
गुरु गृह और उसकी उपासना
ऐसे बृहस्पति गुरू
गुरूवार को बृहस्पति जी की पूजा होती है है जिनको देवताओं के गुरु की पदवी प्रदान की गई है। चार हाथों वाले बृहस्पति जी स्वर्ण मुकुट तथा गले में सुंदर माला धारण किये रहते हैं, और पीले वस्त्र पहने हुए कमल आसन पर आसीन रहते हैं। इनके चार हाथों में स्वर्ण निर्मित दण्ड, रुद्राक्ष माला, पात्र और वरदमुद्रा शोभा पाती है। प्राचीन ऋग्वेद में बताया गया है कि बृहस्पति बहुत सुंदर हैं। ये सोने से बने महल में निवास करते है। इनका वाहन स्वर्ण निर्मित रथ है, जो सूर्य के समान दीप्तिमान है एवं जिसमें सभी सुख सुविधाएं संपन्न हैं। उस रथ में वायु वेग वाले पीतवर्णी आठ घोड़े तत्पर रहते हैं।
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देवगुरू कापरिवार
देवगुरु बृहस्पति की तीन पत्नियां हैं जिनमें से ज्येष्ठ पत्नी का नाम शुभा, कनिष्ठ का तारा या तारका तथा तीसरी का नाम ममता है। शुभा से इनके सात कन्याएं उत्पन्न हुईं हैं, जिनके नाम इस प्रकार से हैं, भानुमती, राका, अर्चिष्मती, महामती, महिष्मती, सिनीवाली और हविष्मती। इसके उपरांत तारका से सात पुत्र और एक कन्या उत्पन्न हुईं। उनकी तीसरी पत्नी से भारद्वाज और कच नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए। बृहस्पति के अधिदेवता इंद्र और प्रत्यधि देवता ब्रह्मा हैं। महाभारत के आदिपर्व में उल्लेख के अनुसार, बृहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र तथा देवताओं के पुरोहित हैं। ये अपने प्रकृष्ट ज्ञान से देवताओं को उनका यज्ञ भाग या हवि प्राप्त करा देते हैं।
बृहस्पतिगुरू केपवित्र मंत्र
जब असुर एवं दैत्य यज्ञ में विघ्न डालकर देवताओं को क्षीण कर हराने का प्रयास करते रहते हैं तो उनकी रक्षा देवगुरु बृहस्पति रक्षोघ्र मंत्रों का प्रयोग करके करते हैं। बृहस्पति देवताओं का पोषण एवं रक्षण करते हैं और दैत्यों से देवताओं की रक्षा करते हैं। उनकी पूजा में नीचे दिये 5 मंत्रों का जाप विशिष्ट माना गया है।
1- देवानां च ऋषीणां च गुरुं का चनसन्निभम।
2- बुद्धि भूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पितम।
3- ऊं ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:।
4- ऊं बृं बृहस्पतये नम:।
5- ऊं अंशगिरसाय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नो जीव: प्रचोदयात्।
सूर्योदय से पहले उठकर स्नान से निवृत्त होकर पीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए। शुद्ध जल छिड़ककर पूरा घर पवित्र करें। घर के ही किसी पवित्र स्थान पर बृहस्पतिदेवकी मूर्ति या चित्र स्थापित करें। तत्पश्चात पीत वर्ण के गंध–पुष्प और अक्षत से विधिविधान से पूजन करें। इसके बाद निम्न मंत्र से प्रार्थना करें–
धर्मशास्तार्थतत्वज्ञ ज्ञानविज्ञानपारग। विविधार्तिहराचिन्त्य देवाचार्य नमोऽस्तु ते॥
तत्पश्चात आरती कर व्रतकथा सुनें।
बृहस्पतिदेव की आरती
जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा। छिन छिन भोग लगाऊ फल मेवा।। जय बृहस्पति देवा।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी। जगत पिता जगदीश्वर तुम सबके स्वामी।। जय बृहस्पति देवा।
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता। सकल मनोरथ दायक, किरपा करो भर्ता।। जय बृहस्पति देवा।
तन, मन, धन अर्पणकर जो शरण पड़े। प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े।। जय बृहस्पति देवा।
दीन दयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी। पाप दोष सभ हर्ता, भाव बंधन हारी।। जय बृहस्पति देवा।
सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारो। विषय विकार मिटाओ संतन सुखकारी।। जय बृहस्पति देवा।
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे। जेष्टानंद बन्द सो सो निश्चय पावे ।। जय बृहस्पति देवा।
व्रत की विधि
इस दिन एक समय ही भोजन किया जाता है। व्रत करने वाले को भोजन में चने की दाल अवश्य खानी चाहिए। बृहस्पतिवार के व्रत में कदलीफल (केले) केवृक्ष की पूजा की जाती है।
बृहस्पतिवार व्रत कथा
प्राचीन समय की बात है।भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सहायता करता था। वह प्रतिदिन मंदिर में भगव र्दशन करने जाता था परंतु यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी, वह नही गरीबों को दान देती न ही भगवान का पूजन करती थी और राजा को भी ऐसा करने से मना किया करती थी। एक दिन राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे तो रानी और दासी महल में अकेली थी। उसी समय बृहस्पतिदेव साधु वेष में राजा के महल में भिक्षा के लिए गए और भिक्षा मांगी तो रानी ने भिक्षा देने से इन्कार किया और कहा– हे साधुमहाराज मैं तो दान पुण्य से तंग आ गई हूं। इस कार्य के लिए मेरे पतिदेव ही बहुत है अब आप ऐसी कृपा करेंगी सारा धन नष्ट हो जाए तथा मैं आराम से रह सकूं। साधु ने कहा– देवी तुमतो बड़ी अजीब हो। धन, सन्तान सेकोई दुखी नहीं होता ईसको तो सभी चाहते हैं। पापी भी पुत्र और धन की इच्छा करता है यदि तुम्हारे पास अधिक धन है तो भूखे मनुष्यो को भोजन कराओ प्याऊ लगवाओ ब्राह्मणों को दान दो कुआ तालाब बावड़ी बाग–बगीचे आदि का निर्माण कराओ मंदिर पाठशाला धर्मशाला बनवा कर दान दो निर्धनों की कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ साथ ही यज्ञ आदि कर्म करो अपने धन को शुभ कार्यों में खर्च करो। ऐसे करने से तुम्हारा नाम परलोक में सार्थक होगा एवं होगा एवं स्वर्ग की प्राप्ति होगी ।परन्तु रानी पर उपदेश का कोई प्रभाव न पड़ा। वह बोली– महाराज मुझेऐसे धन की आवश्यकता नहीं जिसको मैं अन्य लोगों को दान दु़ जिसको रखने और संभालने में ही मेरा सारा समय नष्ट हो जाए अब आप ऐसी कृपा करें कि सारा धन नष्ट हो जाए तथा मैं आराम से रह सकूं। साधु ने उत्तर दिया यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो जैसा मैं तुम्हें बताता हूं तुम वैसा ही करना बृहस्पतिवार को घर को गोबर से लीपना अपने केसों को पीली मिट्टी से धोना केसों को धोते समय स्नान करना, राजा सेकहना वह हजामत बनवाए भोजन में मांस मदिरा खाना कपड़ा धोबी के यहां धुलने डालना, ऐसा करनेसे सात बृहस्पतिवार में आपका सारा धन नष्ट हो जाएगा। इतना कहकर वह साधु महाराज वहां से अन्तर्धान हो गये।
जैसे वह साधु कह कर गया था रानी ने वैसा ही किया। तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे कि उसका समस्त धन संपत्ति नष्ट हो गया और भोजन के लिए दोनों तरसने लगे। सांसारिक भोगों से दुखी रहने लगे। तब वह राजा रानी से कहने लगा कि तुम यहां पर रहो मैं दूसरे देश में जाउं क्योंकि यहां पर मुझे सभी मनुष्य जानते हैं इसलिए कोई कार्य नहीं कर सकता। देश चोरी परदेश भीख बराबर है ऐसा कहकर राजा परदेश चला गया वहां जंगल को जाता और लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेंचता इस तरह जीवन व्यतीत करने लगा।
इधर, राजा केबिना रानी और दासी दुखी रहने लगीं । किसी दिन भोजन मिलता और किसी दिन जल पीकर ही रह जाती। एक समय जब रानी और दासियों को सात दिन बिना भोजन के रहना पड़ा, तो रानीने अपनी दासी से कहा, हे दासी। पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है । वह बड़ी धनवान है । तू उसके पास जा आ और 5 सेर बेझरमांग कर ले आ ताकि कुछ समय के लिए थोड़ा–बहुत गुजर–बसर हो जाए ।
दासी रानी की बहन के पास गई । उस दिन वृहस्पतिवार था । रानी का बहन उस समय वृहस्पतिवार की कथासुन रही थी । दासी ने रानी की बहन को अपनी रानी का संदेश दिया, लेकिन रानीकी बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया । जब दासी को रानी की बहन से कोई उत्तर नहीं मिला तो वह बहुत दुखी हुई । उसे क्रोध भी आया । दासी ने वापस आकर रानी को सारी बात बता दी । सुनकर, रानी नेकहां की है दासी इसमें उसका कोई दोष नहीं है जब बुरे दिन आते हैं तब कोई सहारा नही अच्छे बुरे का पता विपत्ति में ही लगता है जो ईश्वर की इच्छा होगी वही होगा यह सब हमारे भाग्य का दोष है। यह सब कहकर रा रानी ने अपने भाग्य को कोसा । उधर, रानी कीबहन ने सोचा कि मेरी बहन की दासी आई थी, परन्तु मैंउससे नहीं बोली, इससे वहबहुत दुखी हुई होगी । कथा सुनकर और पूजन समाप्त कर वह अपनी बहन के घर गई और कहने लगी, हे बहन। मैं वृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी । तुम्हारी दासी गई परन्तु जब तक कथा होती है, तब तकन उठते है और न बोलते है, इसीलियेमैं नहीं बोली । कहो, दासी क्योंगई थी ।
रानी बोली, बहन ।हमारे घर अनाज नहीं था । ऐसा कहते–कहते रानी की आंखें भर आई । उसने दासियों समेत 7 दिन तकभूखा रहने की बात भी अपनी बहन को बता दी । इसीलिए मैंने दासी को तुम्हारे पास पांच सेर बेझर लेने के लिए भेजा था।रानी की बहन बोली, बहन देखो। वृहस्पतिदेव भगवान सबकी मनोकामना पूर्ण करते है । देखो, शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो । पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ परंतु बहन के आग्रह करने पर उसने दासी को अंदर भेजा।दासी घर के अन्दर गई तो वहाँ उसे एक घड़ा बेझर का भरा मिल गया । उसे बड़ी हैरानी हुई क्योंकि उसे एक एक बर्तन देख लिया था । उसने बाहर आकर रानी को बताया । दासी रानी से कहने लगी, हे रानी। जब हमको भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत ही तो करते है, इसलिये क्योंन इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ ली जाये, हम भीव्रत किया करेंगे । दासी के कहने पर रानी ने अपनी बहन से वृहस्पतिवार व्रत के बारे में पूछा । उसकी बहन ने बताया, वृहस्पतिवारके व्रत में चने की दाल गुड़ और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले के वृक्ष की जड़ में पूजन करें तथा दीपक जलायें और कथा सुने । उस दिन एक ही समय भोजनन करें भोजन पीले खाद्य पदार्थ का करें। इससे गुरु भगवान प्रसन्न होते है, अन्न, पुत्र,धनदेते हैं। मनोकामना पूर्ण करते है । व्रत और पूजन की विधि बताकर रानी की बहन अपने घर लौट आई ।
रानी और दासी दोनों ने निश्चय किया कि वृहस्पतिदेव भगवान का पूजन जरुर करेंगें । सात रोज बाद जब वृहस्पतिवार आया तो उन्होंने व्रत रखा । घुड़साल में जाकर चना और गुड़ बीन लाईं तथा उसकी दाल से केले की जड़ तथा विष्णु भगवान का पूजन किया । अब पीला भोजन कहाँ से आए । दोनों बड़ी दुखी हुई । परन्तु उन्होंने व्रत किया था इसलिये वृहस्पतिदेव भगवान प्रसन्न थे । एक साधारण व्यक्ति के रुप में वे दो थालों में सुन्दर पीला भोजन लेकर आए और दासी को देकर बोले, हे दासी। यह भोजन तुम्हारे लिये और तुम्हारी रानी के लिये है, इसे तुमदोनों ग्रहण करना । दासी भोजन पाकर बहुत प्रसन्न हुई । उसने रानी से कहा चलो रानी जी भोजन कर लो परंतु रानी को भोजन आने के बारे में कुछ भी नहीं पता था इसलिए उसने कहा कि जा तू ही भोजन कर क्योंकि तू व्यर्थ में हमारी हंसी उड़ाती है। तब दासी ने कहा एक व्यक्ति भोजन दे गया है तब रानी ने कहा वह व्यक्ति तेरे लिए ही भोजन दे गया है तू ही भोजन कर। तब दासी ने कहा वह व्यक्ति हम दोनों के लिए दो थालों में सुंदर पीला भोजन दे गया है इसलिए मैं और आप दोनों ही साथ साथ भोजन करेंगे ।यह सुनकर रानी बहुत प्रसन्न हुए तथा दोनों ने गुरु भगवान को नमस्कार कर भोजन प्रारंभ किया।
उसके बाद से वे प्रत्येक वृहस्पतिवार को गुरु भगवान का व्रत और पूजन करने लगी । वृहस्पति भगवान की कृपा से उनके पास धन हो गया । परन्तु रानी फिर पहले की तरह आलस्य करने लगी । तब दासी बोली, देखो रानी। तुम पहले भी इस प्रकार आलस्य करती थी, तुम्हेंधन के रखने में कष्ट होता था, इस कारणसभी धन नष्ट हो गया । अब गुरु भगवान की कृपा से धन मिला है तो फिर तुम्हें आलस्य होता है । बड़ी मुसीबतों के बाद हमने यह धन पाया है, इसलिये हमेंदान–पुण्य करना चाहिये । अब तुम भूखे मनुष्यो को भोजन कराओ प्याऊ लगवाओ ब्राह्मणों को दान दो कुआ तालाब बावड़ी बाग–बगीचे आदि का निर्माण कराओ मंदिर पाठशाला धर्मशाला बनवा कर दान दो निर्धनों की कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ साथ ही यज्ञ आदि कर्म करो अपने धन को शुभ कार्यों में खर्च करो। जिसब तुम्हारे कुल का यश बढ़े तथा स्वर्ग प्राप्त हो और पित्तर प्रसन्न हों । दासी की बात मानकर रानी शुभ कर्म करने लगी । उसका यश फैलने लगा ।
एक दिन रानी और दासी आपस में विचार करने लगीं कि न जाने राजा किस दशा में होंगें, उनकी कोईखोज खबर भी नहीं है । उन्होंने श्रद्घापूर्वक गुरु (वृहस्पति) भगवान से प्रार्थना की कि राजा जहाँ कहीं भी हो, शीघ्र वापसआ जाएं उसी रात्रि को बृहस्पति देव ने राजा को स्वपन में कहा कि हे राजा उठ तेरी रानी तुझको याद करती है अपने देश को लौट जा। राजा प्रात: काल उठाऔर जंगल से लकड़ी काटने के लिए जंगल की ओर चल पड़ा। जंगल से गुजरते हुए विचार करने लगा कि रानी की गलती से उसे कितने दुःख भोगने पड़े राजपाट छोड़कर जंगल में आकर में आकर रहना पड़ा जंगल से लकड़ी काटकर शहर में बेचकर गुजारा करना पड़ा। और अपनी दशा को याद करके व्याकुल होने लगा। उसी समय राजा के पास वृहस्पतिदेव साधु के वेष में आकर बोले, हे लकड़हारे । तुम इस सुनसान जंगल में किस चिंता में बैठे हो, मुझे बतलाओ। यह सुन राजा के नेत्रों में जल भर आया । साधु की वंदना कर राजा ने अपनी संपूर्ण कहानी सुना दी । महात्मा दयालु होते है । वे राजा से बोले, हे राजातुम्हारी पत्नी ने वृहस्पतिदेव के प्रति अपराध किया था, जिसके कारणतुम्हारी यह दशा हुई । अब तुम चिन्ता मत करो भगवान तुम्हें पहले से अधिक धन देंगें । देखो, तुम्हारीपत्नी ने वृहस्पतिवार का व्रत प्रारम्भ कर दिया है । अब तुम भी वृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल गुड़ और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले के वृक्ष की जड़ में पूजन करें तथा दीपक जलायें और कथा सुने । उस दिन एक ही समय भोजन करें भोजन पीले खाद्य पदार्थ का करें।। भगवान तुम्हारी सब कामनाओं को पूर्ण करेंगें । साधु की बात सुनकर राजा बोला, हे प्रभो। लकड़ी बेचकर तो इतना पैसा भई नहीं बचता, जिससे भोजनके उपरांत कुछ बचा सकूं । मैंने रात्रि में अपनी रानी को व्याकुल देखा है । मेरे पास कोई साधन नही, जिससे उसकासमाचार जान सकूं । फिर मैं कौन सी कहानी कहूं, यह भीमुझको मालूम नहीं है । साधु ने कहा, हे राजा। मन में वृहस्पति भगवान के पूजन–व्रत का निश्चय करो । वे स्वयं तुम्हारे लिये कोई राह बना देंगे । वृहस्पतिवार के दिन तुम रोजाना की तरह लकड़ियां लेकर शहर में जाना । तुम्हें रोज से दुगुना धन मिलेगा जिससे तुम भलीभांति भोजन कर लोगे तथा वृहस्पतिदेव की पूजा का सामान भी आ जायेगा । जो तुमने वृहस्पतिवार की कहानी के बारे में पूछा है, वह इसप्रकार है –
वृहस्पतिदेव की कहानी
प्राचीनकाल में एक बहुत ही निर्धन ब्राहमण था । उसके कोई संन्तान न थी । वह नित्य पूजा–पाठ करता, उसकी स्त्री न स्नान करती और न किसी देवता का पूजन करती । इस कारण ब्राहमण देवता बहुत दुखी रहते थे अपनी पत्नी को बहुत समझाते किंतु उसका कोई परिणाम न निकलता। भगवान की कृपा से ब्राहमण के यहां एक कन्या उत्पन्न हुई । कन्या बड़ी होने लगी । प्रातः स्नान करके वह भगवान विष्णु का जप करती । वृहस्पतिवार का व्रत भी करने लगी । पूजा पाठ समाप्त कर पाठशाला जाती तो अपनी मुट्ठी में जौ भरके ले जाती और पाठशाला के मार्ग में डालती जाती । लौटते समय वही जौ स्वर्ण के हो जाते तो उनको बीनकर घर ले आती । एक दिन वह बालिका सूप में उन सोने के जौ को फटककर साफ कर रही थी कि तभी उसकी मां ने देख लिया और कहा, कि हेबेटी । सोने के जौ को फटकने के लिये सोने का सूप भी तो होना चाहिये ।
दूसरे दिन गुरुवार था । कन्या ने व्रत रखा और वृहस्पतिदेव से सोने का सूप देने की प्रार्थना की और कहा कि हे प्रभु यदि सच्चे मन से मैंने आपकी पूजा की हो तो मुझे सोने का सूप दे दो। । वृहस्पतिदेव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली । रोजाना की तरह वह कन्या जौ फैलाती हुई पाठशाला चली गई । पाठशाला से लौटकर जब वह जौ बीन रही थी तो वृहस्पतिदेव की कृपा से उसे सोने का सूप मिला । उसे वह घर ले आई और उससे जौ साफ करने लगी । परन्तु उसकी मां का वही ढंग रहा ।
एक दिन की बात है । कन्य सोने के सूप में जब जौ साफ कर रही थी, उस समयउस नगर का राजकुमार वहां से निकला । कन्या के रुप और कार्य को देखकर वह उस पर मोहित हो गया । राजमहल आकर वह भोजन तथा जल त्यागकर उदास होकर लेट गया ।
राजा को जब राजकुमार द्घारा अन्न–जल त्यागने का समाचार ज्ञात हुआ तो अपने मंत्रियों के साथ वह अपने पुत्र के पास गया और पूछा हे बेटा ! तुम्हेंकिस बात का कष्ट है किसी ने तुम्हारा अपमान किया है अथवा कोई और कारण है मुझे बताओ मैं वही कार्य करूंगा जिससे तुम्हें प्रसन्नता हो। अपनी पिता की बातें सुनकर राजकुमार बोला हे पिताजी ! मुझे किसीबात का दुख नहीं है किसी ने मेरा अपमान नहीं किया है परंतु मैं उस लड़की के साथ विवाह करना चाहता हूं जो सोने के सुख में जो को साफ कर रही थी । राजकुमार ने राजा को उस लड़की के घर का पता भी बता दिया । मंत्री उस लड़की के घर गया । मंत्री ने ब्राहमण के समक्ष राजा की ओर से निवेदन किया । कुछ ही दिन बाद ब्राहमण की कन्या का विवाह राजकुमार के साथ सम्पन्न हो गाया ।
कन्याके घर से जाते ही ब्राहमण के घर में पहले की भांति गरीबी का निवास हो गया । एक दिन दुखी होकर ब्राहमण अपनी पुत्री से मिलने गये । बेटी ने पिता की अवस्था को देखा और अपनी माँ का हाल पूछा ब्राहमण ने सभी हाल कह सुनाया । कन्या ने बहुत–सा धन देकर अपने पिता को विदा कर दिया । लेकिन कुछ दिन बाद फिर वही हाल हो गया । ब्राहमण फिर अपनी कन्या के यहां गया और सभी हाल कहातो पुत्री बोली, हे पिताजी । आप माताजी को यहाँ लिवा लाओ । मैं उन्हें वह विधि बता दूंगी, जिससे गरीबीदूर हो जाए । ब्राहमण देवता अपनी स्त्री को साथ लेकर अपनी पुत्री के पास राजमहल पहुंचे तो पुत्री अपनी मां को समझाने लगी, हे मां, तुम प्रातःकाल स्नानादि करके विष्णु भगवन का पूजन करो और बृहस्पतिवार का व्रत करो तो सब दरिद्रता दूर हो जाएगी । परन्तु उसकी मां ने उसकी एक भी बात नहीं मानी । वह प्रातःकाल उठकर अपनी पुत्री की बच्चों का झूठन को खा लेती थी । एक दिन उसकी पुत्री को बहुत गुस्सा आया, उसने अपनीमाँ को एक कोठरी में बंद कर दिया । प्रातः उसे स्नानादि कराके पूजा–पाठ करवाया तो उसकी माँ की बुद्घि ठीक हो गई। इसके बाद वह नियम से पूजा पाठ करने लगी और प्रत्येक वृहस्पतिवार को व्रत करने लगी । इस व्रत के प्रभाव से मृत्यु के बाद वह स्वर्ग को गई । वह ब्राहमण भी सुखपूर्वक इस लोक का सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त हुआ । इस तरह कहानी कहकर साधु बने देवता वहाँ से लोप हो गये । धीरे–धीरे समय व्यतीत होने पर फिर वृहस्पतिवार का दिन आया । राजा जंगल से लकड़ी काटकर शहर में बेचने गया । उसे उस दिन और दिनों से अधिक धन मिला । राजा ने चना, गुड़ आदिलाकर वृहस्पतिवार का व्रत किया । उस दिन से उसके सभी क्लेश दूर हुए । परन्तु जब अगले गुरुवार का दिन आया तो वह वृहस्पतिवार का व्रत करना भूल गया । इस कारण वृहस्पति भगवान नाराज हो गए । उस दिन उस नगर के राजा ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया था तथा अपने समस्त राज्य में घोषणा करवा दी कि सभी मेरे यहां भोजन करने आवें । किसी के घर चूल्हा न जले । इस आज्ञा को जो न मानेगा उसको फांसी दे दी जाएगी । राजा की आज्ञानुसार राज्य के सभी वासी राजा के भोज में सम्मिलित हुए लेकिन लकड़हारा कुछ देर से पहुंचा, इसलिये राजाउसको अपने साथ महल में ले गए । जब राजा लकड़हारे को भोजन करा रहे थे तो रानी की दृष्टि उस खूंटी पर पड़ी, जिस परउसका हारलटका हुआ था । उसे हार खूंटी पर लटका दिखाई नहीं दिया । रानी को निश्चय हो गया कि मेरा हार इस लकड़हारे ने चुरा लिया है । उसी समय सैनिक बुलवाकर उसको जेल में डलवा दिया । लकड़हारा जेल में विचार करने लगा कि न जाने कौन से पूर्वजन्म के कर्म से मुझे यह दुख प्राप्त हुआ है और जंगल में मिले साधु को याद करने लगा । तत्काल वृहस्पतिदेव साधु के रुप में प्रकट हो गए और कहने लगे, अरे मूर्ख। तूने वृहस्पति देवता की कथा नहीं की, उसी कारणतुझे यह दुख प्राप्त हुआ हैं । अब चिन्ता मत कर । वृहस्पतिवार के दिन जेलखाने के दरवाजे पर तुझे चार पैसे पड़े मिलेंगे, उनसे तूवृहस्पतिवार की पूजा करना तो तेर सभी कष्ट दूर हो जायेंगे । अगले वृहस्पतिवार उसे जेल के द्घार पर चार पैसे मिले । राजा ने पूजा का सामान मंगवाकर कथा कही और प्रसाद बाँटा । उसी रात्रि में वृहस्पतिदेव ने उस नगर के राजा को स्वप्न में कहा, हे राजा। तूने जिसे जेल में बंद किया है, उसे कलछोड़ देना । वह निर्दोष है । वाले राजा है ।रानी का हार उसी खूंटी पर लटका हुआ है। अगर तू ऐसा नहीं करेगा तो मैं तेरे राज्य को नष्ट कर दूंगा।राजा प्रातःकाल उठा और खूंटी पर हार टंगा देखकर लकड़हारे को बुलाकर क्षमा मांगी तथा राजा के योग्य सुन्दर वस्त्र–आभूषण भेंट कर उसे विदा किया । गुरुदेव की आज्ञानुसार राजा अपने नगर को चल दिया । राजा जब नगर के निकट पहुँचा तो उसे बड़ा ही आश्चर्य हुआ । नगर में पहले से अधिक बाग, तालाब औरकुएं तथा बहुत–सी धर्मशालाएं, मंदिर आदिबने हुए थे । राजा ने पूछा कि यह किसका बाग और धर्मशाला और मंदिर है ? तब नगरके सब लोग कहने लगे कि यह सब रानी और दासी द्घारा बनवाये गए है । राजा को आश्चर्य हुआ और गुस्सा भी आया कि उसकी अनुपस्थिति में रानी के पास धन कहां से आया होगा । जब रानी ने यह खबर सुनी कि राजा आ रहे है तो उसने अपनी दासी से कहा, हे दासी। देख, राजा हमकोकितनी बुरी हालत में छोड़ गये थे । वह हमारी ऐसी हालत देखकर लौट न जाएं, इसलिये तूदरवाजे पर खड़ी हो जा । रानी की आज्ञानुसार दासी दरवाजे पर खड़ी हो गई और जब राजा आए तो उन्हें अपने साथ महल में लिवा लाई । तब राजा ने क्रोध करके अपनी तलवार निकाली और पूछने लगा, बताओ, यह धन तुम्हें कैसे प्राप्त हुआ है । तब रानी ने सारी कथा सुनाई कि यह सब धन हमें बृहस्पति देव के व्रत के प्रभाव से प्राप्त हुआ है। राजा ने निश्चय किया कि मैं रोजाना दिन में तीन बार कहानी कहा करुंगा और रोज व्रत किया करुंगा । अब हर समय राजा के दुपट्टे में चने की दाल बंधी रहती तथा दिन में तीन बार कथा कहता । एक रोज राजा ने विचार किया कि चलो अपनी बहन के यहां हो आऊं । इस तरह का निश्चय कर राजा घोड़े पर सवार हो अपनी बहन के यहां चल दिया । मार्ग में उसने देखा कि कुछ आदमी एक मुर्दे को लिये जा रहे है । उन्हें रोककर राजा कहने लगा, अरे भाइयो। मेरी वृहस्पतिवार की कथा सुन लो । वे बोले, लो, हमारातो आदमी मर गया है, इसको अपनीकथा की पड़ी है । परन्तु कुछ आदमी बोले, अच्छा कहो, हम तुम्हारी कथा भी सुनेंगें । राजा ने दाल निकाली और कथा कहनी शुरु कर दी । जब कथा आधी हुई तो मुर्दा हिलने लगा और जब कथा समाप्त हुई तो राम–राम करके वह मुर्दा खड़ा हो गया। राजा आगे बढ़ा । उसे चलते–चलते शाम हो गई । आगे मार्ग में उसे एक किसान खेत में हल चलाता मिला । राजा ने उससे बृहस्पतिवार का व्रत सुनने को कहा कि जब तक मैं तेरी कथा सुनूंगा तब तक चार हरैया जोत लूंगा जा अपनी कथा कथा किसी और को सुनाना। राजा आगे चल पड़ा । राजा के हटते ही बैल पछाड़ खाकर गिर गए तथा किसान के पेट में बहुत जो रसे द्रर्द होने लगा । उसी समय किसान की मां रोटी लेकर आई । उसने जब देखा तो अपने पुत्र से सब हाल पूछा । बेटे ने सभी हाल बता दिया । बुढ़िया दौड़–दौड़ी उस घुड़सवार के पास पहुँची और उससे बोली, मैं तेरीकथा सुनूंगी, तू अपनीकथा मेरे खेत पर ही चलकर कहना । राजा ने लौटकर बुढ़िया के खेत पर जाकर कथा कही, जिसके सुनतेही बैल खड़े हो गये तथा किसान के पेट का दर्द भी बन्द हो गया । राजा अपनी बहन के घर पहुंच गया । बहन ने भाई की खूब मेहमानी की । दूसरे रोज प्रातःकाल राजा जागा तो वह देखने लगा कि सब लोग भोजन कर रहे है । राजा ने अपनी बहन से जब पूछा, ऐसा कोईमनुष्य है, जिसने भोजननहीं किया हो । जो मेरी वृहस्पतिवार की कथा सुन ले । बहन बोली, हे भैयायह देश ऐसा ही है यहाँ लोग पहले भोजन करते है, बाद मेंकोई अन्य कामकरते है । अगर कोई पड़ोस में हो तो देख आती हूं ऐसा कहकर वह देखने चली गई परंतु उसे ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला जिसने भोजन ना किया हो। फिर वह एक कुम्हार के घर गई, जिसका लड़काबीमार था । उसे मालूम हुआ कि उसके यहां तीन दिन से किसी ने भोजन नहीं किया है । रानी ने अपने भाई की कथा सुनने के लिए कुम्हार से कहा तो वह तैयार हो गया। राजा ने जाकर वृहस्पतिवार की कथा कही । जिसको सुनकर उसका लड़का ठीक हो गया । अब तो राजा को प्रशंसा होने लगी । एक दिन राजा ने अपनी बहन से कहा, हे बहन। मैं अब अपने घर जाउंगा, तुम भीतैयार हो जाओ । राजा की बहन ने अपनी सास से अपने भाई के साथ जाने की आज्ञा मांगी । सास बोली हां चली जा मगर अपने लड़कों को मत ले जाना, क्योंकितेरे भाई के कोई संतान नहीं होती है । बहन ने अपने भाई से कहा, हे भइया। मैं तो चलूंगी मगर कोई बालक नहीं जायेगा । राजा बोला जब कोई बालक नहीं जाएगा तब तुम ही जाकर क्या करोगी। अपनी बहन को भी छोड़कर दुखी मन से राजा अपने नगर को लौट आया । राजा ने अपनी रानी से सारी कथा बताई कि हम निसंतान है इसलिए कोई हमारे घर आना पसंद नहीं करता है और बिना भोजन किये वह शय्या पर लेट गया । रानी बोली,वृहस्पतिदेव ने हमें सब कुछ दिया है, वे हमेंसंतान भी अवश्य देंगें । उसी रात वृहस्पतिदेव ने राजा को स्वप्न में कहा, हे राजा। उठ, सभी सोचत्याग दे । तेरी रानी गर्भवती है । राजा को यह जानकर बड़ी खुशी हुई । नवें महीन रानी के गर्भ से एक सुंदर पुत्र पैदा हुआ । तब राजा बोला, हे रानी। स्त्री बिना भोजन के रह सकती है, परन्तु बिनाकहे नहीं रह सकती । जब मेरी बहन आये तो तुम उससे कुछ मत कहना । रानी ने हां कर दी । जब राजा की बहन ने यह शुभ समाचार सुना तो वह बहुत खुश हुई तथा बधाई लेकर अपने भाई के यहां आई । रानी ने तब उससे कहा घोड़ा चढ़कर तो नहीं आई गधा चढ़ी आई तो राजा की बहन बोली, भाई। मैं इस प्रकार न कहती तो तुम्हारे घर औलाद कैसे होती । वृहस्पतिदेव सभी कामनाएं पूर्ण करते है । जो सदभावनापूर्वक वृहस्पतिवार का व्रत करता है एवं कथा पढ़ता है अथवा सुनता है और दूसरों को सुनाता है, वृहस्पतिदेव उसकीसभी मनोकामनाएं पूर्ण करते है, उनकी सदैवरक्षा करते है । जो संसार में सदभावना से गुरुदेव का पूजन एवं व्रत सच्चे हृदय से करते है, उनकी सभीमनकामनाएं वैसे ही पूर्ण होती है, जैसी सच्चीभावना से रानी और राजा ने वृहस्पतिदेव की कथा का गुणगान किया, तो उनकीसभी इच्छाएं वृहस्पतिदेव जी ने पूर्ण की ।इसलिये सबको कथा सुनने के बाद प्रसाद लेकर जाना चाहिये । हृदय से उनका मनन करते हुये जयकारा बोलना चाहिये ।
॥ इति श्रीवृहस्पतिवार व्रत कथा ॥बृहस्पतिदेव आरती
जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा। छिन छिन भोग लगाऊ फल मेवा।। जय बृहस्पति देवा।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी। जगत पिता जगदीश्वर तुम सबके स्वामी।। जय बृहस्पति देवा।
चरणामृत निज निर्मल, सब पातकहर्ता। सकल मनोरथ दायक, किरपा करोभर्ता।। जय बृहस्पति देवा।
तन, मन, धनअर्पणकर जो शरण पड़े। प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वारखड़े।। जय बृहस्पति देवा।
दीन दयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी। पाप दोष सभ हर्ता, भाव बंधनहारी।। जय बृहस्पति देवा।
सकल मनोरथ दायक, सब संशयतारो। विषय विकार मिटाओ संतन सुखकारी।। जय बृहस्पति देवा।
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहितगावे। जेष्टानंद बन्द सो सो निश्चय पावे ।। जय बृहस्पति देवा।
बृहस्पतिवार व्रत के पूजन से स्त्री–पुरुष को वृहस्पतिदेव की अनुकम्पा से धन–संपत्ति का अपार लाभ होता है।परिवार में सुख तथा शांति रहती है।स्त्रियों के लिए बृहस्पतिवार का व्रत बहुत शुभ फल देने वाला है। बृहस्पतिवारकी पूजा के पश्चात कथा सुनने का विशेष महत्व हैबृहस्पतिवार के व्रत करने और कथा सुनने से विद्या का बहुत लाभ होता है।बृहस्पतिवार का नियमित व्रत रखने वाली स्त्री की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
देव गुरु बृहस्पति के कारण आती हैं नौकरी और शादी में रुकावटों, इन उपाय से होगा लाभ
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दान
बृहस्पति के उपाय हेतु जिन वस्तुओं का दान करना चाहिए उनमें चीनी, केला, पीला वस्त्र, केशर, नमक, मिठाईयां, हल्दी, पीला फूल और भोजन उत्तम कहा गया है. इस ग्रह की शांति के लए बृहस्पति से सम्बन्धित रत्न का दान करना भी श्रेष्ठ होता है. दान करते समय आपको ध्यान रखना चाहिए कि दिन बृहस्पतिवार हो और सुबह का समय हो. दान किसी ब्राह्मण, गुरू अथवा पुरोहित को देना विशेष फलदायक होता है. बृहस्पतिवार के दिन व्रत रखना चाहिए. कमज़ोर बृहस्पति वाले व्यक्तियों को केला और पीले रंग की मिठाईयां गरीबों, पंक्षियों विशेषकर कौओं को देना चाहिए. ब्राह्मणों एवं गरीबों को दही चावल खिलाना चाहिए. रविवार और बृहस्पतिवार को छोड़कर अन्य सभी दिन पीपल के जड़ को जल से सिंचना चाहिए. गुरू, पुरोहित और शिक्षकों में बृहस्पति का निवास होता है अत: इनकी सेवा से भी बृहस्पति के दुष्प्रभाव में कमी आती है. केला का सेवन और सोने वाले कमड़े में केला रखने से बृहस्पति से पीड़ित व्यक्तियों की कठिनाई बढ़ जाती है अत: इनसे बचना चाहिए।गुरुवार के दिन गुरु बृहस्पति की मूर्ति या बृहस्पति जी के फोटो को पीले रंग के कपड़े पर स्थापित करें और उसकी पूजा करें। अपनी पूजा की थाल में पीले चावल, केसरिया चंदन, पीले फूल और प्रसाद में चाहें तो चने की दाल या गुड का प्रयोग करें।दूसरा उपाय है कि गुरुवार के दिन बृहस्पति देव को प्रसन्न करने के लिए पीले रंग की वस्तु का दान करें। किसी गरीब व्यक्ति को या मन्दिर में जाकर दान करें।तीसरा उपाय है कि सूर्योदय होने से पहले उठें और भगवान विष्णु जी के सामने घी का दीया जलाएं और बेसन के लड्डू का भोग लगाएं।गुरुवार के दिन नहाते समय एक चुटकी हल्दी को पानी में डालकर नहाएं और इसके बाद ॐ नम: भगवते वासुदेवाय का जाप करते हुए केसर का तिलक लगाएं।अनिद्रा से परेशान व्यक्ति 11 बृहस्पतिवार तक केवांच की जड़ का लेप माथे पर लगाएं।स्त्रियां गुरुवार को हल्दी वाला उबटन शरीर में लगाएं तो उनके दांपत्य जीवन में प्यार बढ़ता है।बृहस्पति देव को प्रसन्न करने के लिए गुरुवार के दिन गाय का घी, शहद, हल्दी, पीले कपड़े, किताबें, गरीब कन्याओं को भोजन का दान अौर गुरुओं की सेवा करें।गुरुवार के दिन केले का दान शुभ होता है।गुरु के अशुभ प्रभाव को कम करने अौर सभी कष्टों से छुटकारा पाने के लिए गुरुवार के दिन चमेली के फूल, गूलर, दमयंती, मुलहठी और पानी में शहद डालकर स्नान करें।विवाह में आ रही रुकावटों को दूर करने के लिए गुरुवार का व्रत अौर देवगुरु बृहस्पति के सामने गाय के घी का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।गुरुवार के दिन बृहस्पति देव को पीले पुष्पों का अर्पण करके पीले चावल, पीला चंदन, पीली मिठाई, गुड़, मक्के का आटा, चना दाल आदि का भोग लगाते हैं। माथे पर हल्दी का तिलक लगाने के पश्चात हल्दी गांठ की माला से इस मंत्र के जाप करना शुभ होता है।
“ॐ ऐं क्लीं बृहस्पतये नमः।
गुरुवार के दिन व्रत रखें और पीले रंग के कपड़े पहनें। यह भी कोशिश करें कि बिना नमक का भोजन हो और पीले रंग का पकवान शामिल हो।अगर आपकी शादी में रुकावट आ रही है या किसी ना किसी वजह से आपकी शादी में समस्याएं आ रही हैं तो गुरुवार को गाय को दो आटे के पेडे पर थोड़ी हल्दी लगाकर खिलाएं।गुरुवार के दिन केले के पेड़ के नीचे शाम के समय घी का दीपक जलाएं।ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर निःशुल्क सेवा करनी चाहिए।किसी भी मन्दिर या इबादत घर के सम्मुख से निकलने पर अपना सिर श्रद्धा से झुकाना चाहिए।ऐसे व्यक्ति को परस्त्री / परपुरुष से संबंध नहीं रखने चाहिए।गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए।गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु गुरुवार का दिन, गुरु के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व–भाद्रपद) तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते हैं।ऐसे व्यक्ति को अपने माता.पिता, गुरुजन एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए तथा महत्त्वपूर्ण समयों पर इनका चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लेना चाहिए।
प्रिय पाठको जिन लोगों की कुण्डली में देवगुरु बृहस्पति कमजोर हैं, या ६. ८. १२. भाव में बैठे हैं या अकारक गृह हैं अथवा अस्त या मृत अवस्था में हैं वो लोग देवगुरु बृहस्पति की पूजा करें, जप करें लाभ होगा।