
कर्क राशि का विवरण
प्रिय पाठकों जय सियाराम संजीव चतुर्वेदी का आप सब को नमस्कार !
जो मेरे नियमित पाठक हैं, मुझे पता है कि वह मेरे द्वारा लिखे गए लेखों का बड़ी ही बेसब्री के साथ इंतजार करते रहते हैं आपका स्नेह इसी प्रकार मिलता रहे यही कामना है।
मित्रों आज से पहले हमने मिथुन राशि के बारे में बहुत कुछ लिखा था, जो आपने अवश्य ही पढ़ा होगा अगर नहीं पढ़ा तो ये नीचे वाला लिंक आपके बहुत कार्य का है आप इस लिंक के माध्यम से उस लेख पर पहुँच सकते हैं।
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मेरे लेखों के माध्यम से और आपकी ज्योतिषीय विषय में रूचि को अगर देखा जाए तो अब आपको इन लेखों के माध्यम से ज्योतिष के बारे में थोड़ा-थोड़ा अवश्य समझ आने लगा होगा आज हम उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए भचक्र की चौथी राशि जिसका क्रमांक ज्योतिष शास्त्र में चार है जन्म कुंडली के अंदर जहां पर भी 4 अंक लिखा दिखाई दे आपको स्वतः ही समझ जाना चाहिए कि यह भचक्र की चौथी राशि कर्क के लिए उपयोग हो रहा है।
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मित्रों भचक्र के ऊपर कर्क राशि का फैलाव 91 अंश से लेकर 120 अंश तक है इन अंशों में जो नक्षत्र आते हैं उनका क्रमवार नाम मैं आपको बता रहा हूं, पुनर्वसु नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र एवं आश्लेषा नक्षत्र, इन तीनों नक्षत्रों के गठन से कर्क राशि का जन्म होता है।
अब यहां पर जो जानने योग्य बात है वह है कि पुनर्वसु नक्षत्र के पहले चरण पुष्य नक्षत्र के पहले, दूसरे, तीसरे एवं चौथे चरण और आश्लेषा नक्षत्र के पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे चरण को मिलाकर कर्क राशि बनती है, कर्क राशि का नाम चर स्वाभाव वाली राशियों में गिना जाता है, कर्क राशि के स्वामी चंद्रदेव होते हैं।
मित्रों पुनर्वसु नक्षत्र के चौथे चरण का जो नाम अक्षर है वह है “हि” जब किसी जातक का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र के चतुर्थ चरण में होता है तो ऐसी स्थिति में चंद्रमा कर्क राशि में होते हैं जिससे जन्मे जातक की राशि कर्क होती है, इस समय जो जातक जन्म लेते हैं उनकी योनि मार्जार, गण देव, वर्ण ब्राह्मण, युज्जा मध्य, जल तत्व, नाड़ी आद्य, द्विपद राशि, पाया चांदी होता है और जन्म के समय गुरु की महादशा प्रगति पर होती है।
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कर्क राशि के अंदर दूसरा जो नक्षत्र होता है वह होता है पुष्य इस नक्षत्र के प्रथम चरण में अगर कोई जातक पैदा होता है तो उसका नाम अक्षर “हू” होता है, पुष्य नक्षत्र के दूसरे चरण में जब किसी का जन्म होता है तब इसका नाम अक्षर “हे” होता है, इसी क्रम में पुष्य नक्षत्र के तीसरे चरण में जब किसी जातक का जन्म होता है तो नाम अच्छा “हो” होता है और पुष्य नक्षत्र के चतुर्थ चरण में जन्म होने पर बालक का नाम “डा” अक्षर पर रखा जाता है, पुष्य नक्षत्र में जन्मे हुए जो जातक होते हैं उनकी योनि मेढ़ा होती है गण देव, वर्ण विप्र, युग्ज मध्य, जलचर, नाड़ी मध्य, वस्य द्विपाद, पाया चांदी वर्ण पहले तीन चरणों में अगर जन्म हो तो कीट, आखिरी चरण में जन्म हो तो श्वान होता है, जब भी इस नक्षत्र में कोई बालक का जन्म लेता है तब उसके ऊपर “शनि” की महादशा प्रगति पर होती है।
इसके आगे जो नक्षत्र आता है उसका नाम आश्लेषा है इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक अगर प्रथम चरण में जन्म लेते हैं तो नाम अक्षर “डी” होता है अश्लेषा के द्वितीय चरण में जन्म लेने पर नाम अक्षर “डू” प्रारंभ होता है आश्लेषा नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्म होने पर नाम अक्षर “डे” होता है और इसी अश्लेषा नक्षत्र के चौथे चरण में अगर कोई बालक जन्म लेता है तो उसका नाम अक्षर “डो” होता है मित्रों जब आश्लेषा नक्षत्र में कोई बालक जन्म लेता है तो उसकी योनि मार्जार होती है, गण राक्षस होता है, वर्ण विप्र होता है, युग्जा मध्य होती है, जलचर राशी, नाड़ी आद्य, द्विपद राशि, पाया चांदी, वर्ग श्वान होता है और जब जातक आश्लेषा नक्षत्र में जन्म लेता है तो उसके ऊपर बुध की महादशा प्रगति पर होती है।
इस राशि का चिन्ह केकड़ा है, राशि के स्वामी चंद्र हैं, यह जल तत्व की, पृष्ठोदयी, चर राशि, स्वभाव से सौम्य, रात्रि बली, कांति स्निग्ध, उत्तर दिशा में बलि, स्त्री लिंग, सतोगुणी, सौम्य स्वभाव एवं कफ प्रकृति की राशि है, इसका प्रभाव छाती एवं सीने पर होता है, जीवन रत्न मोती, अनुकूल रंग सफेद अथवा क्रीम, शुभ दिवस सोमवार, अनुकूल देवता शिव जी, अगर आप चन्द्रमा से पीड़ित है तब आपको व्रत और उपवास सोमवार का अनुकूल रहेगा, अनुकूल तारीखें 2/11/20/29 हैं, इसकी मित्र राशियां वृश्चिक, मीन और तुला होती है।
- चन्द्रमा से पीड़ा मुक्ति १०० % : चंद्र गृह और उसकी उपासना
ग्रह |
केतु |
शुक्र |
सूर्य |
चंद्र |
मंगल |
राहु |
गुरु |
शनि |
बुध |
नक्षत्र |
अश्विनी |
भरणी |
कृत्तिका |
रोहिणी |
मृगशिरा |
आर्द्रा |
पुनर्वसु |
पुष्य |
आश्लेषा |
नक्षत्र के नामाक्षर |
चू, चे, चो ,ला |
ली, लू, ले, लो |
अ, इ, ऊ. ऐ |
ओ, व, वि, वू |
वे, वो, का,की |
कू, घ,ड, छ |
के, को, ह, हि |
हु, हे, हो, डा |
डी, डु, डे, ड़ो |
|
|||||||||
नक्षत्र |
मघा |
पूर्वाफाल्गुनी |
उत्तराफाल्गुनी |
हस्त |
चित्रा |
स्वाती |
विशाखा |
अनुराधा |
ज्येष्ठा |
नक्षत्र के नामाक्षर |
म़ा, मी, मू, मे |
मो, टा, टी, टू |
टे, ढो, पा, पी |
पू, ष, ण, ठ |
पे, पो, रा, री |
रू, रे, रो, ता |
ती, तू, ते, तो |
ना, नी, नू, ने |
नो, या, यी, यू |
|
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नक्षत्र |
मूल |
पूर्वाषाढ़ा |
उत्तराषाढ़ा |
श्रवण |
धनिष्ठा |
शतभिषा |
पूर्वाभाद्रपद |
उत्तराभाद्रपद |
रेवती |
नक्षत्र के नामाक्षर |
ये, यो, भा, भी |
भू, ध, फ, ढ |
भे, भो, जा, जी |
खी, खू, खे, खो |
ग, गी, गू, गे |
गो, सा, सी, सू |
से, सो, दा, दी |
दू,थ, झ, |
दे, दो, चा, ची |
इस सारणी में केतु गृह के नीचे अश्विनी,मघा,मूल तीन नक्षत्र लिखे हैं इन तीनों नक्षत्र का स्वामी केतु है इसी प्रकार अन्य को भी समझें।
मित्रों आज हमने आपको कर्क राशि के बारे में जानकारी दे दी है और आगे हम क्रमशः अन्य राशियों के बारे में भी वार्तालाप करते रहेंगे।
वह मित्र जो किसी समस्या से ग्रसित हैं और ज्योतिषीय समाधान चाहते हैं, वह हमें कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं।
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इसी के साथ मैं संजीव चतुर्वेदी आप से अनुमति चाहूंगा, आपका आने वाला दिन शुभ हो नमस्कार जय सियाराम।
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