ग्रह कब हो जाते हैं वक्री

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ग्रह कब हो जाते हैं वक्री

प्रिय पाठको, जयसियाराम, आज हम बात करने वाले हैं ग्रहों के वक्री होने पर ग्रहों का वक्री होना और वक्री से मार्गी होना आम बात है कभी हम सुनते रहते हैं कि यह ग्रह मार्गी से वक्री हो रहा है, तो कभी सुनने में आता है कि यह ग्रह वक्री से मार्गी हो रहा है।

क्या है ग्रहों का वक्री होना

 ग्रहों का वक्री होना आम बात है वक्री होने का अर्थ है उल्टा चलना। प्रत्येक ग्रह अपनी कक्षा में एक निश्चित भ्रमण पथ पर एन्टी क्लॉक वाइज चक्कर लगाता है, इस स्थिति को ग्रहों का मार्गी होना बोला जाता है। इसके उलट जब कोई ग्रह भ्रमण पथ पर चलते हुए उल्टी दिशा (क्लॉक वाइज) चलता दिखाई देता है तब ज्योतिष लोग बोलते हैं कि ग्रह वक्री हो गया, लेकिन साइंस बोलती है कि कोई भी ग्रह एक निश्चित दिशा और निश्चित भ्रमण पथ पर सदैव चलायमान रहते हैं और वह कभी भी अपने भ्रमण पथ पर उल्टा नही चलते।

तो क्या सच में होते हैं ग्रह वक्री ?

 अगर आप एक ज्योतिषी हैं अथवा ज्योतिष विषयों में आपको रुचि है तो आपको ये मान लेना होगा कि ग्रह अपने निश्चित भ्रमण पथ पर चलते हुए अचानक से उल्टी दिशा में भ्रमण करने लगते हैं, और फिर कुछ दिन उल्टी दिशा में चलने के बाद ये अपने भ्रमण पथ पर फिर से सीधी दिशा में चलने लगते हैं। तो फिर कैसे समझें कि ग्रह वक्री चलता हुआ आखिर दिखाई कैसे देता है ? आइए आपको एक उदाहरण से समझता हूँ- दरअसल ग्रह भी अपने निश्चित भ्रमण पथ भ्रमण करता है, और पृथ्वी भी अपने निश्चित भ्रमण पथ पर भ्रमण करती है, पृथ्वी और ग्रह दोनों की चलने की गति में सामंजस्य नहीं होता, दोनों के चलने की गति में असमानता होती है, ठीक उस प्रकार जिस प्रकार जब दो ट्रेन एक ही ओर को चलायमान होती है, और आप किसी एक ट्रेन में सफर कर रहे होते हैं, तब आप जिस ट्रेन में सफर कर रहे हैं अगर उस ट्रेन की गति अधिक है और साथ मे चलने वाली ट्रेन की गति धीमी है, तो ऐसा प्रतीत होता है कि दूसरी ट्रेन पीछे की ओर जा रही है, लेकिन असल मे चल वह भी आगे ही रही है, आपसी गति में असमानता होने से मतिभ्रम उत्पन्न होता है और दूसरी ट्रेन वक्री गति से चलती प्रतीत होने लगती है। यही स्थिति वक्री ग्रहों के साथ भी होता है।

वक्री ग्रहों का विशेष फल

 ज्योतिष शास्त्र कहता है कि वक्री ग्रह विशेष फलदाई होते हैं, अगर कोई ग्रह आपकी कुंडली में योगकारक होते हुए वक्री हो जाता है तो वह सर्वोत्तम फल देने वाला होता है। वही अगर आपकी कुंडली में कोई ग्रह योगकारक न होते हुए वक्री हो जाता है तो वह अपने सबसे निकृष्टतम फल देता है। वक्री ग्रह जिस भाव में स्थित होते हैं उससे पहले के भाव का प्रभाव देते हैं। उदाहरण के लिए, यदि शनि कुंभ राशि में है और वक्री हो जाये, तो यह मकर राशि के अपने कब्जे वाले भाव का परिणाम भी देगा।

वो कौनसी स्थिति है जब हो जाते हैं ग्रह वक्री

 आइए अब जानते हैं कि ग्रह कौन सी स्थिति में आते हैं तब वक्री हो जाते हैं। दरअसल ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को भी चलाय-मान माना जाता है, सूर्यदेव भी ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मेष राशि से लेकर मीन राशि पर्यंत भ्रमण करते रहते हैं, जब सूर्य से मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र एवं शनिदेव यह पांच ग्रह(सूर्य और चंद्र सदैव मार्गी रहते हैं ये कभी भी वक्री नहीं होते और राहु-केतु सदैव वक्री रहते हैं ये कभी मार्गी नहीं होते) एक निश्चित अंश पर पहुंच जाते हैं तब यह वक्री हो जाते हैं।

 मंगल सूर्य से 164-196 डिग्री की चाप-दूरी में वक्री होता है। शुक्र सूर्य से 163-197 डिग्री की चाप-दूरी में वक्री होता है। बुध 144-216 डिग्री की चाप-दूरी में वक्री होता है। बृहस्पति 130-230 अंश की चाप-दूरी के भीतर और शनि, सूर्य से 115-245 अंश की चाप-दूरी के भीतर वक्री होते हैं।

आज पाठकों को ये समझ आ गया होगा कि ग्रह किस स्थिति में वक्री हो जाते हैं।

आने वाले लेख में फिर से मिलेंगे तबतक के लिये जयसियाराम।

Astrology And Falit Jyotish

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