

कुण्डली से जाने: शरीर कैसा होगा
जयसियाराम मित्रो, जैसा कि ऊपर शीर्षक से पता चल रहा होगा कि आज का टॉपिक है “कुण्डली से जाने शरीर कैसा होगा“, आज कल इंटरनेट का उपयोग हर तरफ देखने को मिल रहा है। ऐसी अवस्था मे अगर कोई दूर बैठा जातक अपने शरीर के बारे में कोई प्रश्न करता है, तब अक्सर देखा जाता है कि जो शिष्य ज्योतिष सीख रहे हैं, वो असमंजस की स्थिति में आ जाते हैं, और कभी कभी उनका फलकथन मिथ्या जान पड़ता है, जिससे उनकी छवि धूमिल हो जाती है। किसी दूर बैठे व्यक्ति के शरीर से संबंधित प्रश्न का उत्तर देने से पहले इस ब्लॉग पोस्ट कुण्डली से जाने शरीर कैसा होगा को पढ़ने से सब साफ-साफ दिखने लगेगा।
कुण्डली के भाव और उनका अंगों पर प्रभाव
आपको शरीर से संबंधित प्रश्नों का उत्तर देने से पहले, काल पुरुष की कुण्डली में किस अंग का अधिपत्य किस भाव पर है ये जानना आवश्यक है। कुण्डली का प्रत्येक भाव शरीर के किसी न किसी अंग पर अपना प्रभाव रखता है, जब आप ये समझ जाएंगे तब इस प्रश्न का उत्तर कुण्डली से जाने शरीर कैसा होगा ये समझ जायेंगे ,तो आइए सबसे पहले कुण्डली के किस भाव से शरीर के किस अंग का विचार किया जाए ये जानते हैं।
https://astrologyadiscovery.com/कुण्डली-के-भाव-उनसे-जानने: कुण्डली से जाने: शरीर कैसा होगा
प्रथम भाव – मस्तक, सिर, चेहरा
द्वितीय भाव – नाक, कान, गर्दन, आँखें
तृतीय भाव – हाथ, कंधे
चतुर्थ भाव – छाती, स्तन, पेट
पंचम भाव – पीठ, पसलियाँ, नाभि
षष्ठम भाव – आँतें, गर्भाशय
सप्तम भाव – मूत्राशय, कमर
अष्टम भाव – गुदा द्वार, गुप्तांग
नवम भाव – जाँघें
दशम भाव – घुटने
ग्यारहवाँ भाव – टखने
द्वादश भाव – पंजे।
यहाँ आपको मैंने ये बतला दिया है कि किस भाव से किस अंग का विचार किया जाता है तो आप सुगमता से भाव के अनुसार ये बतला सकते हैं कि प्रश्नकर्ता जिस अंग के बारे में जानना चाहते हैं उस अंग का विचार किस भाव से किया जायेगा।
अभी तक हमने ये जाना कि किस भाव से शरीर के किस अंग का विचार किया जाता है। केवल इतनी ही जानकारी फल कथन के लिए पूरी नहीं है, इसके साथ ही हमें यह भी जानने की आवश्यकता है, कि कुण्डली के किस भाव का कारक कौनसा ग्रह है? आइये आगे इसके बारे में जानते हैं-
प्रथम भाव के कारक –
इस भाव का कारक सूर्य है। अगर कुंडली के अंदर सूर्य बलवान होंगे और शुभ ग्रहों की दृष्टि इन सूर्य देव पर होगी तो प्रश्नकर्ता के मस्तक, सिर, चेहरा सुन्दर और चमकीला होगा .
लेकिन ये फल कथन कहने से पहले एक मर्मज्ञ ज्योतिषी को यह भी देखना होगा कि मस्तक, सिर, चेहरा आदि का ज्ञान पहले भाव यानि लग्न से किया जाता है, और लग्न भाव में कौनसी राशि विराजमान है, और इस राशि का स्वामी गृह बलवान तो है ? कहीं ये पीड़ित हुआ तब भी मस्तक, सिर, चेहरा आदि में आपको परेशानियां प्राप्त होंगी।
यहाँ कहने का मतलब है भाव का स्वामी और भाव का कारक अगर पूर्ण रूप से बलि होंगे तो भाव से सम्बंधित फलों का पूर्ण लाभ आपको प्राप्त होने वाला है। आगे के सभी भावों पर यही सूत्र प्रभावी रखना है ये आपके लिए परामर्श है अगर आप ऐसा करते हैं तो आपका फल कथन बिलकुल सटीक बैठेगा।
दूसरे भाव के कारक –
इस भाव का कारक गुरु है। नाक, कान, गर्दन, आँखें इन सभी के बारे में जानने से पहले दूसरे भाव के स्वामी और दूसरे भाव के कारक के बारे में जानना बहुत आवश्यक होगा।
अगर भाव का कारक और भाव का स्वामी बलवान हैं तो इस भाव से विचार करने बाले अंग स्वस्थ्य होंगे, और इस भाव के कारक और भाव का स्वामी बलहीन हों तो इस भाव से विचार करने योग्य अंगों के स्वास्थ्य में विकार देखने को मिलेंगे।
तीसरे भाव के कारक –
इस भाव से हाथ, कंधे का विचार किया जाता है। ऊपर हमने लिखा है कि भाव के स्वामी और भाव के कारक की स्तिथि देखनी आवश्यक है ये दोनों बली होंगे तो फल उत्तम प्राप्त होंगे। और भाव का स्वामी और भाव के कारक अगर कमजोर हों तो कमजोर।
प्रिय पाठको मैंने तीन भावों का उदाहरण दिया है इसी भांति आप समस्त भावों से विचार कर सकते हैं और यह बिलकुल सटीक होगा नीचे मैं अन्य बचे भावों के कारक के बारे बताऊंगा आगे आप स्वयं देखें की इस भाव से किसका विचार करना है और क्या इस भाव का कारक और स्वामी मजबूत है या कमजोर इसी अनुसार फल कथन होगा।