दानवीर कर्ण की कहानी

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दानवीर कर्ण की कहानी 

 जब विश्व में द्वापर का अंत होने वाला था और कलयुग का आगमन होने वाला था तब इस पृथ्वी पर बहुत सारे योद्धाओं ने एक ही समय काल में जन्म लिया और साथ में जन्मे कृष्णा रूप में भगवान् नारायण जिन्होंने महाभारत करवा कर सभी पापियों का नाश किया था महाभारत के सबसे प्रमुख पात्रों में से एक है कर्ण । कर्ण को महाभारत का महानायक एवं साथ साथ सर्वश्रेष्ठ धर्नुधारी भी कहा गया है। महाभारत काल के योद्धाओं, भगवान कृष्ण और भगवान परशुरामने स्वयं कर्णकी श्रेष्ठता को स्विकार किया था । कर्ण की वास्तविक माँ कुन्ती थी कर्ण का जन्म कुन्ती के विवाह होने से पूर्व हुआ था अतः कुंती ने लोक लाज के भय से कर्ण को एक पात्र में रख कर नदी में प्रवाहित कर दिया था पात्र एक शूद्र परिवार को मिल गया और शूद्र उस बालक को अपने घर ले आया जिसको अपना बालक समझ के पाला था जिसकी वजह से उस काल के उसके प्रतिद्विंदी उसको सूतपुत्र कहके भी पुकारते थे कर्ण सूर्य का पुत्र था । कर्ण दुर्योधन का सबसे अच्छा मित्र था और महाभारत के युद्ध में वह पांडवों विरुद्ध लड़ा। कर्ण को एक महान दानवीर माना जाता है क्योंकि कर्ण ने कभी भी किसी माँगने वाले को दान में कुछ भी देने से कभी भी मना नहीं किया भले ही इसके परिणामस्वरूप उसके अपने ही प्राण संकट में क्यों न पड़ गए हों।कर्ण की छवि आज भी भारतीय जनमानस में एक ऐसे महायोद्धा की है जो जीवनभर प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ता रहा। बहुत से लोगों का यह भी मानना है कि कर्ण को कभी भी वह सब नहीं मिला जिसका वह वास्तविक रूप से अधिकारी था।तर्कसंगत रूप से कहा जाए तो हस्तिनापुर के सिंहासन का वास्तविक अधिकारी कर्ण ही था क्योंकि वह कुरु राजपरिवार से ही था और युधिष्ठिर और दुर्योधन से ज्येष्ठ था, लेकिन उसे राज्य प्राप्त नहीं हुआ। कारण एक महान धनुर्धर था किन्तु सबसे महान धनुर्धर अर्जुन को बोला गया वो कुंती का ज्येष्ठ पुत्र था लेकिन उसकी वास्तविक पहचान उसकी मृत्यु तक अज्ञात ही रही। कर्ण को एक दानवीर और महान योद्धा माना जाता है कर्ण दान करने के लिए काफी प्रसिद्ध था, कहते हैं कि कर्ण जब युद्ध क्षेत्र में आखिरी सांस ले रहा था तो भगवान कृष्ण ने उसकी दानशीलता की परीक्षा लेनी चाही। वे गरीब ब्राह्मण बनकर कर्ण के पास गए और कहा कि तुम्हारे बारे में काफी सुना है और तुमसे मुझे अभी कुछ उपहार चाहिए। कर्ण ने उत्तर में कहा कि हे विप्रवर मैं मृत्यु के निकट हूँ मैं आपको क्या दे सकता हूँ मेरे बस में हो आप जो भी चाहें मांग लें। ब्राह्मण ने सोना मांगा।कर्ण ने कहा कि सोना तो उसके दांत में है और आप इसे ले सकते हैं। ब्राह्मण ने जवाब दिया कि मैं इतना कायर नहीं हूं कि तुम्हारे दांत तोड़ूं। कर्ण ने तब एक पत्थर उठाया और अपने दांत तोड़ लिए। ब्राह्मण ने इसे भी लेने से इंकार करते हुए कहा कि खून से सना हुआ यह सोना वह नहीं ले सकता। कर्ण ने इसके बाद एक बाण उठाया और आसमान की तरफ चलाया। इसके बाद बारिश होने लगी और दांत धुल गया उन्हें दानवीर कर्ण भी कहा जाता है।

कर्ण के चरित्र को आगे भी अनवरत रखूंगा। 
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जयश्रीराम
Astrology And Falit Jyotish

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