान सकते हैं कि किस ग्रह के आधिपत्य में कौन सा नक्षत्र रहता है।
अब यहाँ आपको ये बताना भी उचित ही होगा कि आप का जन्म नक्षत्र ही आपके ऊपर जन्म समय में चलने वाली महादशा का निर्धारण करता है ये कैसे होता है ? वो आपको इस उदाहरण से समझ में आ जायेगा –
मान लीजिये आपके पास एक जन्मकुंडली आती है उसमे चन्द्र धनिष्ठा नक्षत्र के दूसरे चरण में हैं अब ऊपर बनी सारणी से ये ज्ञात हो रहा है की धनिष्ठा नक्षत्र के स्वामी मंगल देव हैं तो अमुक कुंडली जो आपके पास आई थी उसको देख कर आप ये सुगमता पूर्वक बतला सकते हैं कि जातक के ऊपर जन्मकालिक मंगल देव की महादशा रही थी अब महादशा कितनी निकल चुकी थी इसका गणित भी मैं आपको आने वाले लेखों के माध्यम से बताता रहूँगा मेरा प्रयास होगा कि कोई भी ज्योतिष का विषय इन लेखों में छूटे नहीं, और अगर मान लीजिये कोई विषय अछूता रह भी जाता है तो जो मेरे ज्योतिष प्रेमी हैं हीं, उनके कमेंट मुझे उन विषयों को छोड़ने नहीं देंगे ये मेरा पूरा विश्वास है।
आगे के लेखों में इसके आगे की चर्चा करता रहूंगा और आपको ज्योतिष संबंधित जानकारियों से अवगत कराता रहूँगा वो पाठक जो किसी समस्या से ग्रसित हैं हमें लिख सकते हैं हम प्रयास करेंगे कि उनके प्रश्नों के उत्तर कमेंट बॉक्स में दे सकें।
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इस लेख में इतना ही आगे आप इन लेखों को पढ़ने के लिए वेबसाइट पर प्रत्येक गुरुवार मध्यरात्रि के बाद विजिट कर सकते हैं।
मुझे आज्ञा दें अगले लेख में नई जानकारी के साथ प्रस्तुत रहूँगा तब तक के लिए नमस्कार, जयसियाराम।
Astrologer Sanjeev Chaturvedi
Sastripuram, Agra, Uttar Pradesh
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