
ग्रहों की तात्कालिक मैत्री ये लाइन अधिकतर सभी ने सुनी होगी, पिछले लेख में मैंने अपने सभी पाठकों को नैसर्गिक मैत्री के बारे में बताया था। आज उसकी कड़ी में हम आपको तात्कालिक मैत्री के बारे में बताएँगे और साथ की इसकी ज्योतिष में क्या उपयोगिता है? महत्व क्या है ? और साथ ही साथ इसकी परिभाषा पर भी प्रकाश डालेंगे और कोशिश करेंगे कि हमारे पाठकों को सर्वोत्तम लेख पढ़ने के लिए प्राप्त हो।
तात्कालिक मैत्री की परिभाषा
तात्कालिक मैत्री को अगर साधारण भाषा में समझें तो यह 2 शब्द तात्कालिक यानि तुरंत, जल्दी, तत्काल और मैत्री का अर्थ है मित्रता अतः इसका सम्पूर्ण अर्थ होता है “किन्ही घर विशेष में आने पर जो ग्रह मित्र बन जाते हैं वो ग्रह तात्कालिक मित्र कहलाते हैं।
कब बनती है तात्कालिक मैत्री ?
जन्म कुंडली मे विराजमान किसी भी ग्रह से दूसरे, तीसरे, चौथे, दशमें, ग्यारहवे एवं बारहवे भाव में बैठा ग्रह उस ग्रह के तात्कालिक मित्र माने जाते है जिससे कि यह भाव गिने गए थे। जन्मांक मे किसी ग्रह की स्थिति से पहले, पांचवें, छठवें , सातवें, आठवें और नौवें स्थान में बैठा हुआ ग्रह उस ग्रह के तात्कालिक शत्रु माने जाते हैं जिस ग्रह की जानकारी चाही गई थी।
महत्व क्या है ?
अगर आप फल कथन करने जा रहे हैं, कुंडली के किसी भी घर से फल कथन करने के लिए ग्रहों की आपस में मित्रता देखना अत्यंत आवश्यक है। इस पहलू को अगर प्रबुद्ध ज्योतिषी दर किनार करदेगा तो फल कथन में सटीकता का अभाव रहेगा और जो फल कथन बिना ग्रहोने की मैत्री को विचारे किया जावेगा वो फल कथन सत्य से परे चला जायेगा। अतः मैत्री का बोध होना अत्यधिक आवश्यक है बिना इसके फल कथन अधूरा है।