
इस राशि वालों को शनिदेव देते हैं छप्पर फाड़ के
मेरे प्रिय पाठकों को “ज्योतिष संजीव चतुर्वेदी” का नमस्कार जय सियाराम,
मेरे प्रिय पाठको, जैसा कि पिछले लेख में मैंने लिखा था कि अगले लेख में मैं वृषभ राशि के ऊपर विस्तृत लेख लिखूँगा उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए यह लेख आप लोगों के पढ़ने हेतु प्रस्तुत है।
मित्रों वृषभ राशि की जो प्रमुख विशेषताएं हैं उन पर आज एक दृष्टि डालते हैं वृषभ राशि मैं अगर आपका जन्म हुआ है तब इस राशि का चिन्ह बैल होगा, इस राशि के स्वामी शुक्र देव है, यह पृथ्वी तत्व की राशि है, स्थिर इसका स्वरूप है, यह दक्षिण दिशा में बलि है, स्त्री लिंग है, यह राशि रजोगुणी है, वैश्य जाति से संबंध रखती है, यह सौम्य स्वाभाव की, वात प्रकृति की होती है, मुख पर इसका प्रभाव रहता है, इसका रत्न हीरा है व उपरत्न ओपल है इसके लिए अनुकूल रंग श्वेत सफेद होता है, शुभ दिवस शुक्रवार एवं शनिवार होते हैं, अनुकूल देवता श्री लक्ष्मी माता एवं श्री संतोषी माता है, अगर आप शुक्र ग्रह से पीड़ित हैं तो शुक्रवार का व्रत एवं उपवास रख सकते हैं, अनुकूल अंक 6 है, अनुकूल तारीखें प्रत्येक महीने की 6, 15 एवं 24 तारीख होतीं है, मित्र राशियां मकर एवं कुंभ है, शत्रु राशियां सिंह धनु एवं मीन है, ऐसे व्यक्ति जो वृषभ राशि के हैं वह गुरु भक्त, कृतज्ञ एवं दयालु होते हैं, इस राशि वालों के लिए सकारात्मक तथ्य आकर्षक पहनावा, वस्त्र आभूषण में रुचि रखना होती है, इनके जो नकारात्मक तथ्य है वह दुराग्रही, कानों का कच्चा एवं आलसी बन जाना है।
ग्रहों की दृष्टियां
वृषभ राशि की जो मित्र राशियां हैं उनका नाम क्रमशः 6 नंबर कन्या राशि 10 नंबर मकर राशि 11 नंबर कुंभ राशि है, मित्रों शुक्र एक शुभ ग्रहों की पंक्ति में आते हैं और शुभ फल प्रदान करने वाले हैं वृषभ राशि में चंद्र के आ जाने पर चंद्रमा उच्च के हो जाते हैं इस राशि में चंद्रमा जीरो से लेकर 3 अंश तक उच्च के होते हैं शेष 4 अंश से लेकर 30 अंश तक चंद्रमा मूलत्रिकोण के माने जाते हैं, वृषभ राशि के स्वामी शुक्र होते हैं इस प्रकार वृषभ राशि के लिए शुक्र, सूर्य, बुध एवं शनि देव योगकारक ग्रहों में आते हैं इस राशि वालों के लिए चंद्रमा मारक है और गुरु एवं मंगल अच्छे फल देने वाले नहीं होते इस राशि वालों के लिए जब शुक्र, बुध, शनि, सूर्य की महादशा अंतर्दशा प्रत्यंतर दशा आती है तो लाभकारी होती है और सबसे योगकारक जो ग्रह इस राशि वालों के लिए है वह हैं शनि देव शनि देव 2 राशियों के साथ मकर त्रिकोण में और कुंभ राज्य स्थान में होने से परम योगकारक है और वृषभ राशि वालों के लिए उत्तम फल देने वाले हैं वृषभ राशि के जो जातक है वह हीरा अथवा हीरे का उपरत्न ओपल, नीलम अथवा नीलम का उपरत्न नीली और पन्ना धारण कर सकते हैं।
यहां पर पाठकों की सरलता हेतु यह बताता चलूं की हीरा अथवा ओपल वृषभ राशि वालों के लिए जीवन रत्न है। नीलम अथवा नीली वृषभ राशि वालों के लिए भाग्य रत्न है। और पन्ना बुध के पंचमस्थ होने की वजह से शुभता दायक है।
मित्रों आज के लेख में मैंने आपको वृषभ राशि के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान कर दी हैं।
ग्रह |
केतु |
शुक्र |
सूर्य |
चंद्र |
मंगल |
राहु |
गुरु |
शनि |
बुध |
नक्षत्र |
अश्विनी |
भरणी |
कृत्तिका |
रोहिणी |
मृगशिरा |
आर्द्रा |
पुनर्वसु |
पुष्य |
आश्लेषा |
नक्षत्र के नामाक्षर |
चू, चे, चो ,ला |
ली, लू, ले, लो |
अ, इ, ऊ. ऐ |
ओ, व, वि, वू |
वे, वो, का,की |
कू, घ,ड, छ |
के, को, ह, हि |
हु, हे, हो, डा |
डी, डु, डे, ड़ो |
|
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नक्षत्र |
मघा |
पूर्वाफाल्गुनी |
उत्तराफाल्गुनी |
हस्त |
चित्रा |
स्वाती |
विशाखा |
अनुराधा |
ज्येष्ठा |
नक्षत्र के नामाक्षर |
म़ा, मी, मू, मे |
मो, टा, टी, टू |
टे, ढो, पा, पी |
पू, ष, ण, ठ |
पे, पो, रा, री |
रू, रे, रो, ता |
ती, तू, ते, तो |
ना, नी, नू, ने |
नो, या, यी, यू |
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नक्षत्र |
मूल |
पूर्वाषाढ़ा |
उत्तराषाढ़ा |
श्रवण |
धनिष्ठा |
शतभिषा |
पूर्वाभाद्रपद |
उत्तराभाद्रपद |
रेवती |
नक्षत्र के नामाक्षर |
ये, यो, भा, भी |
भू, ध, फ, ढ |
भे, भो, जा, जी |
खी, खू, खे, खो |
ग, गी, गू, गे |
गो, सा, सी, सू |
से, सो, दा, दी |
दू,थ, झ, |
दे, दो, चा, ची |
इस सारणी में केतु गृह के नीचे अश्विनी,मघा,मूल तीन नक्षत्र लिखे हैं इन तीनों नक्षत्र का स्वामी केतु है इसी प्रकार अन्य को भी समझें।
मिथुन राशि का विवरण
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Astrologer Sanjeev Chaturvedi
Agra, Uttar Pradesh
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