

चंद्र गृह और उसकी उपासना
चंद्रमाका जन्म
सुंदर चमकीले चंद्रमा कोदेवताओं के सामानही पूजनीय मानागया है। चंद्रमाके जन्म कीकहानी पुराणों मेंअलग–अलग मिलतीहै। ज्योतिष औरवेदों में चन्द्रको मन काकारक कहा गयाहै। ये सोलह कलाओं से परिपूर्ण हैं। इनके एक हाथ में गदा और दूसरे हाथ में वरमुद्रा है। मंथन में निकले १३ अन्य रत्न इनके सहोदर हैं, भगवान शंकर ने इन्हे मस्तिष्क किया है ये बीज दवाओं तथा ब्राह्मणो के राजा हैं। इनकी महादशा दस वर्षकी होती हैतथा ये कर्कराशि के स्वामीहैं ये वृषभ राशि में उच्च के और वृश्चिक राशि में नीच के होते हैं कृष्ण पक्ष की छट से लेकर शुक्ल पक्ष की छट तक हुए जातक के जन्म में चंद्र को कमजोर माना जाता है। इन्हें नवग्रहोंमें दूसरा स्थानप्राप्त है। इनकीप्रतिकूलता से मनुष्यको मानसिक कष्टोंका सामना करनापड़ता है। कहतेहैं कि पूर्णिमाको तांबे केपात्र में मधुमिश्रितपकवान अर्पित करनेपर ये तृप्तहोते हैं। जिसकेफलस्वरूप मानव सभीकष्टों से मुक्तिपा जाता है।वैदिक साहित्यमें सोम कास्थान भी प्रमुखदेवताओं में मिलताहै। अग्नि ,इंद्र,सूर्य आदि देवोंके समान हीसोम की स्तुतिके मन्त्रों कीभी रचना ऋषियोंद्वारा की गईहै।
मत्स्य एवम अग्निपुराण के अनुसारजब ब्रह्मा जीने सृष्टि रचनेका विचार कियातो सबसे पहलेअपने मानसिक संकल्पसे मानस पुत्रोंकी रचना की।उनमें से एकमानस पुत्र ऋषिअत्रि का विवाहऋषि कर्दम कीकन्या अनुसुइया सेहुआ जिस सेदुर्वासा,दत्तात्रेय व सोमतीन पुत्र हुए।सोम चन्द्र काही एक नामहै।
पद्म पुराण में चन्द्रके जन्म काअन्य वृतान्त दियागया है। ब्रह्माने अपने मानसपुत्र अत्रि कोसृष्टि का विस्तारकरने की आज्ञादी। महर्षि अत्रिने अनुत्तर नामका तप आरम्भकिया। ताप कालमें एक दिनमहर्षि के नेत्रोंसे जल कीकुछ बूंदें टपकपड़ी जो बहुतप्रकाशमय थीं। दिशाओंने स्त्री रूपमें आ करपुत्र प्राप्ति कीकामना से उनबूंदों को ग्रहणकर लिया जोउनके उदर मेंगर्भ रूप मेंस्थित हो गया।परन्तु उस प्रकाशमानगर्भ को दिशाएंधारण न रखसकीं और त्यागदिया। उस त्यागेहुए गर्भ कोब्रह्मा ने पुरुषरूप दिया जोचंद्रमा के नामसे प्रख्यात हुए।देवताओं,ऋषियों व गन्धर्वोंआदि ने उनकीस्तुति की। उनकेही तेज सेपृथ्वी पर दिव्यऔषधियां उत्पन्न हुई। ब्रह्माजी ने चन्द्रको नक्षत्र,वनस्पतियों,ब्राह्मण व तपका स्वामी नियुक्तकिया।
स्कन्द पुराण के अनुसारजब देवों तथादैत्यों ने क्षीरसागर का मंथनकिया था तोउस में सेचौदह रत्न निकलेथे। चंद्रमा उन्हींचौदह रत्नों मेंसे एक हैजिसे लोक कल्याणहेतु, उसी मंथनसे प्राप्त कालकूटविष को पीजाने वाले भगवानशंकर ने अपनेमस्तक पर धारणकर लिया। परग्रह के रूपमें चन्द्र कीउपस्थिति मंथन सेपूर्व भी सिद्धहोती है।
स्कन्द पुराण के अनुसार समुद्रमंथन का मुहूर्तनिकालते हुए देवोंको कहा किइस समय सभीग्रह अनुकूल हैं।चंद्रमा से गुरुका शुभ योगहै। तुम्हारेकार्य की सिद्धिके लिए चन्द्रबल उत्तम है।यह गोमन्त मुहूर्ततुम्हें विजय देनेवाला है। अतःयह संभव हैकि चंद्रमा केविभिन्न अंशों का जन्मविभिन्न कालों में हुआहो। चन्द्र काविवाह दक्ष प्रजापतिकी नक्षत्र रुपी27 कन्याओं से हुआजिनसे अनेक प्रतिभाशालीपुत्र हुए। इन्हीं27 नक्षत्रों के भोगसे एक चन्द्रमास पूर्ण होताहै।
चंद्र देव से होने वाली हानि
वैसे तो चन्द्रदेव का स्वभावबहुत शांतऔर ठंडा होताहै और यहीवजह है किवो हम सभीको शीतलता प्रदानकरते है किन्तुजब वे गुस्सेमें आते हैतो उसके परिणामबहुत भयंकर औरविनाशकारी हो सकतेहै। इसलिए कभीभी चन्द्र देवको कुपित नाहोने दें औरअगर वे कभीआपसे रुष्ट होभी जाएँ तोआप तुरंत कुछउपायों को अपनाकरउन्हें जल्दी से प्रसन्नकर लें।आज हमचन्द्र देव सेजुडी कुछ ऐसीबातें बताने वालेहै जिन्हें जानकरआप पता लगासकते हो किचन्द्र देव आपसेरुष्ट है यानहीं और अगरहै तो उन्हेंकिस तरह मनायाजा सकता है।देखने में आयाहै कि चंद्रदेव के रुष्टहोने से मानसिकरोग बहुत होतेहैं। आज मैंआपको चंद्र केरुष्ट होने परक्या–क्या होताहै इसके बारेमें बताने जारहा हूं यहपढ़कर आप आकलनकर सकते हैंकि कहीं आपके साथ तोऐसा नहीं होरहा।
कुपित चन्द्रमा
मानसिक परेशानी– चंद्रमाके रुष्ट होतेही जो पहलासंकेत सामने आताहै वो हैमानसिक चिंता व परेशानी, ऐसे में जातकखुद को फंसाफंसा महसूस करताहै, उसे समझनहीं आता किवो अपनी समस्याओंसे कैसे बाहरनिकलें।
४.छाती मेंमलगम जमना– सुननेमें तो येआपको सामान्य सालक्षण लगता हैकिन्तु जब अगरआप बाकी संकेतोंके साथ इसेदेखा जाए तोये पुष्टि करताहै कि हाँसच में चन्द्रमाकुपित हो चुकेहै. यहीं नहींउन्हें अन्य वातरोग भी अपनाशिकार बना लेतेहै।
रुष्ट चन्द्रमाऔर उसके उपाय
१.क्योकि चन्द्रमा केगुस्सा होने परजातक का बुरासमय आरम्भ होजाता है इसलिएउसे बार बारअपने पुराने दिनस्मरण होते रहतेहै।
३.अगर किसीमहिला पर चन्द्ररुष्ट होते हैतो उनके माहवारीचक्र में अनियमितताहोनी शुरू होजाती है।
४. कहा जाताहै कि चिंताकरने से बालसफ़ेद होते हैजबकि बालों के असमय सफ़ेद होने केपीछे भी चन्द्रदेव का हीहाथ होता है।
शरीर के तत्वअनुसार रुष्ट चंद्रमा कोमनाएं
१. अगर चंद्र (मेष,सिंह,धनु )अग्नि तत्व मेंहोने पर कुपितहोता है तोजातक को सोमवारके व्रत रखनेके साथ साथचंद्र की हवनसामग्री से हवनअवश्य कराना चाहियें।
३.(कर्क, वृश्चिक, मीन ) जल तत्व में रुष्टहै तो आपकोसोमवार के दिनकच्चे चावल लेनेहै और उन्हेंबहते पानी मेंप्रवाहित करना है।इसकेअलावा आप किसीमहिला को चन्द्रमाका सामान भीअवश्य दें।
खराब /नाराज चंद्र के उपाय
लग्न में चंद्र ख़राब तो
वट बृक्ष की जड़में पानी डालें। चारपाईके चारो पायोपर चांदी कीकीले लगाएं।शरीरपर चांदी धारणकरें।
व्यक्तिको देर रात्रितक नहीं जागनाचाहिए। रात्रि के समयघूमने–फिरने तथायात्रा से बचनाचाहिए।पूर्णिमाके दिन शिवजी को खीरका भोग लगाएं।
दूसरे भाव में चंद्र ख़राब तो
मकानकी नीव मेंचॉदी दबाएं। माताका आशीर्वाद लें।
तृतीय भाव में चंद्र ख़राब तो
चांदीका कडा धारणकरें। पानी,दूध, चावल कादान करे़ं।
चतुर्थभाव में चंद्र ख़राब तो
चांदी, चावल व दूधका कारोबार नकरें। मातासे चांदी लेकरअपने पास रखेव माता सेआशिर्वाद लें।
घर में किसीभी स्थान परपानी का जमावन होनें पाए।
पंचम भाव में चंद्र ख़राब तो
ब्रह्मचर्यका पालन करें।बेईमानीऔर लालच नाकरें, झूठ बोलनेसे परहेज करें।11 सोमवारनियमित रूप से9 कन्याओं को खीरका प्रसाद दें।सोमवारको सफेद कपडेमें चावल, मिशरीबांधकर बहते पानीमें प्रवाहित करें।
छठे भाव में चंद्र ख़राब तो
श्मशानमें पानी कीटंकी या हैण्डपम्पलगवाएं।चांदीका चोकोर टुकडा़अपने पास रखें।रातके समय दूधना पीयें।माता–सास कीसेवा करें।
सप्तम भाव में चंद्र ख़राब तो
पानीऔर दूध काव्यापार न करें। माताको दुख नापहुचाएं।
अष्टम भाव में चंद्र ख़राब तो
श्मशानके नल सेपानी लाकर घरमे रखें। छल–कपट सेपरहेज करें। बडे़–बूढो काआशीर्वाद लेते रहें। श्राद्धपर्व मनाते रहे। कुएंके उपर मकानन बनाएं। मन्दिरमें चने कीदाल चढाएं। व्यभिचारसे दूर रहे।
नवम भाव में चंद्र ख़राब तो
धर्मस्थान में दूधऔर चावल कादान करें। मन्दिरमें दर्शन करनेहर रोज जाएं। बुजुर्गस्त्रियों से आशीर्वादप्राप्त करना चाहिए।
दशम भाव में चंद्र ख़राब तो
रातके समय दूधका सेवन नकरें। मुफ्तमें दवाई बांटें। समुद्र, वर्षा या नदीका पानी घरमें रखें।
एकादश भाव में चंद्र ख़राब तो
भैरवमन्दिर में दूधचढाएं। सोनेकी सलाई गरमकरके उसको दूधमें ठण्डा करकेउस दूध कोपिएं।
दूधका दान करें।
द्वादशभाव में चंद्र ख़राब तो
वर्षाका पानी घरमें रखें। धर्मस्थान या मन्दिरमें नियमित सरझुकाए।
चन्द्र देव कीपूजा विधि
सोमवार भगवान चन्द्रदेव कादिन होता है.इसदिन चन्द्रग्रह की प्रसन्नताके लिए सोमवारका व्रत रहनाचाहिए .जिससे ब्लड प्रेशर, एनीमिया , रक्त विकार, पागलपन , मतिभ्रम , जुकाम , कफ़, गले के रोगव् हार्ट रिलेटेडरोग नहीं होतेहैं .
विधि — इसव्रत को करनेके लिए सुबहस्नान करके सोमवारकी कथा करें. इसके अलावा मंत्र – “ ॐसों सोमाय नमः“ काजाप १०८ बारकरना चाहिए . इसदिन भगवन शिवकी आराधना करनीचाहये .शुक्ल पक्ष मेंशुभ मुहूर्त मेंमाँ के स्वास्थ्यरक्षा के लिएशिवलिंग में दूधसे अभिषेक करनाचाहिए .इस दिनॐ शिवाय नमःका जाप यामहामृतुन्जय के जापसे माता काभला होता है. मानसिक तनाव सेबचने के लिएसोमवार का व्रतऔर शिव पूजालाभकारी होती है. पलाश का फूलव् सफ़ेद फूलसे पूजा करनीचाहिए . इस दिनखीर व् मीठादही खान चाहिए. सुबह जल मेंसफ़ेद फूल डालकरनहाना चाहिए.
दान –इस दिनप्रातः काल मेंचावल , कपूर , चांदी , मोती, दही , मिश्री , सफ़ेद कपडा, शंख , स्वेत चन्दन , सफ़ेदबैल , सिंघाड़ा काआटा और फलोका दान करनाचाहिए .
मंत्र– “ ॐऐं क्लीं सोमायनमः “ का १०८बार जाप करनाचाहिए . कुल मिलाकर४४०००० बार जापहोना चाहिए .
इस दिन खिन्नीकी जड़ कोसफ़ेद धागे मेंबाएं भुजा मेंबांधना चाहिए .
सोमवार की कथा
एक समय श्रीभूतनाथ महादेव जी मृत्युलोकमें विहार कीइच्छा करके मातापार्वती के साथपधारे। विदर्भ देश कीअमरावती नगरी जोकि सभी सुखोंसे परिपूर्ण थीवहां पधारे. वहांके राजा द्वाराएक अत्यंत सुन्दरशिव मंदिर था, जहां वे रहनेलगे। एक बारपार्वती जी नेचौसर खलने कीइच्छा की। तभीमंदिर में पुजारीके प्रवेश करन्बेपर माताजी नेपूछा कि इसबाज़ी में किसकीजीत होगी? तोब्राह्मण ने कहाकि महादेव जीकी। लेकिन पार्वतीजी जीत गयीं।तब ब्राह्मण कोउन्होंने झूठ बोलनेके अपराध मेंकोढ़ी होने काश्राप दिया। कईदिनों के पश्चातदेवलोक की अपसराएं, उस मंदिर मेंपधारीं और उसेदेखकर कारण पूछा. पुजारी ने निःसंकोचसब बताया। तबअप्सराओं ने ढाढसबंधाया और सोलहसोमवार के व्रत्ररखने को बताया।विधि पूछने परउन्होंने विधि भीउपरोक्तानुसार बतायी. इससे शिवजीकी कृपा सेसारे मनोरथ पूर्णहो जाते हैं।फ़िर अप्सराएं स्वर्गको चलीं गयीं।ब्राह्मण ने सोमवारोंका व्रत करके रोगमुक्त होकरजीवन व्यतीत किया।कुछ दिन उपरांतशिव पार्वती जीके पधारने पर, पार्वती जी नेउसके रोगमुक्त होनेका करण पूछा. तब ब्राह्मण नेसारी कथा बतायी. तब पार्वती जीने भी यहीव्रत किया औरउनकी मनोकामना पूर्णहुई। उनके रूठेपुत्र कार्तिकेय जीमाता के आज्ञाकारीहुए. परन्तु कार्तिकेयजी ने अपनेविचार परिवर्तन काकारण पूछा. तबपार्वती जी नेवही कथा उन्हेंभी बतायी. तबस्वामी कार्तिकेय जी नेभी यही व्रतकिया। उनकी भीइच्छा पूर्ण हुई।उनसे उनके मित्रब्राह्मण ने पूछकर यही व्रतकिया। फ़िर वहब्राह्मण विदेश गया औरएक राज केयहां स्वयंवर मेंगया। वहां राजाने प्रण कियाथा, कि एकहथिनी एक माला, जिस के गलेमें डालेगी, वहअपनी पुत्री उसीसे विवाह करेगा।वहां शिव कृपासे हथिनी नेमाला उस ब्राह्मणके गले मेंडाल दी। राजाने उससे अपनीपुत्री का विवाहकर दिया। उसकन्या के पूछनेपर ब्राह्मण नेउसे कथा बतायी. तब उस कन्याने भी वहीव्रत कर एकसुंदर पुत्र पाया।बाद में उसपुत्र ने भीयही व्रत कियाऔर एक वृद्धराजा का राज्यपाया। जब वहनया राजा सोमवारकी पूजा करनेगया, तो उसकीपत्नी अश्रद्धा होनेसे नहीं गयी।पूजा पूर्ण होनेपर आकाश वाणीहुई, कि राजनइस कन्या कोछोड़ दे, अन्यथातेरा सर्वनाश होजाये गा.अंतमें उसने रानीको राज्य सेनिकाल दिया। वहरानी भूखी प्यासीरोती हुई दूसरेनगर में पहुंची. वहां एक बुढ़ियाउसे मिली, जिसकेसाथ वह बूढीऔरत धागे बनाती थी।उसी के साथकाम करने लगीपर दुसरे दिनजब वो धागाबेचने निकली तोअचानक तेज हवाचली और सारेधागे उड गएतो मालकिन नेगुस्से में आकरउसे कामसे निकालदिया। फिर रोतेफिरते वह एकतेली के घरपहुँची तेली नेउसे रख लियापर भन्डार घरमे जाते हितेल के बर्तनगिरगए और तेलबह गया तोउस तेली नेउसे घर सेनिकाल दिया। इसप्रकार सभी जगहसे निकाले जानेके बाद वहएक सुन्दर वनमे पहुँची वहाँके तलाब सेपानी पीने केलिए जब बढीतो तालाब सुखगया थोडा पानीबचा जो किकीटो से युक्तथा। उसी पानीको पीकर वोएक वृक्ष केनीचे बैठ गईपर तुरंत उसवृक्ष के पत्तेझड़ गए। इसतरह वो जिसवृक्ष के नीचेसे गुज़रती वहवृक्ष पत्तो सेविहीन हो जाताऐसे ही सारावन ही सुखनेको आया। यहदेखकर कुछ चरवाहउस रानी कोलेकर एक शिवमंदिर के पुजारीके पास लेगए। वहाँ रानीनेपुजारी के आग्रहसे सारी बातबतायी और सुनकर पुजारी नेकहा की तुम्हेशिव का श्रापलगा है। रानीने विनती करकेपुछा तो पुजारीनेइसके निदान काउपाय बताया औरसोमवार व्रत कीबिधि बताई। रानीने तन मनसे व्रत पूराकिया और शिवकी क्रिपा सेसत्रहवे सोमवार को राजाका मन परिवर्तनहुआ। राजा नेरानी को ढुढनेदूत भेजे। पतालगने के बादराजा ने बुलावाभेजा पर पुजारीने कहा राजाको स्वयं भेजो।इसपर राजा नेविचार किया औरस्वयं पहुचे। रानीको लेकर दरवारपहुचे और उनकास्थान दिया। सम्पूर्णशहर मे खुशियांमनायी गई राजाने गरीबो कोकाफि दान दक्षिणाकिया और शिवके परमभक्त होकरनियमपूर्वक 16 सोमवार का व्रतकरने लगे औरसंसार के सारेसुख को भोगकरअंतमे शिवधाम गए।इस प्रकार जोभी मन लगाकरश्रद्धा पूर्वक नियमसे 16 सोमवारका ब्रत करेगावह इस लोकमेपरम सुख कोप्राप्त कर अंतमे परलोक मेमुक्ति को प्राप्तहोगा ।
तांत्रोक्तमंत्र
ऊँ ऎं क्लींसोमाय नम: ।
ऊँ श्रां श्रीं श्रौंचन्द्रमसे नम: ।
ऊँ श्रीं श्रीं चन्द्रमसेनम: ।
चन्द्रमाका नाममंत्र
ऊँ सों सोमायनम:
चंद्रमाका पौराणिक मंत्र
ऊँ दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसंभवम ।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुटभूषणम।।
चंद्रमागायत्री मंत्र
ऊँ अमृतंग अन्गाये विधमहेकलारुपाय धीमहि, तन्नो सोमप्रचोदयात ।
प्रिय पाठको जिन लोगों की कुण्डली में चंद्रदेव कमजोर हैं, या ६. ८.१२ भाव में बैठे हैं या अकारक गृह हैं अथवा अस्त या मृत अवस्था में हैं वो लोग चंद्रदेव की पूजा करें, जप करें लाभ होगा।
जयश्रीराम
Astrology And Falit Jyotish