ग्रहों की नैसर्गिक मैत्री

ग्रहों की नैसर्गिक मैत्री, तात्कालिक मैत्री ये शब्द तकरीबन उन सभी मित्रों ने पढ़े व सुने होंगे जो ज्योतिष में रुचि रखते हैं या जो अपनी कुण्डली किसी प्रबुद्ध ज्योतिषी को दिखाते हैं। आज अपने प्रसंशको और आलोचकों के लिए ये पोस्ट लिख रहे हैं जिसमे हम नैसर्गिक मैत्री के ऊपर चर्चा करेंगे।

नैसर्गिक मैत्री क्या होती है ?

नैसर्गिक मैत्री शब्द दो शब्दों के मिलने से बना है, जिसमे पहला शब्द है नैसर्गिक और दूसरा शब्द है मैत्री। अगर इसका शाब्दिक अर्थ निकला जाए तो नैसर्गिक का अर्थ होता है प्राकृतिक, स्वाभाविक अथवा कुदरती और मैत्री का अर्थ होता मित्रता। अब नैसर्गिक मैत्रीका सम्पूर्ण अर्थ अथवा परिभाषा निकल कर आती है वो इस प्रकार है- ग्रहों के बीच स्वाभिक रूप से जो मित्रता है उसी को ग्रहों की नैसर्गिक मैत्री कहते हैं। वो ग्रह जो नैसर्गिक मैत्री में होते हैं वोकुण्डली के फल कथन में सदैव मित्रवत फल देने वाले होते हैं।

नैसर्गिक मैत्री की उपयोगिता क्या है ?

आप लोगों में कुछ लोगों के अंतःकरण में ये विचार अवश्य आता होगा कि इस नैसर्गिक मैत्री की उपयोगिता क्या है ? और यह किसलिए याद रखी जाए ? तो जिन पाठकों को ऐसा प्रतीत होता है कि नैसर्गिक मैत्री की कोई भी आवश्यकता नहीं है, या यह बहुत ही साधारण विषय है, तब अगर आप ज्योतिष सीख रहे हैं, अथवा कुछ भी जानकारी आप कुंडली के माध्यम से चाहते हैं, तो ग्रहों की मैत्री की जानकारी के आभाव में वह फल आपको प्राप्त ही नहीं होंगे जो आप अपने फल कथन में बताएँगे। समस्त फल कथन और विवाह हेतु वर – वधु की कुण्डली मिलाने के समय नैसर्गिक मैत्री का अवलोकन बहुत आवश्यक होता है, इसकी जानकारी होना अति आवश्यक है।

ग्रहों की मैत्री कितने प्रकार की होती है ?

अब ये जान लेने के बाद, ये जिज्ञासा उठाना भी आवश्यक है कि ग्रहों की मैत्री कितने प्रकार की होती है ? ग्रहों की मैत्री कितने प्रकार की होती है ये मैं आज के लेख में बता रहा हूँ लेकिन आज के लेख में केवल नैसर्गिक मैत्री के विषय में ही बात करेंगे।

  • ग्रहों की नैसर्गिक मैत्री
  • ग्रहो की तात्कालिक मैत्री
  • ग्रहों की पंचधा मैत्री
ग्रहों की नैसर्गिक मैत्री
ग्रहों की नैसर्गिक मैत्री

नैसर्गिक मैत्री की जानकारी

मित्रो कौनसे ग्रह किस ग्रह के साथ नैसर्गिक मैत्री में होते हैं इसका विवरण इस प्रकार है।

सूर्य के – चन्द्र, गुरु व मंगल मित्र हैं, बुध समान हैं, शुक्र शनि शत्रु हैं।

चंद्र के – सूर्य व बुद्ध मित्र हैं, मंगल गुरु शुक्र शनि सम हैं, चन्द्रमा का शत्रु कोई नहीं है।

मंगल के – सूर्य चंद्र व गुरु मित्र हैं, शुक्र शनि समान हैं, बुद्ध शत्रु हैं।

बुद्ध के – सूर्य शुक्र मित्र हैं, मंगल गुरु एवं शनि समान हैं, चंद्र शत्रु हैं।

गुरु के – सूर्य चंद्र मंगल मित्र हैं, शनि समान हैं, बुद्ध शुक्र शत्रु हैं।

शुक्र के – बुद्ध शनि मित्र हैं, मंगल गुरु समान हैं, सूर्य चंद्र शत्रु हैं।

शनि के – बुद्ध शुक्र मित्र हैं, गुरु समान हैं, सूर्य चंद्र मंगल शत्रु हैं।

यहाँ पर आपको ये भ्रम हो सकता है कि, मंगल के साथ बुद्ध शत्रु ग्रहों में लिखे हैं और बुध के साथ मंगल समान ग्रहों में लिखे हैं, ऐसा किसलिए है ? तो आपकी सुगमता हेतु बतला देता हूँ कि जिस प्रकार हम किसी व्यक्ति से प्रेम करते हुए अपना समझ कर मित्रता करते हैं, यह जरूरी तो नहीं को भी हमारे प्रति मित्रता रखे। वो हमारे लिए तो मित्र की श्रेणी में आता है, मगर हो सकता है हम उसके लिए न मित्रो की श्रेणी में और न शत्रुओं की श्रेणी में आएं। और ये भी हो सकता है कि वह हमें शत्रु समझे अतः आपको भ्रम न हो इसलिए ये उदाहरण दिया है।
आशा करता हूँ कि आपको नैसर्गिक मैत्री के बारे में सबकुछ समझ आ गया होगा, आपके प्रश्न और कमेंट हमारे लिए अमृत तुल्य हैं इनसे हमें सिंचित रखिये। आगे के लिख में फिर मिलेंगे जय सियाराम।

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